Wednesday, July 1, 2015

।।ओ३म्।। सनातन विचारधारा को कैसे बचाया जाये? सनातन का अर्थ सत्य से है।सत्य का अर्थ धर्म से...

।।ओ३म्।।
सनातन विचारधारा को कैसे बचाया जाये?

सनातन का अर्थ सत्य से है।सत्य का अर्थ धर्म से है,क्योंकि जो बात तर्क,युक्ति,प्रमाण या प्रयोग द्वारा सत्य सिद्ध हो जाती हो,वो सब धर्म की बातें हैं।सत्य या सनातन वो है जो पहले भी था,अब भी है और आगे भी रहेगा।
कुछ उदाहरण देखिए-

1-जैसे 2 और 2 चार होते हैं,वो चार ही रहेंगे।
2-पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है,वो सूर्य के चारों ओर ही चक्कर लगायेगी।
3-जीवों को सताने से उन्हें दुख होता है।दुख पहले भी होता था,अब भी होता है और आगे भी होगा।
4-प्रत्येक वस्तु परमाणु से मिलकर बनी है।प्रत्येक वस्तु पहले भी परमाणु से मिलकर बनती थी,अब भी बनती है और आगे भी बनेगी।
इसी प्रकार-
पेड पौधे प्राण वायु(ओक्सीजन)छोडते हैं,CO2 ग्रहण करते हैं।
कोई भी वस्तु/पदार्थ न तो पैदा किया जा सकता और न ही नष्ट।
सृष्टि की प्रत्येक वस्तु परिवर्तनीय है।
एक ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
प्रत्येक जीव अंततः अपनी मौत को प्राप्त होता है।
आत्मा ह्रदय के पास अणु रूप में स्थित होती है।जब शरीर साथ छोड देता है,तभी बाहर निकलती है।आत्मा कभी नहीं मरती।शरीर पंचतत्वों में विलीन होता है।
बिना कारण के कोई काम नहीं होता,इसलिए इस सृष्टि को बनाने वाला कोई है।



ये सनातन है,सत्य है।मतलब धर्म की बातें हैं।इसको कोई अधर्मी उल्टा नहीं कर सकता।मतलब सनातन कभी नष्ट नहीं होगा।लेकिन सनातन से जुडे लोग अगर सनातन बातों का प्रचार-प्रसार नही करेंगे,तो वो जरूर खत्म हो जायेंगे।जब सनातन से जुडे लोग खत्म हो जायेंगे,क्योंकि हम सनातन विचारधारा का प्रचार-प्रसार नहीं करते,तो फिर सनातन कभी खत्म नहीं होगा,सनातन कभी खत्म नहीं होगा।ऐसे चिल्लाने का क्या फायदा?और अधर्मी/असत्यवादी जैसे लोगों को बढने से कौन रोकेगा?इसलिए सनातन विचारधारा का प्रचार-प्रसार जरूरी है।

कहने का अर्थ है अगर सनातन का प्रचार नहीं होगा,तो असत्य फैलेगा,अधर्म फैलेगा।अधर्मी को सिर्फ सत्य का प्रचार करके ही धार्मिक बनाया जा सकता है।

सभी मत मजहब वाले क्या है?
अपने स्वार्थ के लिए कोई राज हथियाने की स्टोरी बना ली।फिर राज हासिल कर लिया।बस उद्देश्य राज और मौज करना है।मौज राजगद्दी पर बैठने वाले की व उसके चमचों की ही होती है,बाकि जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम करती रहती है।ऐसी कहानियों का क्या फायदा? जनता को झूठे प्रलोभनों में फंसाकर व उन पर अनेकों अत्याचार करके राजगद्दी हासिल करने वाले को अंतत: कोई सजा न दे।लेकिन वो पूरे जीवन में कभी भी आनंदित नहीं होता।दुख का भागी बना घूमता है।दूसरे उसके पाप छुडाने के लिए परमात्मा उसे सजा देता है।लेकिन धर्म/सत्य का उद्देश्य सभी मनुष्य जाति को आनंदित करना है।अंततः मोक्ष दिलाना है।

क्या मत-मजहबों की सभी बातें सनातन हैं?मतों में एक बात सनातन आती है,तो फिर बहुत देर तक झूठी बात चलती रहती है।फिर एक बात सत्य आती है,फिर बहुत देर तक झूठी बात चलती रहती है।मतों में मत से अलग कोई प्रश्न पूछना मान्य नहीं है।लेकिन विश्व में सिर्फ सनातन/आर्य विचारधारा ही ऐसी है,जिसमें सिर्फ सत्य/सनातन या धर्म की बातें की जाती हैं।अगर किसी बात को लेकर आपको कोई शंका हो,तो आप कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं।अगर हम शंका दूर होने के बाद भी उस बात को सत्य नहीं मानेंगे,तो फिर हम भी तो मत मजहब वाले हुए।क्योंकि मत-मजहब में लिखित किसी भी विषय पर शंका नहीं की जा सकती।अगर कोई शंका जाहिर करे,तो या तो इसका जवाब नहीं दिया जायेगा या जबरदस्ती चुप करा दिया जायेगा।कुछ मत वाले तो ऐसे हैं जो शंका जाहिर करने पर मौत के घाट तक उतार देते हैं।सभी मत-मजहब वाले अपनी बात के जिद्दी इसलिए होते हैं,क्योंकि अगर उनमें सनातन घुस गया,तो ये समाप्त हो जायेंगे।इन मत-मजहब से जुड़ी आम जनता को इनके ऊपर राज करने वाले अपने मजहब से जुड़ी हर बात को बचपन से ही पक्की तरह रटा देते हैं,ताकि वो भी पूर्वाग्रह में रहते हुए अपनी बात पर ही अडे रहें।अंतत: वो उन पर राज करते रहें।
इसी प्रकार की बातें हमारे हिन्दू भाइयों में भी देखी जा रही है।वो भी सत्यासत्य में भेद न जान करके किसी न किसी पूर्वाग्रह के साथ अपनी बात पर अडे रहते हैं।
अगर कोई बात असत्य सिद्ध हो जाये और फिर भी हम उसी असत्य पर अडे रहें,तो सनातन तो घटेगा ही,बढेगा कैसे?हम मतों-मजहबों में सत्य का प्रकाश कैसे करेंगे?
इस प्रकार हमारे द्वारा सनातन का पक्ष न होने व असत्य का पक्ष होने से हम भी मत-मजहब वाले हुए कि नहीं।हम भी पाखंडी-पंडों के भाई हुए कि नहीं?इस प्रकार अधर्मी(झूठे) लोगों को आगे बढने से कौन रोक सकता है?इसलिए सनातन(सत्य)विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने से कुकुरमुत्तों की तरह उगी विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं को ज्ञानरूपी प्रकाश दिखाकर उनके अज्ञानता को हमेशा के लिए समाप्त करके ही हम उन्हें धर्मानुयायी/सत्यानुयायी बना सकते हैं।तभी सनातनधर्मी/सत्यवादी/धार्मिक लोग बच सकते हैं।अन्यथा कोई रास्ता ही नहीं है।क्योंकि असत्य का पक्ष करने से हम भी उन्हीं के हुए।

प्रमाण:-हमारे हिन्दु युवाओं के सेकुलर और पाश्चात्य होने का कारण असत्य का प्रचार ज्यादा होना ही तो है।उन्हें सनातन संस्कृति का ज्ञान ही नहीं मिलता।क्योंकि हम इसका प्रचार-प्रसार नि:स्वार्थ और बिना पूर्वाग्रह के करते ही नहीं है।


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