भारतीय इतिहास का दूसरा जार्डेनबूर्नो कांड!
पिछली पोस्ट में सल्तनत काल के प्रथम जार्डेनबूर्नो कांड के बारे में बताया जा चुका है। जार्डेनबूर्नो कांड क्या है इसे दोहराते हुये दूसरे ऐसे कांड का खुलासा करना इस पोस्ट का मकसद है।
यूरोप में टालेमी के इस असत्य सिध्दांत कि “ पृथ्वी विश्व का केंद्र है और सूर्य तथा अन्य ग्रह इसके चक्कर लगाते हैं ” , को चुनौती देने के कारण 1600 ईस्वी में पोप ने जार्डेन बूर्नो नाम साहसी युवक को चौराहे पर जीवित जला दिया था ।
सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में सिकंदर लोदी ने मथुरा के तीर्थस्थलों पर अनेक प्रतिबंध लगाये। वहीं पास के कटेहर निवासी लोधन नामक एक हिन्दू ने कुछ मुसलमानों के सामने कहा , “ इस्लाम सत्य है और मेरा धर्म भी सत्य है । ” इस बात का मुस्लिम आलिमों ने विरोध किया । वहाँ के हाकिम आजम हुमायूं ने लोधन को संभल में सुल्तान सिकंदर लोदी के पास भेज दिया। लोदी ने इसपर विचार विमर्श के लिये अपनी सल्तनत के अन्य भागों से आलिमों को बुलवाया । आलिमों ने यह फैसला दिया कि लोधन को कारागार में डालकर इस्लाम की शिक्षा दी जाये और फिर भी वो इस्लाम स्वीकार ना करे तो उसकी हत्या कर दी जाये । बहादुर लोधन ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया । फलस्वरुप उसकी हत्या कर दी गयी । तारीख ए दाऊदी , पेज 59-60 में यह घटना दर्ज है और दाऊदी के मुस्लिम होने के कारण कोई भी मुसलमान इसकी सत्यता को खारिज नहीं कर सकता । ये बात अलग है कि आजादी के बाद के लम्बे कांग्रेसी शासन में वामपंथियों के कुचक्र से इतिहास के सच को दबाये रखा गया ।
लोधन को मारे जाने की घटना फिरोज तुगलक के काल में एक हिंदू को जीवित जलाकर मार देने की ही पुनरावृत्ति थी जो पुनर्जागरण काल के निरंकुश पोप और सुप्रसिध्द जार्डेनबूर्नो कांड की याल दिलाती है । साथ ही इस्लाम की सही तस्वीर भी उजागर करती है।
- ’ सल्तनत काल में हिन्दू प्रतिरोध ’
लेखक: अशोक कुमार सिंह , पेज 476-477
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