3 जुलाई 15
😶 “ मेरी पुकार सुन ” 😶
ओउम् त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवेहवे सुहवं शूरमिन्द्रम् ।
ह्वयामि शक्रं पुरूहूतमिन्द्रं स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्र: ।।
ऋ० ६ । ४७ ।११; यजु:० २० । ५०; सा० पू० ४।१५।२; अथर्व० ७। ८७। १
शब्दार्थ :- पालन करने वाले इंद्र को ,रक्षा करने वाले इंद्र को एक-एक संग्राम में सुख से पुकारने योग्य पराकर्मी इन्द् को और सर्वशक्तिमान इंद्र को जिसे असंख्यों सत्पुरुषों ने समय-समय पर पुकारा है- उस इंद्र को मैं भी पुकारता हूँ, बुलाता हूँ। वह ऐशवर्यवान् इंद्र हमारा कल्याण करे।
विनय :- हे इंद्र परमेश्वर !
यह संसार एक रणस्थली है । इसमें प्रत्येक मनुष्य अपनी समझ के अनुसार किसी-न-किसी विजय को पाने में लगा रहता हैं और उसके लिय दिन -रात संघर्ष मैं लग जाता है। इन संघर्षों में विजय पाने के लिए मनुष्य प्राय: अपने शरीर-बल, बुद्धि-बल,विज्ञान-बल, मित्र-बल, सैन्य-बल आदि बलों का प्रयोग करता हुआ अभिमान से समझता है कि मैं इन बलों द्वारा ये सब लड़ाइयाँ जीत लूगाँ, परन्तु एक समय आता है जब मनुष्य इन सब बाह्य-बलों से हारकर,निराश होकर, संसार की किसी अज्ञात शक्ति को ढूँढने व पुकारने लगता है। ‘हे राम’, या 'अल्लाह’ या 'oh my God’ आदि कहकर किसी-न-किसी नाम से , हे इंद्र ! असल में वह तुझे पुकार उठता है। तब पता लगता है कि, है संसार की अज्ञात अद्रश्य शक्ते! तू ही एकमात्र शक्ति है। संसार के शेष सब बल तेरे ही आधार से बल हैं। तू सर्वशक्तिमान है। अतएव तू 'पुरुहूत’ है, सदा से जबसे सृष्टि चली है सन्त लोग तुझे आड़े समय में पुकारते रहे हैं, याद करते रहे हैं। इसलिए, हे इंद्र! मैं भी तेरी पुकार मचा रहा हूँ। मघवन्! तू मेरे लिए कल्याणकारी होता हुआ मेरी पुकार सुन। मैं निश्चय से जानता हूँ कि मैं तेरा पवित्र नाम लेता हुआ अपने इस जीवन की सब लड़ाइयों में विजय पाता चला जाऊँगा। मुझे किसी युद्ध में किसी भी अन्य हथियार की जरूरत नहीं। बस, तू मेरी वाणी पर रहे, यही चाहिए। तेरा नाम पुकारना मुझे सब विपत्तियों से पार कर देगा।
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
वैदिक विनय से
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