वेदों के ऊपर एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत के अग्रणी वैज्ञानिक और पूर्व इसरो जी माधवन नायर ने स्वीकार किया कि वेदों में खगोलीय जानकारियां काफी संक्षिप्त रूप में थीं, जिसकी वजह से आधुनिक विज्ञान के लिए इन्हें स्वीकार करना मुश्किल हो कहा, ‘वेदों के कुछ श्लोकों में कहा गया है कि चांद पर पानी है, लेकिन किसी ने इस पर विश्वास नहीं किया। हमने अपने चंद्रयान मिशन से इसे स्थापित किया कि यह बात हमने सबसे पहले कही थी। वेदों में मौजूद हर बात को समझा नहीं जा सका क्योंकि वे कठिन संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं।’
इसरो के पूर्व प्रमुख ने कहा, ‘हमें आर्यभट और भास्कर पर सचमुच गर्व है। इन दोनों ने अंतरिक्ष और दूसरे ग्रहों की खोज की दिशा में काफी काम किया। यह काफी चुनौती भरा क्षेत्र था। यहां तक कि चंद्रयान में भी आर्यभट के सूत्र का इस्तेमाल किया गया है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में भी न्यूटन से 15 सौ साल पुरानी हमारी हस्तलिपियों में जिक्र मिलता है।’ 2003 से 2009 तक इसरो के चेयरमैन रहे माधवन नायर ने कहा, ‘ज्यॉमट्री (रेखागणित) का इस्तेमाल हड़प्पा संस्कृति में भवनों के निर्माण के लिए किया जाता था। यहां तक कि पाइथागोरस प्रमेय का ज्ञान भी वैदिक काल से ही था।
माधवन नायर ने कहा, ‘अंतरिक्ष और ऐटमी ऊर्जा के बारे में भी वेदों में काफी जानकारियां हैं। 600 ईसा पूर्व तक हम ठीकठाक थे, लेकिन उसके बाद से आजादी तक लगातार विदेशी हमले झेलते रहे। आजादी के बाद हम फिर प्रगति कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि एक वैज्ञानिक के तौर पर मैं कहना चाहूंगा कि उस काल में गणना काफी उन्नत हो चुकी थी। वेदांग ज्योतिष 1400 ईसा पूर्व विकसित हो चुका था। यह सब लिखित है। दिक्कत यह है कि वेदों को पढ़ने के लिए संस्कृत का ज्ञान जरूरी है।’
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