“मैं नित्य तुम्हें देखता हूँ, कभी शब्द प्रमाण का तो कभी अनुमान का सहारा लेकर.. और मुझे दृढ विश्वास है मेरी सुयोग्यता पर रूबरू तुम्हे देख ही नहीं महसूस भी कर पाउँगा.. मेरी दिन-प्रतिदिन तुम में बढती आस्था मुझे तुम्हे सदा और निकट, निकटतर, निकटतम होने का एहसास दिलाती है.. परस्पर एक दूजे का सहारा बनने के झूठे वादे करती इस मतलबी दुनिया में यह जानकार पुलकित, रोमांचित, हर्षित और गौरवान्वित हो उठता हूँ कि एक सदाई ठोस आधार तुम्हारा ही रहा है मुझे, और रहेगा भी.. तुम्हारी अमृत छाया का बिछोह एक पल के लिए भी अब मेरे लिए असह्य है..!!”
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