आर्य समाज क्यों नहीं कर पाता वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार:-
धर्म और लोकतन्त्र साथ-साथ नहीं चल सकते।हाँ,राजनीतिक संगठन और लोकतन्त्र साथ-साथ जरूर चल सकते हैं।बल्कि लोकतन्त्र को राजनीतिक संगठन ही दिशा देते हैं।इस्लाम,ईसाई आदि धार्मिक संगठन न होकर बहुत बड़े राजनीतिक संगठन हैं।या यूँ कह लीजिये कि ये खतरनाक राजनीतिक आंदोलन हैं।अगर ऐसे ही हिन्दू पाखण्ड में डूबकर टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे रहे तो,ये संगठन आने वाले समय में पूरे भारत को अपनी कब्जे में ले लेंगे।वैसे कब्जे में तो अभी भी ले रखा है,लेकिन पूर्णरूप से नहीं।
आर्य समाज राजनीतिक आंदोलन नहीं है,ये एक वैचारिक आंदोलन है,जो हिंदुओं को भविष्य के प्रति आगाह करता आ रहा है।इसका मुख्य उद्देश्य हिंदुओं को निराकार ईश्वर में ध्यान लगवाने का है।जो कि ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश है।जिससे कि ये सब एकमत हो जाएँ।क्योंकि हिन्दू विभिन्न प्रकार के मतों का समूह है,इसी कारण हिन्दू लोग एकजुट नहीं हो सकते।विभिन्न प्रकार की जाति एवं निराकार ईश्वर की जगह विभिन्न प्रकार की व्यक्ति पूजा इन्हें एक नहीं होने देती।ऊपर से अनेक प्रकार के अंधविश्वासों ने इनकी तर्क शक्ति को कुंद कर दिया है।ये भी प्रमाणित हो जाता है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है बल्कि किसी का दिया हुआ नाम है।ये इस बात से पता चलता है कि विभिन प्रकार के मतों का एक नाम कैसे हो सकता है।जैसे वैष्णव मत,शैव मत,भागवत मत आदि विभिन्न प्रकार के समूह का हिन्दू नाम किस आधार पर हो सकता है।इससे स्वत:सिद्ध हो जाता है कि हिन्दू किसी के द्वारा दिया गया शब्द है।महाभात के बाद वैदिक संस्कृति कमजोर होने के बाद आर्य लोगों में जो विकृति आई थी उसके कारण होने वाले फूट से आर्य लोग वैदिक धर्म से पाखण्डी ब्राह्मणों द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए भटका दिए गए।जिस कारण वेदों का ईश्वरीय ज्ञान न मिलने के कारण आर्य लोग व्यक्ति पूजा करने लगे।विभिन्न समूहों में बंटे होने के कारण बाहरी आक्रांताओं ने इन्हें सिंधु नदी के सम्बोधन से हिन्दू नाम देकर पुकारा था।हिंदुओं की इन्ही कमजोरियों की आड़ में बाहरी आक्रांता देश में घुसे थे जो अभी तक घुसे हुए हैं,क्योंकि हिंदुओं की बुराइयां अब भी बरकरार है।हिंदुओं व समस्त मानव समाज को एक करने के लिए ही आर्य समाज की स्थापना की गयी थी।आर्यसमाज वैदिक धर्म का प्रचार करता है।राजनीति कभी आर्य समाज को आगे नहीं बढ़ने देती,क्योकि ये राजनीतिक संगठन न होकर एक वैचारिक क्रान्ति है,इसके आगे बढ़ने से वेदों का प्रचार होगा।वेदों का प्रचार होने से इन भ्रष्टाचारी नेताओं की मौज व एयाशी खत्म हो जायेगी।जैसे अगर वेदों का प्रचार होने के कारण जातिवाद समाप्त होने से जातिगत आरक्षण समाप्त हो जाएगा।क्योंकि आरक्षण वेदानुसार योग्यता पर आधारित हो जाएगा।मालूम है कि मनुष्यों के हर प्रकार के विकास का आधार उसकी जाति न होकर उनकी योग्यता है।योग्य व्यक्तियों के कारण प्रशासन में ईमानदार लोगों की बाढ़ आ जायेगी।योग्य लोग प्रोत्साहित होंगे और अयोग्य प्रोत्साहित।देश के जनता भी योग्यता को ही सब कुछ मानने लगेगी।हर माँ-बाप अपने बच्चे को अच्छी प्रकार पढ़ायेगा।क्योंकि योग्य व्यक्ति की ही हर जगह कद्र होगी।भ्रष्टाचार समाप्त होगा।नेता लोग उन्हें न बाँट सकेगे और न ही उन्हें बरगला पाएंगे।जनता के जागरूक व् एकजुट हो जाने के कारण नेता भी योग्य व् ईमानदार ही होंगे।इसी प्रकार बहुत सारी सुधार की बातें एकदम से लागू हो जाएंगी।लेकिन आज के राजनीतिक लोगों के लिए ये घर बैठाने वाली घटना होगी।इसलिए वे वेदों के प्रचार करने वालों को प्रोत्साहित न करके लगातार हतोत्साहित करते आ रहे हैं।जिस कारण आर्य समाज आगे नहीं बढ़ पाता।इसी वजह से वेदों का भी प्रचार-प्रसार नहीं हो पाता।
अगर आर्य समाज में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी अपने स्वार्थ में कुछ राजनीतिक बातें भी डाल देते,जैसे इस सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ,जो न बने उसे जबरदस्ती बनाओ,जो फिर भी मना करे,तो उसके पीट-पीटकर चीथड़े उड़ा दो।अधर्मी को मारने से मोक्ष मिलेगा आदि।वैसे कृण्वन्तो विश्वार्यम वाली वैदिक बात उन्होंने लिखी है लेकिन उसको राजनीतिक व् स्वार्थ के रूप में न लिखकर सभी मनुष्यों के लिए लिखी है।अगर ऐसी बाते इसमें जोर देकर जोड़ी जाती,तो ये इतना आगे बढ़ जाता कि विदेशी विचारधारा वाले लोग भारत में दिखाई भी न देते।लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है।इस्लाम में इस वैदिक दंड व्यवस्था वाले आदेश को दूसरे तरीके से मतलब राजनीतिक तरीके से लागू किया गया है।इसमें कहा गया है कि जो कुरआन मतलब अल्लाह के आदेश को नहीं मानता वो काफ़िर है,उसे काट दो।काफ़िर को मारने से जन्नत मिलेगी।ये चीज इस्लाम की बड़ी पक्षपाती होने के कारण राजनीतिक है।इसी के कारण इस्लाम फैला है और इसी की वजह से मुस्लिम लोग एकजुट रहते हैं।क्योंकि जो मुस्लिम कुरआन को नहीं मानता या उसका जरा सा भी विरोध करता है,तो मुस्लिम लोग आपस में मिलकर मार डालते हैं।इसी डर की वजह से ये एकजुट हैं।ये व्यवस्था आर्य समाज में नहीं हैं,क्योंकि स्वामी जी ने इसे समस्त मनुष्यों के लिए लिखा है।उन्होंने कहीं भी पक्षपात नहीं किया है।लेकिन दुष्ट लोग समझाने पर कभी भी सही रास्ते पर नहीं चलते।इसलिए उन्हें ये उपर्युक्त वैदिक बात जोरदार तरीके से लिखनी चाहिए थी।निवेदन कर्ता।अमित आर्य दिल्ली।9266993383
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