हमें आर्यभाषा का प्रयोग करना चाहिए तथा देवनागरी लिपि में ही लिखना चाहिए। और यदि हम ऐसा नहीं कर सकते या ऐसा करने में विवश हैं तो फिर स्वदेशी का प्रचार व्यर्थ हैं। स्वदेशी की शुरुआत ही मूल रूप से भाषा, पोशाक और आहार से होता है। यदि ये नहीं तो फिर कुछ नहीं।
अंग्रेजी प्रयोग करने के लिए हम विवश क्यों हैं??? यह अंग्रेजियत हमारे पास कैसे आई?? निश्चित रूप से गुलामी के कारण। फिर इसे अपनाते रहना कहाँ की बुद्धिमानी है?? चीन देश में सब काम चीन में हो सकता है। जापान में सब काम जापानी भाषा में हो सकता है फिर भारत ही इतना विवश क्यों है कि वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करे?? उनकी तरह पोशाक पहने?? रोटी छोड़ नूडल, पिज़ा आदि खाए। भारत चाहे तो आर्यभाषा को अन्तराष्ट्रीय भाषा बनाने में सक्षम हो सकता था। कुछ वर्ष पहले के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन और उसके बाद हिंदी और अंग्रेजी दोनों सम था। आज अंग्रेजी आगे चली गई। आखिर क्यों?? अंग्रेजों के कारण नहीं। हम जैसे हर समस्या पर स्वाभिमान को बेच विवशता का नाम लेकर अंग्रेजी प्रयोग करने वाले हिन्दुओं के कारण।
कई लोग कहते हैं अंग्रेजी सीखना बुरा नहीं। सही है पर साथ ही बुद्धिमान विद्वान् बनने के लिए अंग्रेजी सीखने की कोई आवश्यकता भी नहीं। देश में यह सुविधा होनी ही चाहिए कि एक अक्षर अंग्रेजी जाने बिना भी हम सब काम यथावत कर सकें। इसकी शुरुआत स्वयं से होगी। अपनी हर विवशता को अपनी शक्ति व सामर्थ्य से मार कर स्वदेश प्रेम की सच्ची भूमिका निभाएं।
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🙏🙏 आपका मित्र राजेश आर्यवर्त
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