बहुत ही खूबसूरत आज बरबादी मिली है
परिंदे को कटाकर पंख आज़ादी मिली है,
ईमाँ वाले बहुत कम बैठ पाये कुर्सियों पर
उचक्कों और चोरों को बहुत खादी मिली है,
खता रानाइयो की हम कभी देते नहीं हैं
हमे यह ज़िंदगी ही दर्द की आदी मिली है,
सिसकते फूल रोती तितलियाँ देखी चमन में
बहारों से बिछड़कर गमजदा वादी मिली है,
सिकुड़ती जा रही बस्तियाँ सब देश की यह
वतन को रोज बढ़ती हुई आबादी मिली है,
जरूरत क्या अँधेरे में जुलम ढाने की है जब
उजाले में डकैती के लिये खाकी मिली है——-
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