1• वेद क्या हैं ?
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मंत्र-संहिताओं का नाम वेद है। इनको श्रुति भी कहते हैं। वेद शब्द संस्कृत के विद् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान। अतः वेद शास्वत ज्ञान की पुस्तकें हैं।
2• वेद की प्रमाणिकता को लगभग
सभी क्यों स्वीकार करते हैं….?
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आज हिंदू समाज में जो भी धर्म ग्रंथ मिलते हैं, उन सबका आदि-स्त्रोत वेद हीं है। ऐसा सभी ग्रंथ मानते भी हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने स्पष्ट कहा है कि चारों वेद ईश्वरीय होने के कारण स्वतःप्रमाण हैं परन्तु यदि अन्य ग्रन्थों के विचार भी वेदानुकूल हो तो उनके उस भाग को परतः प्रमाण माना जाए।
मनुस्मृति में कहा है, “ वेदोऽखिलो धर्ममूलम ” “ धर्म जिज्ञामानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः”( मनुस्मृति 2.13 ) यानी वेद धर्म का मूल है एवं धर्म के जिज्ञासुओं को वेद को ही प्रमाणिक मानना चाहिए।
वेद और सभी दर्शन वेदवाक्यों को ही प्रमाणिक मानते हैं। श्रुति प्रामाण्याच्च ( न्याय 3.1.32 ), श्रुत्या सिद्धस्य नापलापः ( सांख्ख 2.47 ),
महाभारत में वेदप्रमाणविहितं धर्म च ब्रवीमि ( शान्ति पर्व 24.18 ), वेदाः प्रमाणं लोकानाम् ( शान्ति पर्व 260.9 ) “ लोकों के लिए वेद ही प्रामाणिक है; वेद-प्रमाणित धर्म ही कह रहा हूँ ” आदि।
बृहस्पति एवं जाबाल ऋषि कहते हैं कि स्मृति और वेद में मतभेद होने पर वेद को ही प्रमाणिक माना जाए। अतः वेद और वेदानुकूल विचार ही प्रामाणिक हैं, ऐसा सभी आचार्य मानते हैं।
3• वेद अध्ययन का अधिकार किसको हैं ?
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प्रत्येक मनुष्यमात्र को वेद पढ़ने एवं आचरण करने का पूर्ण अधिकार है। ऐसा अधिकार स्वयं वेद ने ही दिया है :-
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्य। ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय स्वाय चारणाय।। ( यजुर्वेद 26.2 )
“ हे मनुष्यों ! मैं ईश्वर जैसै ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री, सेवक आदि और उत्तम लक्षणयुक्य प्राप्त अन्त्यज के लिए वेदरूप वाणी का उपदेश करता हूँ, वैसे आप लोग भी अच्छी प्रकार उपदेश करो।
========================= ” आर्यावर्ती “ ===
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