आर्य समाज के प्रचार प्रसार में पौराणिक हिंदुओं का सबसे ज्यादा योगदान है.. वहाबी - आर्यसमाजी इसको भूल जाते हैं कि वर्तमान गतिविधियों को चलाने के लिए सहायता कहाँ से आ रही है। और लगते हैं पौराणिको का अन्धा विरोध करने… ये भी एक कारण है कि आर्य समाज में कोई नया महेंद्रपाल आर्य नहीं आ रहा…. आर्य समाज अपने भीतर कब झांकेगा? कब वो अपने कार्यो को महर्षि के सिद्धांतो से cross check करेगा??
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