*ओ३म्*
*🌷उद्गीथ ओंकार का ही नाम है🌷*
‘ओ३म्’ यह अक्षर ही 'उद्गीथ’ है। 'ओ३म्’ इसकी ही उपासना करें, इसका ही गान करें। 'ओ३म्’ यह अक्षर और इसका दीर्घ स्वर से उच्चारण ही अमृत है, इसी से अभय पद प्राप्त होता है। वह उपासक जो ओंकारोपासना को इस प्रकार जान लेता है और दीर्घ–स्वर से अक्षर–'ओ३म्’ की उपासना करता है, वह भी इस अक्षर–स्वर में जो अमृत तथा अभय है, प्रविष्ट होकर अमर हो जाता है। उपनिषदों ने ओंकार का उच्च–स्वर से उच्चारण कर उसमें लीन होने को अमृत पद तथा अभय पद प्राप्ति के लिए सबसे अधिक बल दिया है।
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