ओ३म्
‘भारत में गोहत्या होगी तो यह भूमि मरघट बन जायेगीः डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री’
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डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी आर्यजगत के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान है। वह वेद और वेदार्थ आदि अनेक ग्रन्थों के रचयिता, वैदिक पथ के सम्पादक, शास्त्रीय एवं आर्यसमाज के इतिहास पर अधिकारी, प्रभावशाली व श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाले व्याख्यान देने वाले वक्ता हैं। गुरुकुल पौंधा, देहरादून के 2 जून से 4 जून, 2017 को आयोजित 3 दिवसीय वार्षिकोत्सव में उनका गोरक्षा पर प्रभावशाली व्याख्यान हुआ। उसी को इस लेख में प्रस्तुत करने का हमारा प्रयास है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की रचना ‘भारत भारती’ खूब लोकप्रिय हुई थी। यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि जितना अन्य कोई काव्य संग्रह लोकप्रिय नहीं हुआ। डा. ज्वलन्त कुमार जी ने उस पुस्तक से गोरक्षा विषयक एक कविता आद्योपान्त पढ़कर श्रोताओं को सुनाई। कविता में एक पंक्ति आती है कि यदि भारत में गोरक्षा नहीं की जायेगी, गोहत्या होगी, गोमांसाहार का लोग सेवन करेंगे तो यह भारत भूमि मरघट बन जायेगी। इस कविता में विद्वान कवि ने यह भी कहा है कि देश में गोहत्या इसलिए जारी है क्योंकि यहां अंग्रेजों का राज है। इसका अर्थ है कि यदि अंग्रेजों का राज न होकर भारतीयों का राज्य होता तो देश में गोहत्या न होती। आचार्य ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जी के कार्यकाल में गोरक्षा के जो क्रियात्मक उपाय किये जा रहे हैं वह प्रशंसनीय हंै। आचार्य जी ने कहा कि सन् 1966 के साल में देश में गोहत्या आन्दोलन चला।
आचार्य ज्वलन्त जी तब लगभग 12 वर्ष के थे। उन दिनों भारत में केवल 100 हिन्दू रहे होंगे जो गोहत्या को उचित मानते होंगे। देश के शेष हिन्दू गोहत्या को अनुचित मानते थे। हिन्दू जाति का यह दुर्भाग्य है कि उनके अपने देश में गाय की हत्या होती है। देश में लाखों मन्दिर व सैकड़ो धर्माचार्य हैं परन्तु यह सब गोहत्या के पाप को चुपचाप देखते रहते हैं। आचार्य जी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली सेकुलर सरकार के शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम को भी गोहत्या वा गोमांसाहार के सेवन में वृद्धि का कारण बताया। आचार्य जी ने गोरक्षा का वर्णन करते हुए कहा कि आज गोरक्षा की बात करने पर हिन्दू ही इसका विरोध करने लगते हैं। कुछ एक्टर व नेता टीवी के पर्दे पर आकर कहते हैं कि हम गोमांस खाते हैं। वह कहते हैं कि खाने पीने का धर्म से क्या संबंध है? आचार्य जी ने कुछ प्रसिद्ध हस्तियों ऋषि कपूर, शोभा डे, बी.एम. झा स्तम्भकार, प्रसून वाजपेयी, दक्षिण के कुछ वशिष्ठ ब्राह्मणों का उल्लेख कर कहा कि ये लोग कहते हैं कि वह गोमांसाहार के पक्षधर हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि 50 सालों से पाठ्यक्रम में गोरक्षा विरोधी विचारों को पढ़ायें जाने का परिणाम है जिसके कारण आज की स्थिति आई है। यह पूर्व की सरकारों का पाप है।
आचार्य जी ने कहा कि किसी भी पशु का मांस खाना पाप है। केरल में पिछले दिनों घटी गाय की सार्वजनिक रूप से हत्या करने की घटना व उनके द्वारा गो मांस खाने की चर्चा की और कहा कि कांग्रेस ने गांधी जी की गोरक्षा विषयक एक बात भी नहीं मानी। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने कहा था कि वह गोरक्षा में कहीं अधिक व्यापक रूप से विश्वास रखते हैं। सभी पशु मूक प्राणी हैं इसलिये गाय सहित सभी पशुओं की रक्षा की जानी चाहिये। गांधी जी ने यह भी कहा है था कि हिन्दू धर्म की विश्व को महत्वपूर्ण देन है गोरक्षा। डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने गांधी जी के पत्र यंग इण्डिया के 7 जुलाई, 1927 अंक की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें गांधी जी ने लिखा है कि सच्चे हिन्दू की पहचान तिलक नहीं है अपितु उसकी पहचान गोरक्षा है। गांधी जी ने सरकार को सलाह दी है कि वह गोहत्या रोकने के लिए गाय आदि पशुओं की उचित बोली लगाकर खरीद ले और स्वयं गोदुग्ध की बिक्री की व्यवस्था करे। सरकार को आदर्श पशु-शालायें खोलनी चाहिये। पशुओं के लिए सरकार यथेष्ट गोचर भूमि की व्यवस्था करे। गोरक्षा के लिए पृथक सरकारी विभाग स्थापित करे। गांधी के अनुसार सभी राज्यों को गोरक्षा का बोझ उठाना चाहिये। डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी ने कहा कि मुसलमानों से ज्यादा हिंदू मोदी जी व योगी जी की टांग खींच रहे हैं। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज को सभी हिन्दू संगठनों के सहयोग से तीव्र आन्दोलन खड़ा करना चाहिये।
डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने कहा कि ऋषि दयानन्द को 29 सितम्बर, सन् 1883 को जोधपुर में विष दिया गया था। इससे पूर्व 7 जुलाई, 1883 को ऋषि ने उदयपुर रियासत के प्रधान मंत्री श्यामल दास जी को गोरक्षा के कार्यों का विवरण देते हुए पत्र लिखा था। अपने जोधपुर प्रवास में स्वामी दयानन्द जी ने जोधपुर नरेश को भी अपने राज्य में पूर्ण गोहत्या बंद करने को कहा था। उन्होंने बताया कि जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्त सिंह ने स्वामी जी को पत्र लिख कर सूचित किया था कि उनके मारवाड़ राज्य में 14.61 लाख हिन्दू तथा 1.56 लाख मुसलमान रहते हैं। उन्होंने अपने राज्य में गाय सहित कुल तीन पशुओं की हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था। आचार्य जी ने कहा कि वह लोग दुष्ट व धूर्त हैं जो गोहत्या को अन्य पशुओं की हत्या के बराबर बताते हैं। उन्होंने कहा कि गोहत्या व अन्य पशुओं की हत्या में कोई बराबरी व समानता नहीं है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सज्जन व दुष्ट की हत्या बराबर नही होती है। गाय को आचार्य जी ने हितकारी पशु बताया।
विद्वान आचार्य जी ने कहा कि रूस के वैज्ञानिकों के अनुसार भूकम्प का कारण गोहत्या है। उन्होंने कहा कि गाय के ऊपर हाथ सहलाने से जो स्वास्थ्य आदि अनेक लाभ होते हैं वह लाभ अन्य किसी काम को करने से नहीं होते। गो के मूत्र व गोबर से जो लाभ होते हैं वह बहुत अधिक हैं। आचार्य जी ने कहा कि गोमूत्र एक अच्छा कीटनाशक है। उन्होंने कहा कि गोबर की खाद का प्रयोग करने से रोगरहित अन्न पैदा होता है। गाय से इतने लाभ हैं तथा उसका कोई व किसी प्रकार का अर्थ-भार मनुष्यों पर नहीं पड़ता। आचार्य जी ने बताया कि बाबर, हुमायूं, अकबर और औरंगजेब तक ने देश में गोहत्या बन्द कराई थी। हैदर अली के शासन काल में गोहत्या करने वाले की गर्दन काट ली जाती थी और टीपू सुल्तान के काल में गोहत्या करने वाले के हाथ काट दिये जाते थे। डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता कीर्तिशेष राजीव दीक्षित जी के न्यायालय में प्रस्तुत गोरक्षा विषयक तथ्यों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गोहत्या का कंलक बर्दाश्त के लायक नहीं है। शास्त्रों के पारदर्शी विद्वान डा ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने कहा कि वेद में गोहत्या का विधान नहीं है। आचार्य जी ने गीता तथा प्राचीन भारत में गोरक्षा ग्रन्थ का उल्लेख कर उनमें गोरक्षा विषयक विचारों की समीक्षा भी की। उन्होंने कहा रामायण में गोहत्या का विधान कल्पित व मिथ्या है। गोहत्या के समर्थक लोगों से उन्होंने पूछा कि वह शास्त्रों में गोहत्या विरोधी बातों का उल्लेख क्यों नहीं करतेे। शास्त्री जी ने कहा कि वेदादि शास्त्रों में गो का एक नाम अघ्न्या है जिसका अर्थ है जिसे मारना निषिद्ध है वा जो अवध्य है अर्थात् हिंसा के योग्य नहीं है।
आचार्य डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री जी ने यह भी बताया कि वशिष्ठ धर्म सूत्र में तीन रोगों ईष्र्या, भूख और बुढ़ापे का वर्णन है। चरक संहिता में लिखा है कि गोहत्या व गोमांसाहार से 98 रोग बढ़ गये हैं। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश का उललेख कर उसके गोरक्षा विषयक विचारों से भी श्रोताओं को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि गोमेध का अर्थ अन्न होता है न कि गोमेध का अर्थ गो को मारना होता है। वाममार्गियों ने गोमेध के गलत अर्थ का प्रचार किया है। पं. गंगाप्रसाद, न्यायाधीश टिहरी राज्य ने लिखा है कि पारसियों के धर्म ग्रन्थ ‘जन्दावस्ता’ में गोमेध शब्द का अर्थ खेती करना व अन्न पैदा करना कहा है। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि सभी दृष्टि से गोहत्या महापाप है। उन्होंने कहा कि मांसाहारी हिन्दू भी व्रतों में व तीर्थों सहित एकादशी व पूर्णिमा आदि अनेक अवसरों पर मांस नहीं खाते जिसका कारण है कि वह मानते हैं कि मांस का खाना अनुचित है। इसी के साथ आचार्य जी का व्याख्यान समाप्त हो गया।
आचार्य जी का गोरक्षा सम्मेलन में यह भाषण तथ्यों व प्रमाणों से पूर्ण, ओजस्वी वाणी, प्रभावशाली व प्रवाहपूर्ण शब्दों में था। इस भाषण में आचार्य जी ने अपने शास्त्रीय ज्ञान, गोमाता के प्रति अपनी भावनाओं सहित देश के हित को केन्द्र बिन्दु में रखा है। ओ३म् शम्।
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