सूर्य नमस्कार एवं मुसलमानों की भ्रान्ति
21 जून को योग दिवस के अवसर पर सूर्य नमस्कार करने का अनेक मुस्लिम संगठनों ने यह कहकर विरोध किया हैं कि इस्लाम में केवल एक अल्लाह की इबादत करने का आदेश है जबकि हिन्दू समाज में तो सूर्य, पेड़, जल, नदी, पर्वत आदि सभी की पूजा का विधान हैं। इसलिए एक मुस्लमान के लिए सूर्य नमस्कार करना नापाक है।
यह स्पष्टीकरण सुनकर मुझे आर्यसमाज के प्रसिद्द भजनोपदेशक स्वर्गीय पृथ्वी सिंह बेधड़क का एक भजन स्मरण हो आया जिसमें एक मुस्लिम लड़की एक आर्य लड़की से इस्लाम ग्रहण करना का प्रलोभन यह कहकर देती हैं कि इस्लाम में एक अल्लाह की इबादत करने का बताया गया है तो आर्य लड़की उसे प्रतिउत्तर देती है कि हमारे वेद तो आपके इस्लाम से करोड़ो वर्ष पुराने हैं एवं उसमें विशुद्ध एकेश्वरवाद अर्थात केवल एक ईश्वर की उपासना का प्रावधान बताया गया हैं जबकि मुसलमानों को यह भ्रान्ति हैं कि वे केवल एक अल्लाह की इबादत करते हैं क्यूंकि उनके तो कलमे में भी एक अल्लाह के अलावा रसूल भी शामिल है, नबी, फरिश्ते, शैतान,जिन्न आदि भी हैं। अर्थात इस्लाम विशुद्ध एकेश्वरवाद नहीं है। विशुद्ध एकेश्वरवाद तो केवल वेदों में वर्णित हैं।
स्वामी दयानंद द्वारा बताये गए ईश्वर और देवता के अंतर को मुसलमान लोग समझ जाते तो यह शंका नहीं होती।
ईश्वर को परिभाषित करते हुए स्वामी दयानंद लिखते है कि जिसको ब्रह्मा, परमात्मादि नामों से कहते हैं, जो सच्चिदानन्दादि लक्षण युक्त है जिसके गुण, कर्म, स्वाभाव पवित्र हैं जो सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक, अजन्मा, अनंत, सर्वशक्तिमान, दयालु, न्यायकारी, सब सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता , सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फलदाता आदि लक्षणयुक्त परमेश्वर हैं उसी को मानता हूँ।
देव शब्द को परिभाषित करते हुए स्वामी दयानंद लिखते है कि उन्हीं विद्वानों, माता-पिता, आचार्य, अतिथि, न्यायकारी राजा और धर्मात्मा जन, पतिव्रता स्त्री, स्त्रीव्रत पति का सत्कार करना देवपूजा कहलाती है।
वेदों में तो पूजा के योग्य केवल एक सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, भगवान को ही बताया गया है। देव शब्द का प्रयोग सत्यविद्या का प्रकाश करनेवाले सत्यनिष्ठ विद्वानों के लिए भी होता हैं क्यूंकि वे ज्ञान का दान करते हैं और वस्तुओं के यथार्थ स्वरुप को प्रकाशित करते हैं।
स्वामी दयानंद देव शब्द पर विचार करते हुए ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदविषयविचार अध्याय 4 में लिखते हैं की दान देने से ‘देव’ नाम पड़ता हैं और दान कहते हैं अपनी चीज दूसरे के अर्थ दे देना। 'दीपन’ कहते हैं प्रकाश करने को, 'द्योतन’ कहते हैं सत्योपदेश को, इनमें से दान का दाता मुख्य एक ईश्वर ही है की जिसने जगत को सब पदार्थ दे रखे है तथा विद्वान मनुष्य भी विद्यादि पदार्थों के देनेवाले होने से देव कहाते है। दीपन अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों का प्रकाश करने से सूर्यादि लोकों का नाम भी देव हैं। तथा माता-पिता, आचार्य और अतिथि भी पालन, विद्या और सत्योपदेशादी के करने से देव कहाते हैं। वैसे ही सूर्यादि लोकों का भी जो प्रकाश करनेवाला हैं, सो ही ईश्वर सब मनुष्यों को उपासना करने के योग्य इष्टदेव हैं, अन्य कोई नहीं। कठोपनिषद 5/15 का भी प्रमाण हैं की सूर्य, चन्द्रमा, तारे, बिजली और अग्नि ये सब परमेश्वर में प्रकाश नहीं कर सकते, किन्तु इस सबका प्रकाश करनेवाला एक वही है क्यूंकि परमेश्वर के प्रकाश से ही सूर्य आदि सब जगत प्रकाशित हो रहा हैं। इसमें यह जानना चाहिये की ईश्वर से भिन्न कोई पदार्थ स्वतन्त्र प्रकाश करनेवाला नहीं हैं , इससे एक परमेश्वर ही मुख्य देव हैं।
अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र वसु, रूद्र, आदित्य, इंद्र,सत्यनिष्ठ विद्वान,वीर क्षत्रिय, सच्चे ब्राह्मण, सत्यनिष्ठ वैश्य, कर्तव्यपरायण शूद्र से लेकर माता-पिता, आचार्य और अतिथि तक सभी मनुष्यों के लिए कल्याणकारी हैं इसलिए सम्मान के योग्य हैं।
जिस प्रकार से माता-पिता, आचार्य आदि सभी खिदमत करने वाले मगर उनका सम्मान हर मुसलमान करता हैं कोई उन्हें यह नहीं कहता कि हम सेवक का नमन क्यों करे उसी प्रकार से सूर्य, वायु, अग्नि,पृथ्वी, पवन आदि भी मनुष्य कि सेवा करते हैं इसलिए सम्मान के योग्य हैं।
सूर्य नमस्कार और वन्दे मातरम सम्मान देने के समान है न कि पूजा करना है।
सम्मान करना एवं पूजा करने में भेद को समझने से इस शंका का समाधान सरलता से हो जाता है जिसका श्रेय स्वामी दयानंद को जाता है।
डॉ विवेक आर्य
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