Thursday, March 24, 2016

६ चैत्र 19 मार्च 2016 😶 “हम सन्मार्ग से न हटें ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् मा प्र...

६ चैत्र 19 मार्च 2016

😶 “हम सन्मार्ग से न हटें ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमानिः । 🔥🔥
🍃🍂 मान्मः स्थुर्नो अरातयः ।। 🍂🍃

ऋ० १० । ५७ ।१; अथर्व० १३ । १ । ५९

ऋषि:- बन्धु: सुबन्धुः।। देवता- विश्वेदेवाः ।। छन्द:- गायत्री ।।

शब्दार्थ- हे परमेश्वर!
हम सन्मार्ग को छोड़कर मत चलें ऐश्वर्ययुक्त होते हुए हम यज्ञ को छोड़कर मत चलें। अदानभाव हमारे अन्दर न ठहरें।

विनय:- हे इन्द्र, परमैश्वर्यवान्!
हम तुमसे ऐश्वर्य नहीं माँगते। हमारी तुमसे याचना तो यह है कि हम सदा सन्मार्ग पर चलते जाएँ, इसको कभी न छोड़ें। सन्मार्ग पर चलते हुए हमें जो कुछ ऐश्वर्य मिलेगा वही सच्चा ऐश्वर्य होगा। जिस किसी तरह मिला हुआ ‘ऐश्वर्य’ ऐश्वर्य नहीं होता- उसमें ईश्वरत्व नहीं होता- सामर्थ्य नहीं होता। सन्मार्ग से जो कुछ ऐश्वर्य मुझे मिलेगा, उस ऐश्वर्य को तुझसे पाकर हे इन्द्र! मेरी प्रार्थना है कि मैं यज्ञ से कभी विचलित न होऊँ। यज्ञ करता हुआ- उपकार करता हुआ ही तेरे दिये ऐश्वर्य को भोगूँ। जो कुछ तुम्हारे द्वारा मुझे मिला है, उसे तुम्हें दिये बिना भोगना चोरी है। ऐसा पाप स्वार्थवश हम कभी न करें। यज्ञ को, आत्मत्याग को, परार्थ में आत्म-विजर्जन को हम कभी न भूलें। यज्ञ के बिना भोग भोगना विषपान करना है, अतः हमारी दूसरी प्रार्थना है कि हम यज्ञ को कभी न छोड़ें।
हमारी तुमसे यह प्रार्थना नहीं है कि तुम हमारे शत्रुओं का नाश कर दो। हमारी याचना तो यह है कि हमारे अन्दर 'अराति’ न ठहरें। हमारे अन्दर अराति न हो तो बाहर हमारा अराति कोई कैसे हो सकता है। अराति अर्थात् अदानभाव होते हुए यज्ञ असम्भव है, अतः हमारा एक-मात्र शत्रु अदानभाव ही है। यह अन्दर का शत्रु ही हमारा शत्रु है। हे प्रभो! इससे हमारी रक्षा करो। फिर बाहर के किसी शत्रु की हमें परवाह नहीं।


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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