Saturday, March 19, 2016

यह नर-नाहर कौन था? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु यह घटना प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की है। रियासत...

यह नर-नाहर कौन था? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

यह घटना प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की है। रियासत बहावलपुर

के एक ग्राम में मुसलमानों का एक भारी जलसा हुआ। उत्सव की

समाप्ति पर एक मौलाना ने घोषणा की कि कल दस बजे जामा

मस्जिद में दलित कहलानेवालों को मुसलमान बनाया जाएगा,

अतः सब मुसलमान नियत समय पर मस्जिद में पहुँच जाएँ।

इस घोषणा के होते ही एक युवक ने सभा के संचालकों से

विनती की कि वह इसी विषय में पाँच मिनट के लिए अपने विचार

रखना चाहता हैं। वह युवक स्टेज पर आया और कहा कि आज के

इस भाषण को सुनकर मैं इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि कल कुछ

भाई मुसलमान बनेंगे। मेरा निवेदन है कि कल ठीक दस बजे मेरा

एक भाषण होगा। वह वक्ता महोदय, आप सब भाई तथा हमारे वे

भाई जो मुसलमान बनने की सोच रहे हैं, पहले मेरा भाषण सुन लें

फिर जिसका जो जी चाहे सो करे। इतनी-सी बात कहकर वह

युवक मंच से नीचे उतर आया।

अगले दिन उस युवक ने ‘सार्वभौमिक धर्म’ के विषय पर

एक व्याख्यान  दिया। उस व्याख्यान में कुरान, इञ्जील, गुरुग्रन्थ

साहब आदि के प्रमाणों की झड़ी लगा दी। युक्तियों व प्रमाणों को

सुन-सुनकर मुसलमान भी बड़े प्रभावित हुए।

इसका परिणाम यह हुआ कि एक भी दलित भाई मुसलमान

न बना। जानते हो यह धर्म-दीवाना, यह नर-नाहर कौन था?

इसका नाम-पण्डित चमूपति था।

हमें गर्व तथा संतोष है कि हम अपनी इस पुस्तक ‘तड़पवाले

तड़पाती जिनकी कहानी’ में आर्यसमाज के इतिहास की ऐसी लुप्त-

गुप्त सामग्री प्रकाश में ला रहे हैं।

उसका मूल्य चुकाना पड़ेगा

मुस्लिम मौलाना लोग इससे बहुत खीजे और जनूनी मुसलमानों

को पण्डितजी की जान लेने के लिए उकसाया गया। जनूनी इनके

साहस को सहन न कर सके। इसके बदले में वे पण्डितजी के प्राण

लेने पर तुल गये। आर्यनेताओं ने पण्डितजी के प्राणों की रक्षा की

समुचित व्यवस्था की।

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