“संसार में बहुत लोग असफल हो जाने के डर से प्रतिस्पर्धा में नही पड़ते। यह कहना कि प्रभु ने जो दिया है मैं उसमें सन्तुष्ट हूँ। यह संतोष नहीं कमजोरी है, भय है, नकारात्मक संतोष है। अपने आप को विकसित करने से रोक देने जैसा है, फूल को खिलने से रोक देने जैसा है।।
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डॉ० कुलवीर बैनीवाल 📞09254222201☎
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