२७ भाद्रपद 12 सितम्बर 2015 😶 “ आत्मा के दो अजर पक्ष! ” 🌞 🔥🔥ओ३म् इमौ ते पक्षावजरौ पतत्रिणौ याभ्याथं रक्षाथंस्यपहथंस्यग्रे। 🔥🔥 🍃🍂 ताभ्यां पतेम सुकृतामु लोकं यत्रअऋषयो जग्मु: प्रथमजा: पुराणा: ।। 🍂🍃 यजु:० १८ । ५२ । ऋषि:- शुन: शेप: ।। देवता- अग्नि: ।। छन्द:- विराडार्षीजगती।। शब्दार्थ- हे अग्ने! तेरे ये अजर ऊपर उड़ानेवाले दो पक्ष, दो पंख हैं जिनसे कि तू राक्षसों को हटा देता है, मार भगाता है, उन्हीं पंखों से ही हम भी उस श्रेष्ठ कर्मवालों के लोक को जहाँ हमसे पहले पैदा हुए पुराने ज्ञानी लोग पहुँचते रहे हैं हम भी उड़े, उन्नत होते हुए पहुँचे। विनय:- हे अग्ने! हे आत्मन्! तू अपने दोनों पक्षों द्वारा सब बाधाओं को हटाता हुआ निरन्तर गति करता जाता है। तुझमें ‘शवस्’ और 'घृत’ की, बल और दीप्ती की, कर्म और ज्ञान की, कार्य और कारण की, स्थुल और सूक्ष्म की व पृथिवी और दिव् की जो दो विभित्र शक्तियाँ निहित हैं वे ही तेरे दो अजर पक्ष हैं, कभी जीर्ण न होने वाले तेरे दो पंख हैं, जोकि पतनवाले हैं, तेरे ऊपर उड़ानेवाले हैं, उठानेवाले हैं। इनसे तू उड़ता हैं, सब बाधाओं को दूर करता हुआ उड़ता हैं, उन्नत होता है।उन्नति को रोके रखनेवाले ही 'रक्षस्’ होते हैं। इन सब राक्षसों को, रुकावटों को, विघ्नों और बन्धनों को तू अपने इन दोनों पक्षों की समतोल क्रिया द्वारा और सम्मिलित यत्न द्वारा काटता हुआ चलता जाता है। हे अग्ने! हम भी तेरे इन दिव्य पंखों का सहारा लेकर उड़ना चाहते हैं। हम अब अपने जीवन में कर्म और ज्ञान की ऐसी समतोलता रखते हुए बड़े कि इससे हमारे आगे चलने में कभी कोई रुकावट न पड़े। जब कभी हम किसी एक पाश्र्व में कमी या अति करते हैं अर्थात् ज्ञान में ग्रस्त हो कर्म छोड़ देते हैं या ज्ञान को भूल कर्म में बह जाते हैं, अथवा जब कभी हम इन दोनों को परस्पर सम्बद्ध नहीं रखते, अर्थात् ज्ञान के अनुसार कर्म नहीं करते या कर्म से अगला ज्ञान नहीं प्राप्त करते, तभी रुकावट होती है, तभी राक्षसों की जीत हो जाती है, अतः हे अग्ने! यदि हम तुम्हारे इन दिव्य अजर पंखों को पा सकेंगे तभी हम बिना रुकावट उन्नत हो सकेंगे और उस लोक को पहुँच सकेंगे जहाँ कि उत्तम कर्म और उत्तम ज्ञान अपनी पराकाष्ठा को प्राप्त हुए है; उस 'सुकृतां लोक’ को, श्रेष्ठ कर्मवाले पुरुषों के लोक को, पहुँच सकेंगे जहाँ कि पुराने प्रख्यात महाज्ञानी पहुँचते रहे हैं। 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 ……………..ऊँचा रहे 🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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