ओउम् भूपेश आर्य~८९५४५७२४९१ पाखंडी शिरोमणी माधवाचार्य को वेद के"इन्द्र वयुमनीराधं हवामहे" इस मन्त्र भाग में क्रष्ण घुसेडकर राधा के स्वप्नन में गायका सुरैया सुन्दरी नजर आती है। हिन्दुओं के घर में ही जब वेदों के दुश्मन पौराणिक पंडित मौजूद होवें और वे जानबूझकर धूर्तता करें तो वेदों के अपौरुषेयत्व की रक्षा क्या मुसलमान करने आवेंगे? सनातनी जनता के लिए यह कलंक की बात है कि ऐसे नास्तिक पण्डितों की वह कद्र करती है। वेदों के हजारों मंत्रों में लाखों शब्दों का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ व्याकरण कि रीति से निरुक्तादि की शैली से किया जाता है। वेद ईश्वरीय ज्ञान के भण्डार हैं तथा आदि स्रष्टि में मनुष्यों को मिलने से उनमें व्यक्ति इतिहास या किसी भी स्थान का वर्णन नहीं है।पर कुछ पाखण्डियों ने यदि किसी भी नाम का शब्द वेद के किसी पद से मिलता जुलता भी दीखने लगता है,तो वह बकने लगता है कि वेद में अमुक व्यक्ति का वर्णन आया है। जैसे ये मन्त्र है- “इन्द्र वयुमनिराधं हवामहे” (अथर्ववेद १९/१५/२) इसमें अनुराधम् पद में इस अंधे को राधा दीख पडी है। सत्यार्थ यह है देखिये-(वयम्) हम लोग(आराधम्) आराधना करने योग्य या सिद्ध कराने हारे (इन्द्रम्) ऐश्वर्यशाली परमेश्वर की(हवामहे) स्तुति करते हैं। वेद मन्त्रों में राधा और क्रष्ण की गन्ध भी नहीं है। पर फिर भी इन पौराणिकों को वेद में राधा क्रष्ण नजर आ रहे हैं। इस प्रकार श्रीक्रष्ण जी महाराज को पुराणों ने कल्पित कथाओं द्वारा हर प्रकार से बदनाम करने का प्रयास किया है। राधा से नाजायज सम्बन्ध,कुब्जा से व्यभिचार,गोपियों से विषय भोग एवं काम क्रीडा करना आदि झूठी लज्जाजनक बातें हैं। किर्तन प्रणाली जिसका पौराणिकों में काफी प्रचार हो रहा है,महान क्रष्ण को बदनाम करने की द्रष्टि से अत्यधिक मूर्खतापूर्ण चीज है। ये पढिये-अपहायं निज्र कर्म क्रष्णेति यो वादिन:। ते हरेर्द्वेषिण पापा: धर्मार्थ जन्म यद् धरे।। अर्थ-जो लोग वेदोक्त धर्म को त्यागकर केवल हरे क्रष्ण जपते रहते हैं वे क्रष्ण के दुश्मन हैं,पापी हैं।क्योंकि क्रष्ण का जन्म ही वेद धर्म प्रचार के लिए हुआ था। इस प्रमाण से वर्तमान कीर्तन प्रणाली गलत सिद्ध है जाती है।जिसका पुराणों ने प्रचार करके हिन्दु जाति में घोर पाखण्ड फैला रखा है।बहुत से अज्ञानी तो क्रष्ण को भी छोडकर राधे राधे रटते हैं।मानो राधा सुन्दरी से उनका कोई निकट का रिश्ता हो। धर्म के नाम पर इस कौम को इन पापों ने किस कदर मूर्ख बनाया है यह अक्लमंद लोग देखें। पुराणों ने एक ईश्वर के स्थान पर हजारों देवी देवताओं की पूजा हिन्दू कौम में जारी करा दी। परमात्मा के स्थान पर महादेव का लिंग(मूत्रेन्द्रिय) जनता से पूजवा डाला। विष्णु ,शिव व गणेश पुराणों के अनुसार प्रथ्वी पर व्यभिचार में लगे शापों का दण्ड भुगतने ही आते हैं।इनके गन्दे चरित्रों का पुराणों में सविस्तार वर्णन है। नाम जपने के इच्छुकों को शुद्ध मन से ओउम् व गायत्री का मानसिक जप करना चाहिए। समस्त वेद और शास्त्रों में केवल ‘ओउम्’ जपने का ही विधान है। कल्पित अवतार,विष्णु तथा शिव आदि के मन्दिरों पर सर पटकने वाले अपना मनुष्य जन्म व्यर्थ खोते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम,योगेश्वर श्रीक्रष्ण महाराज हमारी आर्य जाति के निष्कलंक ईश्वर भक्त महान् पूर्वज थे। उनका नाम जपने के बजाय उनके कार्यों एवं उनके जीवनादर्शों को अपने जीवन में उतारना प्रत्येक व्यक्ति,समाज व देश के लिए उपयोगी होगा। परमात्मा सबको सदबुद्धि दें।
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