अब्बा…!!! कुर्बानी तो हमने दी ना… फिर ये बकरे को दर्द क्यो हो रहा है.? सहमी हुई निगाहो से ये मासूम सवाल पूछने वाला नन्हा अली.. अपने बाप के हाथो मे खून से लाल छुरी देख रहा था कुछ देर पहले हुई वीभत्सता उसके दिलो दिमाग मे घूम रही रही थी… जब उसके बाप ने तेज धार की हुई छुरी थोडा नाप तौल कर बकरे की गर्दन पर फिराई थी और खून का पनियाला फुट पड़ा था सामने पडा बकरा गर्दन उतारे जाने के बाद भी हल्की हल्की जुम्बिश ले रहा था… जिसे देख मासूम अली को खौफ से झुरझुरी आ रही थी “ऐसा रिवाज है बेटा”.. अली के बाप ने जवाब दिया.. “एक बार इब्राहीम ने अल्लाह के लिए अपने सच्चे ईमान की तौल के लिए अपने बच्चे की कुर्बानी देनी चाही थी… जिससे अल्लाह ने खुश हो के बच्चे की जगह "दुम्बा” रख दिया था “तो अब्बा !! आप भी मेरी कुर्बानी दे दो… अल्लाह मेरी जगह भी दुम्बा रख देंगे”… मासूम अली ने कहा और अली के जवाब से लाजवाब अली का बाप मन ही मन अल्लाह पर अपने ईमान की तौल करता रहा शाम हो चुकी है अली के सवाल मटन की खुशबु से उल्लास मे बदल गए है बकरो की मिमियाहट शांत हो चुकी है पीछे रह गई… एक अजीब सी खामोशी..और दरवाजो पे खडे बकरो की खाल के लिए मोल भाव करते कसाई हवा मे ताजे गोश्त की दुर्गन्ध और नालो मे बहता बकरो का खून… और शायद किसी बकरे की “आह” “ऐ इन्सान…!!! गर्दन मेरी कटी खून मेरा बहा… दर्द मुझे हुआ और… कुर्बानी, शबाब और सारा पुण्य तेरा?” पीछे सवाल कई छूट गए है अल्लाह ने तो कुरान मे फरमाया नही की मुसलमान इब्राहीम की तर्ज पर कुर्बानी दे… तो कही जीभ पर लगे मटन के स्वाद ने तो इस रिवाज को पक्का करने मे भूमिका नही निभाई? मांसाहार का विरोध जायज नही… पर जानवरो का कत्ल सिर्फ कसाईखानो मे होना चाहिए… सडक पर बच्चो के हाथ मे छुरी थमा के उनसे जानवर जिबह कराना सामाजिक अपराध है कही ये रिवाज “दुनिया को दारुल ऐ इस्लाम” बनाने की कवायद मे जुटे जिहादियो द्वारा… बच्चो को “सर कलम” करने की ट्रेनिंग का प्रथम पाठ तो नही.? क्या अली के बाप को अल्लाह पर उसके ईमान की तौल मिल गई? बाकी सवालो का पता नही पर… एक जवाब हमे जरुर मिल गया है.. ●आज एक बाप… और एक रिवाज…. ने मिल कर एक बच्चे के अन्दर के इन्सान का कत्ल कर दिया है●
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