Tuesday, September 22, 2015

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साम वन्दना : सुरूप रक्षा ViewEdit Submitted by Rajendra P.Arya on Mon, 2011-05-30 17:24. साम वन्दना सुरूपकृलुमूतये सुदुधामिव गोदुहे| जुहूमसि द्दवि द्दवि ||साम १६० || हम प्रतिदिन तुम्हें पुकार रहे, प्रभु आ जाओ, प्रिय आ जाओ| ये शत्रु न कर दें नष्ट हमें, तुम आकर हमें बचा जाओ|| यह रूप सरूप किया तुमने, आकर्ष अनूप दिया तुमने, सुकुमार कली सी कोमलता रस रंग स्वरूप दिया तुमने| ललचाये खड़े लुटेरे हैं, प्रभु इनसे हमें बचा जाओ| ये शत्रु न कर दें नष्ट हमें, तुम आकर हमें बचा जाओ|| अति उत्तम दुग्धदायिनी गौ, पय सहज दुहाती अपना गौ, वह दुहने वाला गोपालक संरक्षित रखता अपनी गौ|| प्रभुवर हम गाय तुम्हारी हैं, तुम गोपालक बनकर आओ| ये शत्रु न कर दें नष्ट हमें, तुम आकर हमें बचा जाओ|| सुन्दर शरीर आकर्षक हो, यह हृदय स्नेह सुख वर्षक हो, न्याय नियम सम्पन्न बुद्धि से, यह रूप शान्ति का वर्धक हो| यह रूप सुरूप सुरक्षित हो, हे नाथ सूत्र वह बतलाओ| ये शत्रु न कर दें नष्ट हमें, तुम आकर हमें बचा जाओ|| *** *** *** *** *** *** *** गोपय दुहने वाले के लिए गौ के सम सुन्दर रूपों को, निर्मित करता जो प्रभु उसको, हम नमन करें शुचि रूपों को||


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