१० आश्विन 26 सितम्बर 2015 😶 “ सत्पात्र में दान की महती महिमा ! ” 🌞 🔥🔥ओ३म् शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त सं किर । 🔥🔥 🍃🍂 कृतस्य कार्यस्यि चेह स्फातिं समावह ।। 🍂🍃 अथर्व० ३ । २४ । ५ ऋषि:- भृगु: ।। देवता- वनस्पति: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।। शब्दार्थ- हे सौ हाथों वाले मनुष्य! तू इकट्ठा कर और हे हज़ार हाथों वाले! तू दान कर, बिखेर। (सौ-सौ सत्कार्यों से कमा और हज़ार-हज़ार हाथों से बाँट!) इस तरह अपने किये हुए की और किये जाने वाले की बढ़ती को, फसल को तू इस संसार में ठीक प्रकार से प्राप्त कर। विनय:- हे दो हाथों वाले मनुष्य! तू सौ हाथों वाला होकर धन संग्रह कर, सौ गुनी शक्ति से धन-धान्यादि ऐश्वर्यों को इकट्ठा कर, परन्तु इस उपार्जन किये हुए अपने धन को हज़ार हाथों वाला होकर सत्पात्र में दान कर दें। धन-संग्रह करने के लिए यदि तू सौ हाथों वाला हुआ है तो धन को दूर-दूर बाँट देने के लिए, दान कर देने के लिए तू हज़ार हाथों वाला हो जा। इससे निःसन्देह तेरी बढ़ती होगी, तेरी उन्नति होगी, तेरा बड़ा भारी कल्याण होगा। तू अपनी ‘कृत’ और 'कार्य’ कमाई को देख। तूने जो कमाया है वह तो कमाया ही है, वह तेरी 'कृत’-कमाई है; परन्तु जो तूने हज़ार हाथों से दूर-दूर अपने दान को फैलाया है वह भी तेरी कमाई है। वही कमाई वस्तुतः 'कार्य’ है जो भविष्य में अपना फल दिखलाएगी। वास्तव में, जैसे समाहत किये धान्य को सत्क्षेत्र में संकिरण कर देने से उसका एक-एक दाना हज़ारों दानों को देने वाले पौधे के रूप में पुष्पित और फलित हो जाता है, उसी प्रकार किसी यज्ञिय कार्य में दिया हुआ धन अनन्त गुणा होकर फलित हुआ करता है। इस प्रकार हे मनुष्य! तू देख की तू कितनी बड़ी भारी फसल का स्वामी हो जाता है, तू कितनी बड़ी भारी 'स्फाति’ को प्राप्त हो जाता है। यह बढ़ती 'शतहस्त से लेने और सहस्त्रहस्त से देने’ के सिद्धांत का फल है। हे मनुष्य! तू इस सिद्धांत का पालन करता हुआ अपनी इस बढ़ती को सदा ठीक प्रकार से प्राप्त करता रह। 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 ……………..ऊँचा रहे 🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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