आज का सुविचार (30 सितम्बर 2015, बुधवार, आश्विन कृष्ण तृतीया) नौकरी की दुनिया का एक अनवीनीकरण उदाहरण- मैं भिलाई इस्पात संयन्त्र अस्पताल में पैदा हुआ। बिस्तर कारखाने में उत्पन्न लोहे का था। घर में जिस पालने झूला झूला वह भी कारखाने के लोहे का था। कारखाने के लोहे से बने रेठे के सहारे मैं डुगुर-डुगुर चला। कारखाने के फार्म़ों में उगी सब्जियां अनाज ने मेरा तन बनाया। कारखाने के विद्यालय में पढ़ा। कारखाने के लोहे इस्पात से बने साइकिल स्कूटर चलाए। कारखाने के स्टेनलेस स्टील बर्तनों मे खाना खाया। कारखाने के लोहे से बने घर में रहा। कारखाने में ही नौकरी लगी। उसका धूल प्रदूषण खाया। बच्चों को भी वही सब दिया जो मुझे मिला। या खुदा.. इससे पहले कि इसी कारखाने के लोहे से बने मरघट में दफन जाऊं मुझसे कारखाना छुड़ा। जो नया कदम नहीं उठाते हैं वे मृतवत जीते हैं। नवीयो पदम् अक्रमुः। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)
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