ओउम प्रकीर्ति पुरष नम: सामवेद संहिता : प्रथम अध्याय: प्रथम दशति: अथ आग्नेयं पर्व काण्ड अग्न आयाहित्यस्या भारद्धाज ऋषि: —————————————— मंत्र:9 भावार्थ: राजिंदर वैदिक हे ज्ञानप्रद प्रकाशमान परमात्मा! आपको उपासना योग यज्ञ अभ्यास का ज्ञानी पुरुष मस्तिस्क के मूर्धन्य में, मस्तिष्क के हृदयाकाश में आविर्भूत प्रत्यक्ष करता है. प्रकाशित करता है. ———————- मंत्र:10 भावार्थ: राजिंदर वैदिक हे प्रकाशमान परमात्मा! पूर्ण रक्षा के लिए, सुख में बसाने वाले उपासनायोग यज्ञ अभ्यास कर्म को हमारे लिए पूर्ण कीजिये. क्योकि आप ही हमारे देखने के लिए प्रकाशक है. ——यह प्रथम दशति पूर्ण हुई —
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