ओउम् भूपेश आर्य~8954572491 अवतारवाद:- प्रश्न१-गीता अध्याय ४ श्लोक ८ में लिखा है कि अवतार तीन काम करने के लिए होते हैं- (1) सज्जनों की रक्षा । (2) दुष्टों का विनाश । (3) धर्म की स्थापना । इसका अर्थ स्पष्टतया यह हुआ कि कौन व्यक्ति अवतार है और कौन नहीं? यह जांचने की कसौटी गीता में पेश की गयी है कि जो व्यक्ति इन तीन कर्मों को करे वही अवतार होगा और जो इन तीन कर्तव्यों का पालन न करे , वह मनुष्य होगा।यह तीन ही कर्म अवतारों के प्रधान कार्य होते हैं,जिनके लिए वह अवतरित होते है। तब सप्रमाण बतायें कि पौराणिकों के अन्य चौबीस अवतारों में से अब तट किस किस अवतार ने उपरोक्त तीनों कर्तव्यों का पालन करके दिखाया है? पौराणिक साहित्य से तो ऐसा सिद्ध है कि अभी तक तो एक भी अवतार माने जाने वाले व्यक्ति ने गीता की इन तीनों शर्तों को पूरा नहीं किया है इसलिए उनमें से एक भी अवतार माना नहीं जा सकता है। प्रश्न २- ईश्वर का कार्यक्षेत्र सारा भूमण्डल व सारा विश्व होता है।उसके सारे कार्य संसार भर के हित के लिए होते हैं। तब माने हुए २४ अवतारों का कार्य क्षेत्र केवल भारतवर्ष और उसमें से भी कुछ थोडा सा क्षेत्र क्यों रहा? जबकि मनुष्य की आबादी तो सारी प्रथ्वी पर थी। प्रश्न ३. विष्णु ने भागवत पुराण के स्कन्द ४ ,अध्याय १८ में स्वयं स्वीकार किया है कि मैने रामावतार में महान दु:ख उठाये थे।पराधीन होने से ही मुझे राम का अवतार लेना पडा था।ये सब बातें राम की लोक कल्याण भावना से स्वेच्छया ईश्वरावतार लेना सिद्ध नहीं करती हैं। प्रश्न ४. देवी भागवत पुराण के स्कन्ध १, अध्याय ४,श्लोक ४६ से ६१ तक तथा स्कन्द ५ ,अध्याय १, श्लोक ४७ से ५० तक के अन्दर स्पष्ट शब्दों में घोषणा की गयी है कि विष्णु का कोई अवतार स्वेच्छा से लोक कल्याण के लिए नहीं होता है तथा स्वेच्छा से अवतार मानने वालों को मूर्ख बतलाया गया है।तब क्या पौराणिक विद्वान देवी भागवत को झूठा ग्रन्थ मानते हैं। प्रश्न५. गीता की कसौटी पर श्रीक्रष्ण जी भी अवतार सिद्ध नहीं होते हैं क्योंकि उनके कार्य भी पारिवारिक शत्रुता का बदला कंस से लेना और कौरव पाण्डवों से सम्पत्ति के बटवारे में हुये घरेलु झगडों में अपने बहनोई अर्जुन की मदद करना मात्र था।अत: गीता की कसौटी पर श्रीक्रष्ण जी को अवतार सिद्ध करें। प्रश्न६. श्री क्रष्ण ने पौराणिक मान्यतानुसार गीता में अर्जुन से कहा है कि - “हे अर्जुन! युद्ध क्षेत्र में तेरे सभी शत्रु काल द्वारा मारे जा चुके हैं तू इन मरे हुए लोगों को मारकर निमित्त मात्र बनकर यश प्राप्त कर कर ले।जो जन्मा है,उसकी म्रत्यु तो अनिवार्य होनी ही है"।(गीता अध्याय ११ श्लोक ३२ व ३३) इससे सिद्ध है कोई भी प्राणी अपनी निश्चित आयु के समाप्त होने पर ही म्रत्यु को प्राप्त होता है उससे पूर्व नहीं। राम रावण, क्रष्ण कंस आदि सभी अपने निश्चित आयु के समाप्त होने तक ही जीवित रहे थे उसकी समाप्ति पर राम ने सरयु नदी में डूबकर,रावण ने युद्ध में मरकर,क्रष्ण के पैर में बहेलिया ने बाण मारकर, व क्रष्ण ने कंस की आयु समाप्त होने तक, सभी ने अपनी पूर्ण आयु भोगकर म्रत्यु प्राप्त की थी। अब भी रोजाना लाखों जीव आयु की समाप्ति पर मरते है।तब ईश्वरावतार की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है।क्योंकि समय से पूर्व कोई किसी को नहीं मार सकता है यह गीता का सिद्धान्त है।तब ईश्वरावतार को दुष्टों के नाशार्थ आवश्यकता सिद्ध करें। प्रश्न६. बतावें कि राम व क्रष्ण आदि किसी भी अवतार ने ऐसा कौन सा कार्य किया जो मनुष्य नहीं कर सकता था। जिसके लिए उन्हें ईश्वरावतार माना जा सके। प्रश्न ७. महाभारत सभा पर्व अध्याय १४, श्लोक ६७ में श्रीक्रष्ण जी ने कहा है कि,हम जरासन्ध के भय के मारे मथुरा छोडकर द्वारिका को भाग गये थे। क्या प्रबल शत्रु से डरकर भाग जाना क्रष्ण के ईश्वरत्व का खुला उपहास नहीं है? प्रश्न ९. श्रीक्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ रानियां होना क्या श्रीक्रष्ण को ‘योगेश्वर’ के स्थान पर 'भोगेश्वर’ सिद्ध नहीं करता? प्रश्न १०. नरसिंह अवतार का वध करने और उसका सर काटने व उसकी देह की खाल उतारने की घटना लिंग पुराण पूर्वार्ध अध्याय ९६, में दी गयी है,तो जिसकी इस प्रकार दुर्गति हो तब वह ईश्वरावतार कैसे माना जा सकता है? प्रश्न ११. मत्स्य,कूर्म,वाराह,न्रसिंह,हयग्रीव आदि अवतार रुपी पशुओं व जीवों को ईश्वरावतार कैसे माना जा सकता है? जबकि इन्होने सज्जनों की रक्षा तथा दुष्टों का विनाश व धर्म का प्रचार कभी नहीं किया था तथा ये जीव जन्तु बिल्कुल बे पढे लिखे व मूक एवं मूर्ख अर्थात निरे पशु थे। प्रश्न १२. भागवत पुराण स्कन्ध १३,अध्याय ३१, श्लोक २ ज्वाला प्रसाद की टीका बम्ब्ई छापा में गोपियों ने श्री क्रष्ण जी को सम्भोग का पति बताया है।श्री क्रष्ण जी को भागवतकार ने सम्भोग का पति बताकर उनके ईश्वरत्व में कौन से चार चांद लगाये हैं यह बतावें? प्रश्न१४. सती तुलसी व सती व्रन्दा के साथ उनके पतियों का रुप बनाकर उनको धोखा देकर व्यभिचार करने पर उन सतियों के श्रापों के कारण विष्णु जी को दण्ड भुगतने के लिए अवतार लेने पडे थे।यह विवरण शिवपुराण में दिये गये हैं।तब लोक कल्याण के लिये विष्णु के स्वेच्छया से अवतार लेने की बात स्वयं गलत हो जाती है।क्या पौराणिक विष्णु उपरोक्त घटनाओं से परनारी लम्पट सिद्ध नहीं होता है? प्रश्न १५. धर्म संहिता अध्याय १०, में लिखा है कि विष्णु अवतार लेने का उद्देश्य व्यभिचार की अत्रप्त वासनाओं की पूर्ति करना मात्र था।अपने शास्त्र की इस बात को आप गलत क्यों मानते हैं? प्रश्न १६. भागवत पुराण के स्कन्ध ८, श्लोक २४ में लिखा है कि- मत्स्यावतार के शरीर की लम्बाई एक लाख योजन अर्थात आठ लाख मील थी।तो हिसाब लगाकर बतायें कि हमारी प्रथ्वी पर वह कहां और किस प्रकार रहता होगा? जबकि प्रथ्वी की परिधि तो केवल २४ हजार मील ही है। प्रश्न१६. चौबीस अवतारों की सूची पेश करें और बतावें कि भागवत पुराण स्कन्ध १ व ३ में जो अधूरी सूचियां अवतारों की दी गयी हैं उनमें परस्पर विरोध क्यों है? क्या व्यास अवतार को २४ अवतारों के नाम भी ठीक ठाक याद नहीं थे? प्रश्न १८. जब अवतारों का उद्देश्य ही अत्याचारों व पापों का विनाश एवं धर्म की स्थापना होती है तो तब जिन युगों में धर्म अधिक होता है तब अधिक अवतार क्यों होते हैं ? तथा जब कलयुग में तीन चरण अधर्म के होते हैं, तब केवल एक ही अवतार क्यों होता है,जबकि सबसे अधिक अवतार कलयुग में होने चाहियें। प्रश्न १८. पदमपुराण पाताल खण्ड अध्याय ७५ में लिखा है। कि श्री क्रष्ण ने नारद को नारदी अर्थात औरत बनाकर उसके साथ रमण किया।तो क्या अवतार का अवतार के साथ ऐसा कुकर्म करना अवतारपन का सबूत है? प्रश्न १९. महाभारत उद्दोग पर्व अध्याय ४९ में लिखा है कि नर और नारायण नाम के दो ऋषि गन्धमादन पर्वत पर तपस्या किया करते थे।जब कहीं युद्ध के अवसर आते थे,तो ये दोनों ही ऋषि वहां अवतार लेकर युद्ध किया करते थे।अर्जुन व क्रष्ण दोनों इन्ही नर व नारायण ऋषियों के अवतार थे।इस प्रमाण में स्पष्ट है कि श्री क्रष्ण ईश्वरावतार न होकर नारायण नाम के किसी ऋषि के अवतार थे अर्थात उक्त ऋषि ने युद्ध करने को क्रष्ण का जन्म लिया था। अब पौराणिक विद्वान बतावें कि महाभारत में उनके अवतार व्यास जी ने उपरोक्त बात लिखकर ईश्वर के क्रष्णावतार लेने का खण्डन क्यों किया है? प्रश्न २०. राम के काल में राम व परशुराम दोनों अवतार एक ही समय में हुए व दोनों आपस में लड पडे।एक दूसरे को पहचान भी न सके। क्या यह अवतारवाद का मजाक नहीं है? प्रश्न २१. महाभारत काल में व्यास जी,क्रष्ण व बलराम जी तीन अवतार क्यों एक साथ पैदा हो गये? एक ही अवतार से सारा काम क्यों नहीं पूरा कराया गया? क्या अवतार भी घटिया व बढिया किस्म के होते हैं? साथ ही यह भी बतावें कि एक विष्णु के एक साथ तीन अवतार कैसे बन गये? प्रश्न २३. पौराणिक धर्म के सारे अवतार उत्तर प्रदेश में ही क्यों पैदा हुए? भारत के अन्य भागों में व प्रथ्वी के अन्य देशों में क्यों नही पैदा हुए? प्रश्न २४. सारे अवतार क्षत्रिय वंश में ही क्यों पैदा हुुए? अन्य जातियों में क्यों नहीं जन्में? केवल एक अवतार परशुराम जो ब्राह्मणों में पैदा हुए सो उनको भी रामावतार अर्थात ठाकुर अवतार ने परास्त करके निस्तेज कर दिया।उसे कोई पूछता भी नहीं है? प्रश्न २५. शिवपुराण शतरुद्र संहिता अध्याय ११ व १२ ,में लिखा है कि शिवजी ने वाराह अवतार को मारकर उसका दांत तोड दिया तथा कूर्म अर्थात कछुआ अवतार की खोपडी उखाड दी तब ऐसों को कैसे अवतार माना जा सकता है ? जिसकी दुर्गति व वध शिवजी ने कर डाला हो। प्रश्न २६. यदि रामचन्द्र जी ईश्वर के अवतार होते तो उनको सन्ध्या करने की आवश्यकता ही क्यों होती? यदि सन्ध्या की तो किसकी की? क्या कोई अपनी ही सन्ध्या कर सकता है? यह तो भूल है।यदि राम ने सन्ध्या की तो क्या उनको अवतार होने का ध्यान ही नहीं था ,या वे भूल गये थे। यह सब भोलेपन की बातें हैं। पीछे से लोगों ने उनके विषय में बहुत सी झूठी बातें जोड ली हैं। अवतार मानने से जीवन पर प्रभाव- राम क्रष्ण आदि को ईश्वर मानने से हिन्दू जाति के आचार व्यवहार पर बुरा प्रभाव पडा है।प्रथम तो वह ईश्वर की उपासना न करके मूर्तिपूजक हो गये हैं।केवल राम-राम,सीता-राम,राधाक्रष्ण जपने को ही ईश्वर पूजा समझते हैं। दूसरे वह राम और क्रष्ण के जीवन का अनुकरण नहीं करते।वह समझते है कि रा क्रष्ण तो ईश्वर थे ,उनके जैसे आचरण हम साधारण मनुष्य नहीं कर सकते। यही कारण है कि हिन्दू जाति पतन की और गिरती जाती है। हिन्दुओं में इतनी निर्बलता आ गयी है कि वह अपने दु:खों को दूर करने का उपाय न करके ईश्वर अवतार का इंतजार करते हैं।वह समझते हैं कि जब ईश्वर अवतार लेगा तो हमारे कष्टों को दूर करेगा। उनको यह विश्वास नहीं रहा कि अब भी यदि वह परिश्रम करें तो ईश्वर उनकी सहायता कर सकता है।
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