Naresh Khare: स्वामी जी नवम समुल्लास मे लिखते है कि जब जीव शरीर छोडता है तब ‘यमालय'अर्थात आकाशस्थ वायु मे रहता है l कयोकि 'यमेन(ऋ.10/14/8)वायुना’(अथर्व.20/141/2)वेद मे लिखा है कि 'यम’ नाम वायु का है ,पश्चात 'धर्मराज'अर्थात परमेश्वर उस जीव के पाप-पुण्यानुसार जन्म देता हैl जीव वायु,अन्न,जल अथवा शरीर के छिद्र द्वारा दूसरे के शरीर मे ईश्वर की प्रेरणा से प्रविष्ट होता है lजो प्रविष्ट होकर क्रमश:वीर्य मे जा,गर्भ मे स्थित हो,शरीर धारण कर,बाहर निकलता हैl -:शंका:- जीव शरीर छोडने के बाद १२ दिन आकाशस्थ वायु मे विचरण कर,१३वे दिन मनुष्य के वीर्य मे आता है,तत्पश्चात गर्भ मे जाता हैlतो जो मनुष्य के वीर्य मे पहले से ही अनेक जीव शुक्राणुओं मे मौजूद है,तो यह कैसे सुनिश्चित किया जाये कि किस जीव ने १३वे दिन शरीर धारण किया है और कया १२ दिन आकाशस्थ वायु मे विचरण कर १३वे दिन जीव मनुष्य के वीर्य मे आता है तो कया वीर्य स्थल ही अनेक जीवो का निवास स्थान है शरीर धारण से पहले कया यह समझना चाहिए ? कृप्या शंका समाधान करे जी🙏 Pritesh Arya: कल हो न हो, अतः आज ही उत्तर दे रहा हूँ । 1) परमात्मा की अपेक्षा से जीवात्माओं की संख्या सान्त है जबकि जीवात्मा की अपेक्षा से जीवात्माओं की संख्या अनन्त है। 2) मृत्यु पश्चात् 7वें दिन जीवात्मा मनुष्यादि शरीर में भी वास करता है। 3) वायु जिसे हम श्वास में लेते हैं, जल जो हम पीते हैं, उसमें अनेक जीवात्माएं होती हैं। जो भोजन हम करते हैं उसमें भी जीवात्माएं होती हैं। उसी प्रकार हमारे शरीर के अन्दर अनेक जीवात्माएं होती हैं, जीवाणु, विषाणु, जोंक आदि के रूप में । अतः ये सोचना की केवल वीर्य में ही जीव रहता है, गलत होगा। कौन सा जीवात्मा मनुष्य शरीर धारण करेगा ये उस जीवात्मा के कर्मफल पर निर्भर करता है। अनेक जीवात्माओं के शरीर में रहने के बावजूद एक शरीर पर एक ही जीवात्मा का अधिकार रहता है, जिसे अभिमानी जीव कहते हैं शेष सभी जीव अनुशयी कहलाते हैं। अनुशयी जीव केवल भोग कर पाते हैं। अभिमानी जीव ही मनुष्य शरीर में, कर्म करके उन्नति को प्राप्त होते हैं। परमात्मा सर्वव्यापक, सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान होने से सारी कर्मफल व्यवस्था को चलाता है। Naresh Khare: जी स्वामी जी तो यही लिख रहे है कि जीव आकाशस्थ वायु मे विचरण कर अन्न जल वायु आदि से वीर्य मेआता है पश्चात गर्भ मे तो इसका कया अर्थ हुआ Naresh Khare: यदि वह वीर्य मे आकर गर्व मे जा शरीर धारण कर लेता है तो फिर एक ही जीव का,एक ही शरीर मे आकर तुरन्त जन्म कयो न माने ? Naresh Khare: क्रम न.२ भी समझ नही आया जी Pritesh Arya: क्रम 2 : यजुर्वेद अध्याय-39, मन्त्र-6 के अनुसार है। मनुष्य आदि किसी प्राणी के शरीर में जीवात्मा मृत्यु उपरान्त 7वां दिन रहता है। Pritesh Arya: मनन करने से ही समझ में आता है, अन्य शरीर की बात हो रही है। मनुष्य या पशु-पक्षी के शरीर में 7वें दिन वास करता है। Naresh Khare: ठीक है १२ दिन बाहर और ७ दिन अन्दर विचरण कर जीव शरीर धारण करता है तो कुल दिन १९ हुए फिर १३वे दिन जीव का शरीर धारण करने का कया अर्थ हुआ और १३वे दिन कि जगह २०वे दिन जीव का शरीर धारण कयो नही लिखा गया ? और वेद मे या ऋषि ने शरीर मे एक जीव कि जगह अनेको जीव होने का प्रमाण कहां दिया है कृप्या इसका भी प्रमाण देवे जी
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