भाद्रपद शुक्ल एकादशी वि.सं२०७२ २४ सितम्बर २०१५ 😶 “ मधु-शास्त्र विद्या की महिमा ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम् । 🔥🔥 🍃🍂 ममेदह क्रतावसो मम चित्तमुपायसि ।। 🍂🍃 अथर्व० १ । ३४ । २ ऋषि:- अथर्वा ।। देवता- मधुवनस्पति: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।। शब्दार्थ- मेरी जिह्वा के अग्रभाग में मिठास हो और जिह्वा के मूल में और भी अधिक मिठास, मिठास का झरना हो। हे मधो! तू अवश्य ही मेरे प्रत्येक कर्म में, प्रत्येक बुद्धि में विद्यमान रह और तू मेरे अन्त:करण के चित्तप्रदेश तक पहुँच जा, व्याप्त हो जा। विनय:- मैं माधुर्य-प्राप्ति की साधना में लगा हूँ। संसार की प्रत्येक वस्तु के सेवन द्वारा मैं अपने में मधुरता बसाना चाहता हूँ। हे माधुर्य! तुम मेरे सम्पूर्ण जीवन में घुल जाओ और मेरे सम्पूर्ण जीवन को माधुर्यमय कर दो। मैं वाणी से मीठा ही बोलूँ। मेरी जीभ के अग्रभाग में मधु हो और मेरे जीभ का मूल और भी अधिक मधु से भरा हो। हे मधुमय प्रभो! माधुर्य को न समझनेवाले मनुष्य केवल काम निकालने के लिए भी मधुरता का आश्रय लेते हैं, अतः वे ऊपर के व्यवहार में, दिखावट में, मधुरता ले आना काफी समझते हैं। वे जिह्वा-मूल में, अन्दर-अन्दर रखते हुए भी जिह्वाग्र में प्रेम और माधुर्य ही प्रकट करते हैं, पर उन्हें मालुम नहीं कि ऐसे धोखे के माधुर्य से कटुता ही लाख दर्जे अच्छी है। ऐसे झूठे माधुर्य से वास्तव में कोई भी काम सिद्ध नहीं होता। वे बेचारे माधुर्य की असली अपार शक्ति को, मैत्री के महाबल को नहीं समझते, अतः मेरी वाणी से तो जो प्रेममय मधु झरा करता है वह सदा मेरी वाणी-मूल से, मेरे ह्रदय से, मेरे प्रेमभरे मानसस्त्रोत से ही आकर झरता है। मेरा एक-एक कर्म भी मधुमय पुष्पों को बरसाता है। हे माधुर्य! तुम मेरी प्रत्येक चेष्टा में, प्रत्येक गति में, प्रत्येक व्यवहार में न केवल समाये हुए रहो, अपितु मेरी प्रत्येक सोच में, प्रत्येक विचार में, प्रत्येक निश्चय में तुम्हारा वास हो। मेरे अहर्निश का एक-एक संकल्प भी मधुमय हो। हे मधो! तुम मेरे सम्पूर्ण अन्तःकरण में ऐसे रम जाओ कि मेरा चित्तप्रदेश भी इससे अव्याप्त न रहे, अर्थात् मेरी एक-एक वासना भी माधुर्य से वासित हो जाए और मैं अपनी स्मृति व् स्वप्न में भी कभी कोई द्वेष, अमैत्री व कटुता का स्वप्न तक न ले सकूँ। हे मेरे प्रेम व ज्ञानस्वरूप प्रभो! मैं तुम्हारे मधुरूप का उपासक हुआ हूँ। 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 ……………..ऊँचा रहे 🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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