ॐ अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्य दातये नि होता सत्सि बर्हिषि||~सामवेद~1~1~1~~~~~~~मन्त्र का पद्य में भाव~~~~~~~ ज्ञानवान हे भगवन प्यारे, आओ हृदय देश हमारे| स्तुति योग्य प्रभु परमेश्वर, करो ज्योति से जगमग अंतर| करें तुम्हारा ध्यान निरंतर, विमल शान्ति सुख भर जगदीश्वर||👏
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