ओ३म्
*🌷 मनुस्मृति 🌷*
१) ओ३म् यह एक अक्षर परब्रह्म का वाचक है ,प्राणायाम बड़ा तप है और गायत्री से श्रेष्ठ कोई मन्त्र नहीं तथा मौन से सत्य भाषण श्रेष्ठ है।
२) प्रातः की सन्ध्या को गायत्री का जाप करता हुआ सूर्यदर्शन होने तक स्थित होकर और सांयकाल की सन्ध्या को नक्षत्र दर्शन होने तक बैठकर करे।
३) ब्राह्मण सम्मान से सदा विषवत् डरे और सदैव अपमान की अमृतवत् इच्छा करे अर्थात् मान-अपमान में सम रहे।
४) दूसरे से अपमान किये जाने पर भी खेद न करता हुआ पुरुष सुखपूर्वक शयन करता है,सुखपूर्वक जागता है,लोगों में व्यवहार करता है और अपमान करने वाला नष्ट हो जाता है।
५) तप करना हो तो ब्राह्मण वेद ही का सदा अभ्यास करे।वेदाभ्यास ही ब्राह्मण का परम तप कहा है।
६) जिस कुल में स्त्रियाँ दुःखी होती हैं,वह कुल शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाता है जहाँ सुखी रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता है।
७) वेदों का अध्ययन करने वाले कुल चाहे अल्प धन वाले भी हों,परन्तु बड़े कुल की गिनती में गिने जाते हैं (अर्थात् कुल की प्रतिष्ठा वेद पाठ से है न कि नौकरी,व्यापार,पशु आदि से।
८) जो बुद्धिहीन गृहस्थ (भोजन के लालच से) दूसरों के अन्न का सहारा देखते हैं,उससे वे मरने पर अन्नादि देने वाले के पशु बनते हैं।
९) ढेले का मसलने वाला,व्यर्थ ही तिनके तोड़ने वाला और नाखुन चबाने वाला मनुष्य शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और चुगलखोर तथा अपवित्र भी।
१०) दोनों हाथों से एक साथ अपना सिर न खुजावे और झूठे हाथों से अपना सिर न छुवे और बिना सिर पर पानी डाले स्नान न करे,अर्थात् पहले सिर पर पानी डाले।
११) प्रातः दो घड़ी रात्रि से उठे और पवित्र होकर एकाग्रचित्त से प्रातः व सायं सन्ध्यार्थ बहुत कालपर्यन्त जप करता रहे।क्योंकि ऋषियों ने दीर्घकाल तक जप से ही आयु,बुद्धि,यश,कीर्ति तथा ब्रह्मतेज को प्राप्त किया था।
१२) धर्म के दस लक्षण:-१.धैर्य,२.क्षमा,३.मन का रोकना,४.चोरी न करना,५.शुद्ध होना,६.इन्द्रियों का दमन,७.शास्त्र का ज्ञान,८.आत्मा का ज्ञान,९.सत्य बोलना,१०.क्रोध न करना।
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