नमस्ते मित्रो,
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज का निर्माण करते हुए आर्य समाज के छठे नियम में कहा कि संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नती करना । यहां पर महर्षि दयानंद सरस्वती जी का सामाजिक उन्नती से अभिप्राय यह था कि जब आर्य समाज के लोग मासिक बैठक में एकत्रित हों तो वह समाज के अंदर की कुरितियों , बुराइयों,समस्याओं पर चर्चा करें । उनके समाधान के लिए कार्य योजना बनायें और उसे क्रयान्वित करें । जिससे संसार के लोगों में आर्य समाज के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो,वह आर्य समाज के बारे में जानना चाहें , आर्य समाज के साथ जुडना चाहें । लेकिन दुर्भाग्य है कि हम आर्य समाज के लोगों ने अपने आपको सिर्फ यज्ञ तक सीमित कर लिया है यज्ञ पर्यावरण की शुद्धि के लिए आवश्यक है परंतु उससे भी आवश्यक है समाज का शुद्धिकरण करना । आज आर्य समाज के लोगों को महर्षि दयानंद सरस्वती जी के सामाजिक उन्नती के लक्ष्य को ध्यान में ऱखकर कार्य करने की आवश्यकता है क्योंकि आज समाज में जितना अंध विश्वास और गुरूडम फैला हुआ है यह आर्य समाज की निष्किर्यता का परिणाम है हम किसी और संस्था से समाज के शुद्धिकरण की आशा नहीं कर सकते । आज हमें संसार पटल पर आर्य समाज को प्रतिबिंबित करने के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम आर्य समाज के यज्ञ हवनों से बाहर निकल कर समाज में व्याप्त कुरितियों, बुराइयों ,समस्याओं के समाधान के लिए कार्य योजना बनायें और उसे क्रयान्वित करें । ओ३म
निवेदक: हरेन्द्र आर्य धतीर
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