*|७८| ऋषि सन्देश |७८|*
“एक धन, दूसरे बन्धु कुटुम्ब कुल, तीसरी अवस्था(आयु), चौथा उत्तम कर्म और पांचवी श्रेष्ठ विद्या ये पांच मान्य(आदरणीय) के स्थान हैं | परन्तु धन से उत्तम बन्धु, बन्धु से अधिक अवस्था, अवस्था से श्रेष्ठ कर्म और कर्म से पवित्र विद्या वाले उत्तरोत्तर अधिक माननीय हैं ||”
__/\__ स्वामी दयानन्द सरस्वती [सत्यार्थ प्रकाश समु० १० (मनुस्मृति २/१३६)]
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