Friday, August 19, 2016

गुरु ग्रन्थ साहब और वेद || १) ओंकार वेद निरमए – राग रामकली महला १, ओंकार शब्द १ अर्थात् ईश्वर ने वेद...

गुरु ग्रन्थ साहब और वेद ||
१) ओंकार वेद निरमए – राग रामकली महला १, ओंकार शब्द १
अर्थात् ईश्वर ने वेद बनाए
२) हरि आज्ञा होए, वेद पाप पुन्न विचारिआ. – मारू डखणे, महला 5, शब्द-१
अर्थात् ईश्वर की आज्ञा से वेद हुए जिससे मनुष्य पाप-पुण्य का विचार कर सके.
३) सामवेद, ऋग जजुर अथर्वण. ब्रह्मे मुख माइया है त्रैगुण. ताकी कीमत कीत
कह न सकै को तिउ बोलै जिउ बोलाइदा. – मारू सोलहे महला-१, शब्द-१७
अर्थात् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद परमात्मा की वाणी है. इनकी कीमत
कोई नहीं बता सकता. वे अमूल्य और अनन्त हैं.
४) ओंकार उत्पाती. किया दिवस सभ राती वन तृण त्रिभवन पाणी.
चार वेद चारे खानी. -राग मारू महला-5, शब्द-१७
अर्थात् ओंकार (परमात्मा) ने ही दिन-रात, वन, घास, तीनों लोक, पानी आदि को
बनाया और उसी ने चारों वेदों को बनाया, जो चार खानों अण्डज,जेरज,उद्भिज स्वेदज के समान हैं.
५) वेद बखान कहहि इक कहिये. ओह बेअन्त अन्त किन् लहिये.
६) दिवा तले अँधेरा जाई. वेदपाठ मति पापा खाई.
उगवै सूर न जापै चन्द, जहाँ ज्ञान प्रकाश अज्ञान मिटन्त.
-वसन्त अष्टपदियाँ महला-१, अ.३
अर्थात् वेद से अज्ञान मिट जाता है, और उनके पाठ से बुद्धि शुद्ध होकर पापों का
नाश हो जाता है.
7) असन्ख ग्रन्थ, मुखि वेद पाठ. – जपुजी १७
अर्थात् असंख्य ग्रन्थों के होते हुए भी वेद का पढना मुख्य है.
स्मृति सासत्र (शास्त्र) वेद पुराण. पारब्रह्म का करहिं बखियाण.
– गौंड महला-5, शब्द-१७
अर्थात् स्मृति, शास्त्र, वेद और पुराण परमात्मा का ही वर्णन करते हैं.
[सर्वे वेदा यत्पदम् आमनन्ति]
स्मृति = मनुस्मृति,
शास्त्र = दर्शन = उपांग,
वेद = ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
पुराण(ऐतरय, शतपथ, तांड्य, गोपथ)
9) वेद बखियाण करत साधुजन, भागहीन समझत नहीं. – टोडी महला-5, शब्द-26
अर्थात् साधु, सज्जन सदा वेद का व्याख्यान करते हैं, किन्तु भाग्यहीन मनुष्य कुछ
नहीं समझता.
10) कहन्त वेदा गुणन्त गुणिया, सुणत बाला वह विधि प्रकारा.
दृडन्त सुविद्या हरि हरि कृपाला. – सलोक सहस्कृति, महला-5, शब्द-14
अर्थात् वेदों के पढने से उत्तम विद्या परमात्मा की कृपा से बढती है.
11) वेद पुराण सासत्र (शास्त्र) विचारं, एकं कार नाम उरधारम्.
कुलह समूह सगल उधारं, बड़भागी नानक को तारम् –गाथा महला 5/20
अर्थात् वेद, पुराण शास्त्र के विचार करने से परमेश्वर का स्मरण होता है,
और सारा कुल तर जाता है।।।।


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