*(मौलाना गुलाम हैदर क्रोध में पागल था इस्लाम के खिलाफ लिखने वाले का वध करने का उसने निश्चय कर लिया था । फिर क्या था हाथ में तेज धार का छुरा और मुंह में अल्लह हु अकबर कहते हुए वह निकल पड़ा उस पंडित भोजदत्त का गला रेतने , पर यह क्या जब वह उस परिसर से निकला तो वह मौलाना स्वयं ही अपना ह्रदय परिवर्तित कर चुका अब पंडित सत्य प्रकाश आर्य बन चुका था । ऋषि दयानंद जी का दीवाना बना चुका था ) यह जानने के लिए पढ़ें 👇*
*मौलाना गुलाम हैदर कैसे बने पंडित सत्यदेव*
पंडित भोजदत्त आर्य मुसाफिर आगरा में पंडित लेखराम जी की स्मृति में *आर्य मुसाफिर उपदेशक विद्यालय* चलाते थे एवं “आर्य मुसाफिर” के नाम से साप्ताहिक पत्र का संपादन भी करते थे । इस्लाम की मान्यताओं की तर्कपूर्ण समीक्षा उनके उस पत्र में छपती रहती थी । जिसे पढ़ कर अनेक मुसलमान भाई बिना सोचे विचारे तर्क प्रमाण आदि से उसे समझने के प्रयास न कर क्रोध ही व्यक्त करते रहते थे । उन्हीं उत्तेजित आक्रोशित मुसलमानों में से एक थे मौलाना गुलाम हैदर । स्वयं को इस्लाम समीक्षा के उत्तर देने में असमर्थ और असक्षम पाते हुए हताश हो उसके संपादक पंडित भोजदत्त जी की हत्या की योजना बना एक छुरा छिपा कर उन्हें ‘वाजिबुल कत्ल’ (हत्या करने योग्य करार दे , उपदेशक विद्यालय जा पहुंचे । विद्यालय का द्वार खटखटाया तो संयोग से श्वेत दाढ़ी में तेजस्वी और ओजपूर्ण सरल व्यक्तित्व में विनम्र पंडित जी ने द्वार खोला तो मौलाना ने प्रथम दृष्टि में उस ऋषि तुल्य व्यक्तित्व से कहा कि वो पंडित भोजदत्त जी से मिलना चाहता है । पंडित जी ने तपती लू में उनके पास आए मौलाना को शीतल जल से उसका स्वागत किया और बताया कि वे ही भोजदत्त हैं । इस पर मौलाना ने उनसे सवाल जवाब करना शुरू किया । विनम्रता से मिले संतोषजनक सप्रमाण उत्तर पाकर वह कुछ प्रभावित होता गया । इस्लाम संबंधी अनेक शंकाओं का समाधान पूछा और दिव्य मूर्ति भोजदत्त जी ने मौलाना को निष्पक्ष भाव से उत्तर दिए तो उसने वहां उनके पास रह कर कुछ दिन रहने की अनुमति मांगी ताकि कुछ अन्यान्य प्रश्नों और शंकाओं के उत्तर जाने जा सकें । पंडित जी ने विनम्रता पूर्वक सहर्ष उसके ससम्मान रहने और उसके खानपान की व्यस्था की । पंडित जी की निर्भीकता, सत्य और धर्माचरण से प्रभावित हो मौलाना का ह्रदय परिवर्तन हो गया । उसके प्रश्नों का समाधान भी उसे मिल चुका था । अन्त में मौलाना ने अपनी वास्तविकता और मंशा प्रकट करते हुए रोते हुए यह रहस्य खोल दिया कि वह क्यों और किस उद्देश्य को लेकर पंडित भोजदत्त जी से मिलने आया था । मौलाना ने पंडित जी को वह छुरा भी दिखाया जिससे वह उनके वध की योजना बना कर उनके पास आया था ।
सम्पूर्ण भेद प्रकट होने पर भी उस महान आत्मा पंडित भोजदत्त जी की स्थितप्रज्ञता में किंचित भी परिवर्तन नहीं आया । चेहरे पर वैसी ही निर्दोष आकर्षक मोहक मुस्कान ज्यो की त्यों थी । आकृति पूर्व की भांति शांत, सौम्य, और तेजस्विता लिए हुए थी ।
अंत में वैदिक धर्म की प्रामाणिकता और सिद्धांतों से प्रभावित मौलाना गुलाम हैदर ने एक दिन पंडित जी के समक्ष हाथ जोड़ कर स्वयं को वैदिक धर्म में दीक्षित करने का अनुरोध किया कि अब जबकि उनकी सभी शंकाओं का उन्हें संतोषजनक उत्तर मिल ही गया है तो उनका मुस्लिम बने रहना निरर्थक होगा । अतः उन्हें औपचारिक ढंग से वैदिक धर्म में दीक्षित किया जाए । इस प्रकार मौलाना गुलाम हैदर इस्लाम त्याग कर वैदिक धर्म में दीक्षित हो पंडित सत्यदेव बन गए । ऐसा उनके द्वारा पूर्वाग्रह से मुक्त हो शंकाओं के समाधान के फलस्वरूप संभव हुआ ।
इस्लामिक परिवार से ही इस्लाम के एक और मर्मज्ञ विद्वान् जो भी आर्य समाज के शास्त्रार्थ में परास्त हो पंडित देवप्रकाश बन गए थे , ने मौलाना गुलाम हैदर के पंडित सत्यदेव बनने पर एक नज़्म लिखी थी, जो आर्य मुसाफिर में प्रकाशित हुई :
“तुझे वैदिक धर्म में ऐ सज्जन आना मुबारक हो
सच्चाई का ये जलवा दिखलाना मुबारक हो
अविद्या की घटनाओं और खिज़ा के तुन्द झोकों से
निकल कर गुलशने वहदत में आ जाना मुबारक हो”
मौलाना हैदर ने पंडित सत्यदेव बनने के बाद वैदिक धर्म के प्रचारार्थ अनेक पुस्तकें लिखी , जैसे -
1. अर्श सवार ( मौलाना मुहम्मद अली की पुस्तक जमा कुरान का उत्तर था )
2. कुरान में परिवर्तन (मौलाना मुहम्मद अली की पुस्तक भी जमा कुरान का उत्तर था ।
3. अफ्शाए राज़
4. नाराए हैदरी
5. कुरान में तहरीफ़
6. कुरआन में इख़्तलाफत
7. इस्लाम का परिचय
8. इस्लामी धर्मानुसार सृष्टि उत्पत्ति
9. रहमत मसीह महाशय की वेदों की तादात नामक पुस्तक का प्रकाशन एवं उत्तरार्ध लेखन
10. शास्त्र परिचय
11. वेद तथा ब्राह्मण ग्रंथों में ओ३म्
पंडित सत्यदेव आजीवन वैदिक धर्म काप्रचार करते रहे । ऋषि दयानंद जी के संदेश -“ सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए” - को पंडित सत्यदेव जी ने अपने जीवन में पूरी तरह से चरित्रार्थ किया ।
( साभार - आर्य लेखक कोष - डॉ भवानी लाल भारतीय , पृष्ठ संख्या 308 - 309 )
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