आर्य कहलाने वालों जागना कब है ?
सब आर्यजनों को आत्मचिन्तन कर परस्पर, मतभेदों को, विवादों को, स्वार्थ परता और अधिकारों की दौड़ को तिलांजलि देकर, ऋषि मिशन के लिए सेवक बन उठ खड़ा होना चाहिए। जिस उद्देश्य के लिए ऋषि दयानन्द ने आर्य समाज की स्थापना की थी|
वैदिक सिद्धान्ता की रक्षा करना, उन्हें प्रचारित व प्रसारित करना हम सबका पुनीत कर्त्तव्य है। क्योंकि आज संसार को इस विचारधारा की बड़ी जरूरत है। आज प्रगति के नाम से ढोंग, पाखण्ड, अंधविश्वास, अश्लीलता, अनैतिकता,और धर्म के नाम से हिंसा आदि कुकृत्य निरन्तर बढ़ते ही जा रहा हैं। अगर इसे रोकने की क्षमता है, किसीके पास,तो मात्र ऋषि दयानन्द की ही विचारधारा के प्रचार-प्रसार के माध्यम से ही रोका जाना सम्भव है। आज नाना पन्थ, सम्प्रदाय व मजहब बढ़ते जा रहा हैं। सन्त, महन्त, महाराज, ज्ञानी और गुरुओं की भीड़ फैल रही है। धर्म, भक्ति और परमात्मा के नाम पर व्यापार हो रहा है। भक्ति के नाम तथा योग के नाम पर ढ़ोग व प्रदर्शन बढ़ रहा है, और सच्ची भक्ति घट रही है। धर्म के नाम पर सम्प्रदाय हावी हो रहा हैं। शब्दों से तो धर्म का प्रचार खूब हो रहा है। परन्तु आचरण व्यवहारिक जीवन से धर्म घट रहा है। और देश की जो अपनी विशिष्ट पहचान थी उसे तोड़ा-मरोड़ा और विकृत किया जा रहा है। वैचारिक प्रदुषण का जहर समूची भारतीय जीवन पद्धति को विषाक्त व विकृत करता जा रहा है। शायद दयानन्द के कार्यकाल में इतनी भयावह स्थिति न रही हो जितना कि आज है।
ऐसी दशा में अगर समाधान है तो केवल आर्य समाज के पास ही हैं। क्योंकि आर्य समाज मानवता वादी, राष्ट्रीय एकता और अखण्डता का प्रचार आर्य समाज के जन्मकाल से ऋषि दयानन्द ने किया है। और यही जिम्मेदारी आर्य समाजियों पर देव दयानन्द ने दी है। क्योंकि इसके जो सिद्धान्त हैं और आदर्श हैं इनमें तर्क है, सृष्टि क्रम के अनुकूल है। आज विश्व में देश, धर्म, संस्कृति, परम्पराओं का सही स्वरूप कोई दे सकता है, तो मात्र आर्य समाज. ही है। किन्तु दुःख के साथ हमें लिखना पड़ रहा है, कि दयानन्द के अनुयायी ही वैदिक सिद्धान्तों को अपने अमल में नहीं लाते। आज यत्र-तत्र दल गत राजनीति आर्य समाज में भी होने लगी है। आर्य समाज में अब योग्यता के बल पर नहीं किन्तु रूपयों के बल पर अधिकारी बनाए जा रहे हैं। भले ही उन्हें वैदिक सिद्धान्तों का एक ही अक्षर भी न आता हो, मात्र वोट की राजनीति है किसी ने खूब कहा हैः-
‘बड़े शौक से सुन रहा था जमाना ।
हम ही सो गये दासताँ कहते-कहते।
आज आर्य कहलाने वाले अपने उद्देश्य तथा कर्त्तव्य से भटक रहे हैं। मात्र विवाद व स्वार्थ मे आर्य समाज की शाख को मिट्टी में मिलाया जा रहा है।
आर्य समाज का जो मुख्य कार्य वेद प्रचार तथा पाखण्ड के खिलाफ आवाज उठाना था। अज्ञान अधंकार को लोगों से दूर करने के लिए शास्त्रर्थ के माध्यम से सत्यासत्य का निर्णय करना था। राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार करना था। इस्लाम मत्-ईसाई मतों से लोहा लेने का था। वे सब गौण हो गया। और जो गौण कार्य था उसे ही अपनाया गया है। जैसा आर्य समाज में दवाखाना चलाना, शादी विवाह में बारात टिकाना। अनैतिक तरीके से आर्य समाज भवन को किराया पर चलाना आदि ही मुख्य कार्य हो गया है। शायद ही कोई समाज हो जहाँ विवाह के बाराती शराब न पीते हों। आर्य समाज में अगर यह काम बन्द होता, तो मेरे विचार से शराब बन्दी कार्य को बल मिलता।
पद लोलुपता एवं परिवार वाद के कारण प्रायः आर्य समाजों में झगड़ा और विवाद बना रहता है। शायद ही कोई आर्य समाज. ऐसा हो जहाँ विवाद न हो। कुछ प्रान्तीय सभाओं की ओर दृष्टिपात करने से पता चल सकता है। कुछ प्रान्तों में सभा की सम्पत्ति का ही विवाद चल रहा है। कहीं-कहीं नोटों के बल पर प्रान्तीय सभाओं पर लोग काजिब हैं।
बड़े अधिकारियों को प्रचार-प्रसार की कोई चिन्ता ही नहीं। वे तो मात्र बनी बनाई मंच पर फूलमाला पहनने के लिए पहुँचना ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं। कुछ ही लोग हैं जो वैदिक धर्म प्रचार को या आर्य समाज के उद्देश्य पूरा करने के लिए आर्य समाज के प्रचारकों, उपदेशकों को पाल रहे हैं। जो आर्य समाज के छोटे-छोटे कार्यकर्ता हैं। लोगों से सम्पर्क बनाकर कुछ संग्रह करते हैं और आर्य समाज के उपदेशकों व प्रचारकों को बुलाते हैं। सिर पर कफन बाँधकर प्रचारक-उपदेशक होली दीवाली का भी ख्याल न रखकर कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु चल पड़ते हैं।
आर्य समाज के प्रचार-प्रसारमें वृद्धि हो तभी लोग आर्य समाज को जान पायेंगे। भारत में अभी ऐसे भी प्रान्त हैं जहाँ के लोग आर्य समाज को जानते तक नहीं। जहाँ आर्य समाज को लोग नहीं जानते वहाँ जाकर आर्य समाज का प्रचार करने से ही देव दयानन्द का सपना साकार हो सकता है। एवं कृण्वन्तों विश्वमार्यम् उद्घोष साकार हो सकता है। इसी उद्देश्य से ऋषि ने आर्य समाज की स्थापना की थी। इन उद्देश्यों की पूर्ति हम लोग उस समय कर सकेंगे जब मिल बैठकर ऋषि की भावना को हृदय में रखकर अपने स्वार्थ अहंकार एवं पद लोलुपता को छोड़ निष्काम भाव से प्रचार-प्रसार में संलग्न हो जायेंगें।
हम सबके सामने इस समय बड़ी चुनौती हैं। आर्य समाज की विचारधारा, आर्दश, सिद्धान्त तथा अस्तित्व की रक्षा करना |
महेन्द्रपाल पाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता= 2/8/16=
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