पद्यानुवाद 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻श्रुत अनुमान प्रमाण से पैदा, होती जो प्रज्ञा बुद्धि| उससे भिन्न यह ऋतम्भरा है, सत्य ज्ञान में करती वृद्धि|| आओ हम सब नित्य नियम से, सूत्र सुखद अपनाते जाएँ| कर उन्नति उत्तरोत्तर हम सब, विमल प्रभु के दर्शन पाएं||🙏🏻🙏🏻सूत्र~49 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻ऋतम्भरा पाकर के योगी, स्वस्थ सबल हो जाता है| उसके आगे फिर न कोई, जग विचार टिक पाता है| पिछले संस्कारो को बाधित, करता नव संस्कारों से| काटे विमल तीक्ष्ण बुद्धि पा, तेज ज्ञान की धारों से||🙏🏻🙏🏻सूत्र~50
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻निर्विचार समाधि में जब, योगी कुशल हो जाता है| सत्य ज्ञान की धर्ता बुद्धि, वह ऋतम्भरा पाता है|| वेद विमल पथ अपनाएँ हम, सत्संगत पुरुषार्थ करें| श्रवण मनन व निदिध्यासन से, ऋतम्भरा को प्राप्त करें||🙏🏻🙏🏻सूत्र~48
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