१५ जयेष्ठ 29 मई 15
😶 “ हे अनन्त देव ” 🌞
🔥🔥ओउम् का त उपेतिर्मनसों वराय भुवदग्रे शंतमा का मनीषा ।🔥🔥
🍃🍂 को वा यज्ञै: परि दक्षं त आप केन वा ते मनसा दाशेम ।। 🍂🍃
ऋ० १ । ७६ । १ ;
शब्दार्थ ::– हे अग्रे !
तेरे मन को वरने के लिए कौन सा उपाय-तेरे पास पहुँचने का साधन हैं ? और हमारी कौन-सी हार्दिक इच्छा या स्तुति तेरे लिए सुखकारी हो सकती है ? अथवा कौन मनुष्य है जो आप यज्ञ-कर्मो द्वारा तेरी वृद्धि या बल को व्याप्त कर सकता है, इसके लिए प्रयाप्त होता है ? या हमारे पास वह मन ही कौन सा है जिससे हम तुझे हवि दे सकें ?
विनय :- हे अनन्त देव !
हम परिमित मनुष्य किसी भी प्रकार से तेरे सम्पूर्ण रूप को ग्रहण नही कर सकते । हम अपने अपूर्ण साधनों द्वारा तेरे पास पहुँचने के लिए-तुझे वर लेने के लिए जीवन-भर यत्न ही करते रहते है । हमारे मनमें यह सामर्थ्य नही कि वह तेरे परिपूर्ण रूप को कभी मनन कर सके । तो तेरे पास पहुँचने का साधन, उपाय हमारे पास क्या है ? हम कभी समझते है कि शायद हम हार्दिक भक्ति करके तुझे सुख पहुँचा लेंगे,पर यह तो हमारा तेरे विषय में सांसारिक भाषा में बोलना मात्र है । भक्ति से हमे बेशक बड़ा लाभ मिलता है,पर हमारी हार्दिक प्रार्थनाओं या स्तुतियो का तुझपर वास्तव में किसी प्रकार का प्रभाव नही होता । तू तो शुद्धस्वरूप में अलिप्त रहता है । मनुष्य के क्षुद्र मन की तुम तुम अगम तक पहुंच ही नही है । तो वह तन हम कहा से लाएँ जिस द्वारा हम अपनी यह भक्ति व यज्ञ व ज्ञान की आहुति तुझ तक पहुँचा सके ?
ओह !
सचमुच यह स्थूल और सूक्ष्म शरीरो में बंधा हुआ मनुष्य तेरी परिपूर्ण उपासना-तेरी परिपूर्ण आराधना-कभी नही कर सकता ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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