योग अनुभूति
यह कौन छुफ रहा , प्रकीर्ति में चेतन सा?
यह कौन झाँक रहा है दिलो से ,
कभी आँखों से, कभी सांसो से,
कभी इस लहरहती हुई जमीन से,
कभी पहाड़ो से, कभी नदियों से,
कभी बहती हुई, उस समीर से,
कभी चन्द्र से , कभी सूर्य से,
कभी वरुण से, कभी मरूत से,
कभी फैले हुए इस विशाल आसमान से,
क्यों छुफ -छुफ कर- अटखेलियाँ करते से,
क्यों नही आते नजर, नगी आँखों से,
जाने तो हम तुम्हे जाने कैसे?
कहे ये राज, हम तो जाने ऐसे,
जैसे मुंझ में से, सीक निकलते ऐसे?
जैसे दही में से मक्खन निकलते ऐसे?
जैसे पानी में से बिजली निकलते ऐसे?
जैसे जड़ प्रकीर्ति, किर्या करती चेतन से?
वैसे ही कछुए की तरह, निग्रह करो अंगो से,
तो फिर दिखेगा , इस जड़ शरीर में किर्या करता चेतन से,
फिर उस चेतन का मिलान करो, बाहर फैले महाचेतन से,
तभी पता लगता है, कौन छुफा हुआ , इस प्रकीर्ति में चेतन सा.——————राजिंदर कुमार thulla
from Tumblr http://ift.tt/1H6TnhV
via IFTTT
No comments:
Post a Comment