Rajinder Thulla
ऋग्वेद :1 /8 /4 :भावार्थ :-हे आंतरिक शत्रुओ से युद्ध करने में उत्साह देने वाले परमेस्वर ! आपको अंतर्यामी ईस्ट देव मानकर, आपकी कृपा से हम योग-सामर्थ-बल प्राप्त करते है. जिसके समर्थ से युद्ध करने वाले इन घोरतम अज्ञान रूपी शत्रुओ को इस योगिगनी रूपी शास्त्र से धैर्य पूर्वक उनके वार को सहते हुए निरंतर उनको निर्बल कर देवे. और इस प्रकार योगिगनी से प्राप्त ज्ञान और वैरग्य के अभ्यास से इन शत्रुओ को निर्बल करके, जीतकर परम सुख ऐस्वर्य को प्राप्त होवो .
ऋग्वेद: 1 /8 /5 /:भावार्थ: क्या करता है वह परमात्मा? सभी देवता जड़ है, इनकी अपनी कोई शक्ति नही, लेकिन सभी कार्य करते दिखाई देते है. इन सभी देवताओं की शक्ति का आधार परमेस्वर है. वह परमेस्वर ही सूर्य के प्रकाश द्वारा इस मूर्तिमान संसार को प्रकाशयुक्त करता है. वह अनंत गुणों वाला है. उसका अत्युत्तम स्वभाव है. वह अतुल सामर्थ्य युक्त वाला और अत्यंत श्रेष्ठ है. सब जगत की रक्षा करने वाला, न्याय की रीती से दुस्टो को दंड देने वाला है. ऐसे उक्त गुणों वाले परमेश्वर की सहायता से ही हम अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करते है. हमारी इन विजयो में उसी परमेस्वर की महिमा तथा बल है.
from Tumblr http://ift.tt/1Gc3AgR
via IFTTT
No comments:
Post a Comment