गुरु दक्षिणा न देने वाले दो महान गायक
प्रस्तुति: फरहाना ताज
एक बालक संगीत सीखना चाहता था, हिन्दुस्तान के
बड़े-बड़े उस्तादों से संगीत की शिक्षा
ली, लेकिन उसके स्वर में सरस्वती विराजमान न हो
सकी, किसी ने कहा असली
संगीत सीखना है तो किसी आर्य
समाजी भजनी से सीखो। बेचारा दक्षिण
भारत से हजारों मील का सफर करके जालंधर आर्य समाज मंदिर
में पहुंचा, क्योंकि किसी ने बताया था कि वहां एक
भजनी मंगतराम रहते हैं। मंगतराम ने उसे कई वर्षो तक
संगीत की साधना कराई और गुरु दक्षिणा में मांगा,
‘‘तुम आर्य समाज का प्रचार करोगे।’’
वह गायक बहुत प्रसिद्ध हुआ, उसे भारत रत्न भी मिला,
लेकिन उसने बडा आदमी बनने के बाद कभी
भी आर्य समाज का प्रचार नहीं किया। वे थे
भीमसेन जोशी।
एक पिता की इच्छा थी कि अपने पुत्र को आर्य
समाज का भजनी बनाएगा, सारी दुनिया को आर्य
समाजी बना डालेगा। और उसने एक नहीं कई कई
आर्य समाजी भजनियों से अपने पुत्र को संगीत
की शिक्षा दिलवाई, लेकिन संगीत सिखकर वह
बहुत बड़ा आदमी बन गया। भजन तो बहुत गाए, लेकिन आर्य
समाज के लिए नहीं। वे हैं अनूप जलोटा। आर्य समाज, के
वार्षिकोत्सव में 10 वर्ष पहले जलोटा जी को सुना था सो बार
जन्म लेंगे सो बार फना होंगे, अहसान दयानंद के फिर न भी न
अदा होंगे….अदा कर भी नहीं पाएगा बेचारा…
दोनों हस्तियों ने कई सालों तक आर्य समाज के चंदे से भोजन खाया,
वहीं के बाथरूम में हगा मूता धूका और जब यज्ञ करके
वातावरण शुद्ध करने की बारी आई तो आर्य समाज
को भूल गए।
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