Saturday, May 9, 2015

जब दहेज में दिया हिन्दुस्तान! By Farhana Taj  दिल्ली जीतने के बाद कर्णसिंह रजिया के समक्ष थे,...

जब दहेज में दिया हिन्दुस्तान!
By Farhana Taj 

दिल्ली जीतने के बाद कर्णसिंह रजिया के समक्ष थे, ‘‘तुम्हारा खेल खत्म हो गया सुलताना, इस पवित्र तख्त से उतर जाओ और इसे हमारे हवाले कर दो।’’
‘‘आओ भईया आओ! आज रक्षा बंधन का दिन है, मैं भी सोच रही थी कोई वीर भाई आज राखी बंधाने नहीं आया।’’ इतना कहकर रजिया ने दो ताली बजाई और उसके तालियाँ बजाते ही दासियाँ पूजा का थाल ले लायी।
राणा सा अवाक् खड़े रहे।
‘‘हाथ आगे बढ़ाओ भइया!’’ रजिया ने भावनात्मक चाल चलते हुए कहा।
राणा ने हाथ आगे बढ़ा दिया, लेकिन उसकी आँखों में आँसू आ गये।
राखी बांधने के बाद रजिया ने कहा, ‘‘कोई उपहार नहीं दोगे भइया!’’
‘‘बोलो क्या उपहार चाहिए बहन!’’
‘‘एक बहिन और क्या चाहती है, अपनी रक्षा।’’
‘‘ठीक है बहिन तुम्हारी रक्षा की जाएगी। लेकिन…..।’’
‘‘लेकिन क्या भइया?’’
‘‘हम यवनों के शासन का खात्मा करने की सौगंध खा चुके हैं, आप चाहें तो हमारे साथ हमारे महल में रहें, लेकिन हम अब इंद्रप्रस्थ पर यवनों का शासन नहीं रहने देंगे।’’
‘‘पर भइया?’’
‘‘पर क्या?’’
‘‘मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ। मेरे दिल में भी वे सब अरमान हैं, जो एक लड़की के अंदर होते हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी डोली अपने महल से विदा करो और मेरी शादी बड़े ठाठ-बाट से करो।’’
‘‘ऐसा ही होगा बहिन!’’
‘‘लेकिन यह तो असंभव है?’’
‘‘क्यों, एक राणा के लिए असंभव कुछ भी नहीं।’’
‘‘मैं किसी हिन्दू से विवाह करना चाहती हूँ, क्या कोई हिन्दू मेरे साथ विवाह करेगा?’’
‘‘कोई भी हिन्दू किसी मुस्लिम युवती से विवाह….असंभव…मन में सोच भी नहीं सकता!’’
‘‘तो फिर मेरा क्या होगा भइया, क्या आपकी बहिन जीवनभर क्वारी रहेगी?’’
‘‘नहीं…नहीं…बहिन तुम जीवनभर क्वारी नहीं रहोगी, इसका कोई न कोई रास्ता खोज ही लिया जायेगा।’’
‘‘एक रास्ता है भइया!’’
‘‘क्या रास्ता है बहिन?’’
‘‘याकूत!’’
‘‘याकूत! अर्थात् तुम्हारा गुलाम!’’ फिर उसने मन में सोचा, ‘एक गुलाम को गुलाम ही भाया!’ और प्रत्यक्ष बोले, ‘‘याकूत ही क्यों?’’
‘‘याकूत मात्र गुलाम ही नहीं है, वह जन्म से मुसलमान नहीं है। वह पहले हिन्दू था, उसे एक जंग के दौरान कैदकर गुलाम बनाया गया और बाद में मुसलमान। चोरी छिपे अभी भी रात्रि में अग्नि मंदिर में पूजा करने जाता है। वह एक महान शक्तिशाली योद्धा है, वेदों का प्रकांड विद्वान है। यदि हम उससे शादी कर लेंगे तो मुस्लिम तो इसलिए चुप कर जाएँगे कि हमने एक काफिर को सही ढंग से मुसलमान बना लिया और हिन्दू इसलिए प्रसन्न होंगे कि हम वेदों के विद्वान की अर्द्धाग्नी हो गईं।’’
‘‘तुम कौन सा खेल खेलना चाहती हो बहन!’’
‘‘हम मुहब्बते जिहाद का खेल खेलना चाहते हैं।’’
‘‘मतलब!’’
‘‘यह आपकी समझ से परे की बात है भइया।’’ उसने कुटिल मुसकान बिखेरी थी।
‘‘तो हम उसके साथ तुम्हारा विवाह कर देंगे।’’
‘‘लेकिन एक अड़चन है भइया?’’
‘‘क्या?’’
‘‘अमीर?’’
‘‘उन सबका हम सर धड़ से अलग कर देंगे।’’
‘‘यही तो मैं चाहती हूँ।’’
‘‘लेकिन भइया मुझे दहेज में क्या दोगे?’’
‘‘एक राणा अपनी बहन को दहेज में भला क्या नहीं दे सकता! वह माँग कर तो देखे, सारा हिन्दुस्तान दे देंगे।’’ राणा ने भावना में बहकर जोश में कहा।
‘‘यही तो मैं चाहती हूँ भइया!’’
‘‘क्या?’’
‘‘दहेज में हिन्दुस्तान!’’ फिर उसने गंभीरता से आगे कहा, ‘‘आप वचन दे चुके हैं भइया, बहिन की रक्षा का भी और दहेज में हिन्दुस्तान देने का भी।’’
और इस प्रकार राणा-सा शब्दों के जाल में फँसकर जीतकर भी हिन्दुस्तान को हार गए और वापस चित्तौड़गढ़ कूच कर गये। लव जिहाद एक राजनैतिक षडयंत्र का एक अंश


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