१६ श्रावण 31 जुलाई 2016
😶 “तपाग्रि की महती महिमा ! ” 🌞
🔥🔥ओ३म् पवित्रं ते विततं ब्रह्मणस्पते प्रभुर्गात्राणि पर्येषि विश्वत: । 🔥🔥
🍃🍂 अतप्ततनूर्न तदामो अशनुते शृतास इद्वहन्तस्तत्समाशत :।। 🍂🍃
ऋ० ९। ८३ ।१ ; साम० पू० ६। २ ।७ । १२ ; सा० उ० २ । २ । १६
ऋषि:- : पवित्र: ।। देवता-पवमान: सोम : ।। छन्द:- नीचृज्जगती।।
शब्दार्थ- हे ब्रह्माण्ड के पते !
तेरा पवित्रताकारक पवित्र ज्ञान-सामर्थ्य सब कहीं फैला हुआ है । [ इस पवित्र के साथ ] तुम प्रभु मेरे शरीरों,अवयवों में भी सब और से प्राप्त हुए हो, परन्तु जिसने अपने शरीर को तप से तपाया नहीं है अतएव जो कच्चा है वह उस पवित्र को नहीं पाता । जो पके हुए हैं वे ही उसे धारण करते हुए उसे अच्छी तरह प्राप्त कर सकते है
विनय:- हे ब्रह्मण्डपते !
मैंने जाना कि मेरा शरीर अपवित्र क्यों है । यद्यपि तुम्हारा पवित्रताकारक सामर्थ्य जगत् में सब कहीं फैला हुआ है,तुम ही उस पवित्र के साथ मेरे शरीर के रोम-रोम में रम रहे हो,तो भी यह शरीर पवित्र नहीं है इसका कारण मैंने जाना । इसका कारण यह है कि मैंने तप की अग्रि से अपने शरीर को पकाया नहीं है । बिना आग में तपाये मिट्टी के घड़े में पवित्रताकारक जल कैसे ठहर सकता है ? इसी प्रकार तपोरहित मेरे शरीर में तुम्हारी पावनी शक्ति नहीं ठहर सकती । बिना इसे शरीर में धारण किये इससे लाभ कैसे उठाऊं ?
और इसे धारण करने के लिए तो शरीर पका हुआ होना चाहिए । इसको ना धारण करने से मैं इसके सब आनंद से,सब रस से वंचित हूँ । सचमुच तपोरहित मनुष्य के लिए इस जगत में कोई रस नहीं कोई सुख नहीं है ।
मैंने जाना कि अगर मै अत्रमय शरीर को ब्रह्मचर्य,व्यायाम,आसन,प्राणायाम आदि तप से तपाकर इसे पका लूँगा,तभी मेरा यह शरीर तेरी पावनी शक्ति को धारण करके शारीरिक सौख्य को पा सकेगा । तप की अग्रि से जब स्थूल व् सूक्ष्म शरीर के स्थूल-सूक्ष्म मैल निकलते है तो तेरी सर्वव्यापक शक्ति इसमें आने लगती है,भरने लगती है
आहा ! पवित्र होने से कैसा अदभुत आह्वद मिलता है !
शक्ति भरने पर कैसा सुख अनुभव होता है तप ना करने वाले क्या जाने ?
यदि प्रभु के पवित्रताकारक सामर्थ्य के समुंद्र में बैठे हुए भी उससे वंचित नहीं रहना है तो जल्दी करो ;
तप करो,
तप से अपने देहों को परिपक्व बनाते रहो ।
तप से पके शरीरों से ही यह प्राप्त किया जाता है ।
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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