Friday, August 5, 2016

ओ३म् *🌷अवतारवाद🌷* ईश्वर का बार-बार अवतार लेकर जन्म लेना बताया ओर हर बार के जन्म में,अवतार में...

ओ३म्

*🌷अवतारवाद🌷*

ईश्वर का बार-बार अवतार लेकर जन्म लेना बताया ओर हर बार के जन्म में,अवतार में अलग-अलग स्वरुप बताया गया है।यदि ईश्वर बार-बार अवतार या जन्म लेवे तो सामान्य मानव और उसमें क्या अन्तर रह जावेगा?उसे अपनी बार-बार पहचान बदलने की क्या जरुरत है।क्या सूर्य,चन्द्रमा,जल,आकाश,पृथ्वी आदि को अपना बार-२ रुप बदलना पड़ता है?क्या ये सभी कभी रुप बदलते हैं?नहीं बदलते,किन्तु प्रारम्भ से जब से निर्माण हुआ तब से एक ही रुप में हैं और सब उसे जानते,मानते हैं।फिर ईश्वर में बदलाव क्यों?

एक और बात है।अवतार के सम्बन्ध में कहा जाता है कि परमात्मा मानव लीला करते हुए सब दिखाता है इसलिए उसे अवतार या जन्म लेना पड़ता है।

यह विचार भी काल्पनिक और अन्धश्रद्धा से भरी कहानी किस्सों पर आधारित है।

मान लीजिए भारत के राष्ट्रपति को किसी व्यक्ति को या शहर को कोई सन्देश देना होता है,तो क्या उसे स्वयं आना जरुरी है?वह तो अपने स्थान पर ही निर्देश देकर कार्य को अंजाम दे सकता है,उसको स्वयं को आना जरुरी नहीं है।

अक्सर कहा जाता है कि अमुक राक्षस को मारने के लिए,उसका वध करने के लिए ईश्वर ने अवतार लिया।यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है हमारी सोच की।

*जिस परमेश्वर के द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड संचालित होता है,जिसके द्वारा निर्मित लाखों सूर्य नियमित कार्य कर रहे हैं,अथाह जल के भण्डार बड़ी-बड़ी नदियाँ जिसके द्वारा प्रवाहित हो रही हैं,जो जाने कितने समुद्रों का स्वामी है,अनन्त सृष्टि,अनन्त कोटि के मानवों और प्राणियों का स्वामी है,जिसके द्वारा सृष्टि की रचना,रक्षा और प्रलय किया जाता है उसे एक छोटे से काम के लिए जन्म लेना पड़ेगा?छोटे-छोटे से कार्यों के लिए उसे मनुष्य का स्वरुप धारण करना पड़े,यह तो उसकी क्षमता उसकी शक्ति व उसके विराट् स्वरुप का तिरस्कार है।उसे सर्वशक्तिमान् कहना फिर तो गलत ही होगा।*

_जो परमात्मा किसी को कुछ सिखाना चाहे,समाज को बताना चाहे,पापियों को दण्ड देना चाहे तो उसके लिए यह कोई कार्य कठिन नहीं है।वह तो पहले से ही सर्वव्यापक है।उसको फिर आना हास्यास्पद लगता है।वह साकार रुप में बिना आए ही सृष्टि की रचना,उसका संचालन और प्रलय करता है,जीवों का कर्मफल प्रदाता है।_

_प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है और उसे देने वाला परमात्मा ही है।कई व्यक्ति जन्म से लूले,लंगड़े,अपाहिज होते हैं,निर्धनता से ग्रस्त पेट भरने के मोहताज होते हैं,कई अरबों के स्वामी हैं,पर निःसन्तान होते हैं।किसी के पास सब कुछ है पर वह स्वस्थ नहीं है?क्या यह परमात्मा के द्वारा निश्चित की गई कर्म व्यवस्था का फल नहीं है?_

_क्या किसी को लंगड़ा,लूला,अन्धा,अपाहिज,गरीब,निःसन्तान बनाने के लिए स्वयं परमात्मा को जन्म लेकर यह सब करना पड़ता है?_

*परमात्मा की व्यवस्था में जो उसके करणीय काम है उसके लिए उसे स्वयं साकार रुप में आने की आवश्यकता नहीं।*


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