मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा-बडा ही बहकावा :-
किसी मूर्ति की पूजा तब तक नहीं की जाती जब तक उसमें प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो जाती। साधारण व्यक्ति समझने लगता है कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति ईश्वर-रूप में जीवित हो जाती है। भोले लोग इसे सत्य मान कर, मूर्ति पर चावल, गेहूं, घी, गुङ, दूध, पंखा, कपङा, रजाई, पैसे आदि को भोग रूप में चढाते हैं। ये ठग पुजारी सारे चढावे को डकार जाते हैं। परन्तु मूर्ति में कही भी हरकत और चेतना नहीं दिखती। पौराणिक पण्डितो को मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करते देख,ईश्वर हंसता होगा “इस पाखण्डी की प्राण प्रतिष्ठा तो मैंने की है और यह दुष्ट मेरी ही प्राण प्रतिष्ठा कर रहा है।” सोचिऐ, लोगों के साथ कितना विश्वासघात कर रहे हैं।, ये धूर्त? यहां यह प्रश्न उठता है कि पौराणिक-पण्डितों के परिवार में जब कोई सदस्य मर जाता है तो ये ठग उस युवा के मृत शरीर में प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे जीवित क्यों नहीं करते?
अन्त में इन आचार-भ्रष्ट पाषाण-पूजको से यही कहेगे कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा बहुत बडा बहकावा है, धोखा है। अत: देश व जनहित में इस कुकृत्य को तुरंत त्याग दें।
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