Thursday, August 4, 2016

ओ३म् आओ, जलता राष्ट्र बचायें! मेरे प्यारे देशवासियो! सौभाग्य से हम उस महान् राष्ट्र के नागरिक हैं,...

ओ३म्
आओ, जलता राष्ट्र बचायें!
मेरे प्यारे देशवासियो!
सौभाग्य से हम उस महान् राष्ट्र के नागरिक हैं, जिसने करोड़ों वर्ष तक सम्पूर्ण विश्व को अपने महान् ज्ञान, विज्ञान, सदाचार एवं ओज-तेज से उज्ज्वल नेतृत्व प्रदान किया है। ब्रह्माण्ड भर के प्रबुद्ध प्राणी मनुष्य के आधार एवं समस्त ज्ञान विज्ञान के मूल रूप ईश्वरीय ग्रन्थ वेद तथा महान् ऋषियों, देवों की विश्ववारा परम्परा को कम से कम कुछ अंश में अब तक भी जीवित रखा है। दुर्भाग्य से महाभारत युद्ध के विनाश के पश्चात् वेद व ऋषियों की परम्परा से अनभिज्ञ भगवान् ब्रह्मा, मनु, शिव, विष्णु, इन्द्र, अगस्त्य, भरद्वाज, वसिष्ठ, वाल्मीकि, राम, कृष्ण, नारद जैसे महामानवों के वंषजों ने वेदविद्या का अनर्थ करके इस देश व विश्व को मांसाहार, नरबलि, पशुबलि, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, यौनस्वच्छन्दता, मद्यपान आदि पापों के गर्त में भी धकेला है। भगवान् मनु की वैदिक सर्वहितकारिणी कर्मणा वर्ण व्यवस्था ने पापिनी जन्मना जाति व्यवस्था व छूआछूत को अपना कर मनु के नाम का जप करने वाले मिथ्या कर्मकाण्डी नकली ब्राह्मणों ने अपने ही एक वर्ग विशेष को सहस्रों वर्षों से प्रताड़ित किया, पुनरपि वह वर्ग अपने मूल के साथ श्रद्धा की डोर में बंधा हुआ प्रताड़ित करने वाले कथित ब्राह्मणादि की निष्छल भाव से सेवा ही करता रहा। वेद विद्या के लोप के कारण ही विश्व में अनेक सम्प्रदायों का दुःखद जन्म हुआ और मानव जाति खण्ड-2 होकर परस्पर हिंसाजन्य रक्तस्नान करती रही व कर रही है। कोई भी सम्प्रदाय अपने-2 ग्रन्थों व उनके प्रवक्ताओं का नितान्त अन्धानुकरण करके सम्पूर्ण विश्व को अपने साथ मिलाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए कहीं हिंसा, आतंक तो कहीं लोभ का आश्रय लिया जा रहा है। कोई भी सम्प्रदाय यह विचारने की इच्छा भी नहीं कर रहा कि उसके मजहबी प्रवर्तक एवं उनके ग्रन्थ से पूर्व भी करोड़ों वर्ष से मानव इस भूमण्डल पर रहता आया है, तब कौन सा धर्म वा समुदाय इस भूमि पर था? कौन सी भाषा सबकी भाषा थी? कौन सा धर्मग्रन्थ इस विश्व को मार्गदर्शन दे रहा था? कोई मजहब अपने को वैज्ञानिक कसौटी पर परखने का साहस भी नहीं कर रहा। वह विज्ञान के आश्रय पर जीता हुआ भी मजहबी मान्यताओं को कभी वैज्ञानिक दृष्टि से देखने का विचार नहीं करता। ईश्वर के अस्तित्व व स्वरूप की वैज्ञानिकता को परखने का भाव उसके हृदय में नहीं आता। इतने पर भी सभी कथित धर्माचार्य, पण्डित, पादरी, मौलवी, सन्त-महन्त ईश्वर व धर्म पर अपने वाक्चातुर्य से अज्ञानी जनता को भरमा रहे हैं। उधर देश व विश्व के कथित प्रबुद्ध, सामाजिक कार्यकर्ता, नेता, अभिनेता, मानवाधिकारी कहाने वाले महानुभाव ईश्वर, धर्म, वैदिक वर्णव्यवस्था, पुनर्जन्म, कर्मफल व्यवस्था जैसी यथार्थ व वैज्ञानिक मान्यताओं का उपहास कर रहे हैं। उन्हें इक्कीसवीं सदी का एक ऐसा रोग लगा है कि भोग-विलास, चमक-दमक के विकास को ही अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठे हैं। उनके इस मूर्खतापूर्ण विकास ने पर्यावरण तन्त्र को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है। सम्पूर्ण पृथिवी पर संकट छा रहा है। सब भयभीत भी हैं परन्तु इन्द्रियों के दास बने सच्चे अध्यात्म व ईश्वर से विमुख होकर वे किञ्चित भी बदलने को तैयार नहीं हैं। आज जातियों के नाम पर चल रहे संगठन, आरक्षण की राजनीति, जातीय साहित्यकार इस देश को बांट रहे हैं। उधर मैं कुछ अति उत्साही धर्म के नायक वा रक्षक माने जाने वाले महानुभावों को परामर्श देना चाहूँगा कि गो आदि पशुओं की पूजा के साथ प्रत्येक मनुष्य की भी पूजा करना सीखें। गाय को अलौकिक देवी बनाकर साम्प्रदायिक रंग न दें, बल्कि पालना व पलवाना सीखें। गाय का नाम लेकर प्रभु की सर्वोत्तम संतान मनुष्य से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करना सीखें। दुर्भाग्य से वेद विरोधी तथा वेद के भक्त, मनु विरोधी व मनु समर्थक, राष्ट्र विरोधी व राष्ट्र समर्थक सभी युग्मों के दोनों ही पक्ष यथार्थ से कोसों दूर हैं। वेद, मनु व प्राचीन राष्ट्रिय गौरव को कोई भी पक्ष न तो जानता है और न जानने की इच्छा ही करता है। सभी एकांगी बनकर व स्वार्थ के मारे देश में आग लगाने पर तुले हैं। नेताओं की बेलगाम वाणी, इसमें आग में घी की भांति कार्य कर रही है। जाति, सम्प्रदाय व भाषा के नाम पर देशवासियों को बांटना राजनेताओं ने अंग्रेजों से भली प्रकार सीख लिया है। दुर्भाग्य से ये देशवासी न तो मुस्लिम आक्रान्ताओं और न अंग्रेजों की कुटिल नीति को समझे और परस्पर लड़कर उनकी मार खाते रहे, दासता सहते रहे और वैसे ही न आज राजनेताओं की कुटिल नीति को समझ रहे हैं। जिन्होंने छल, बल, धन का आश्रय लेकर, आपको मूर्ख बना व लड़ाकर सत्ता पायी, उन्हें वोट देना तो आपकी विवशता माना जा सकता है परन्तु उन्हें अपना आदर्श मानकर परस्पर लड़कर इस देश को पुनः पराधीन व खण्ड-2 करने के मार्ग पर नहीं चलो। आज सभी रजनैतिक दल जहाँ जाति, भाषा व मजहब के नाम पर बांट रहे हैं, वहीं विषयासक्ति के अश्लील साधनों का प्रचार करके देश की युवा पीढ़ी को नशा एवं कामोन्माद की आग में भी धकेल रहे हैं, जिससे देश का युवा देशहित में कुछ विचार ही न कर सके और नेता अपनी मनमानी करते रहें। देश के राजनेता मुझे क्षमा करें और अपनी नीतियों तथा देश की दिशा पर गम्भीर विचार करें। जातीय आग लगाने वाले साहित्यकार वा समाजसेवी तथा कथित सवर्ण क्या यह विचार करेंगे कि ऋषियों के युग की कर्मणा वर्णव्यवस्था के स्वर्णिम काल में वर्तमान कथित सवर्णों के पूर्वज कितनी बार शूद्र बने होंगे और वर्तमान कथित दलितों के पूर्वज कितनी बार ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य बने होंगे? यदि आज भी भगवान् मनु का काल होता तो इस अभागे राष्ट्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय तो क्या आर्य (धर्मात्मा) पुरुष भी अंगुलियों पर गिनने योग्य बचते, शेष सभी शूद्र (शूद्र तो आर्य अर्थात् धर्मात्मा ही होता है) नहीं बल्कि दस्यु श्रेणी में होकर दण्डनीय होते। आज सबका आदर्श माना जाने वाला वर्तमान विज्ञान भी दिशाहीन होकर सबके लिए अहितकारी टैक्नोलाॅजी का ही अन्धानुकरण कर रहा है। थ्योरिटीकल फिजिक्स जो मूलभूत विज्ञान है, कहीं खोता जा रहा है। दशकों से इस पर धन व श्रम व्यर्थ हो रहा है परन्तु कुछ विशेष प्राप्त नहीं हो रहा है। उनमें कहीं-2 निराशा व आशंका का वातावरण बन रहा है, उधर थोथे चने अधिक ही बजते दिखाई दे रहे हैं। उन्हें विज्ञान की मूलभूत समस्याओं का भी भान नहीं है।
इस प्रकार यह देश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व अशान्ति, हिंसा, संशय, निराशा, मिथ्या, छल, कपट, स्वार्थ, घृणा की आग में जलता हुआ अज्ञान के अन्धकार में डूबा है।
मेरे प्यारे देशवासियो! मैं आपका खुले हृदय से आह्वान करता हूँ कि आप मेरे इस विचार का गम्भीरता से अध्ययन करें। मैं आपको एक महती आशा की ओर भी ले जाना चाहता हूँ। ये सारे दुःख-पाप अज्ञानता की ही देन हैं। वेद को न समझने का ही परिणाम है। परमपिता परमात्मा की कृपा से मैं विगत 10-12 वर्ष से महान् वेदवेत्ता महर्षि दयानन्द सरस्वती के संकेतों पर चलकर वेद को समझने का प्रयास कर रहा हूँ। ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण का वैज्ञानिक व्याख्यान मैंने पूर्ण कर लिया है। अगले वर्ष यह ग्रन्थ रूप में प्रकाषित होगा, तब मैं मूलभूत भौतिकी के साथ सभी सामाजिक, राष्ट्रिय व वैश्विक समस्याओं के दूरगामी व स्थायी समाधान की आधारशीला रख दूंगा। उसके पश्चात् देश व विश्व के नेताओं को चाहिए कि वे निश्पक्ष एवं यथार्थवादी बनें और देश व विश्व को शान्ति, आनन्द व विज्ञान के मार्ग पर चलाने का प्रयास करें। मेरे देश के युवाओ! आपका देश जल रहा है। आइये! अपने जलते, उजड़ते देश को बचाने हेतु हमारे साथ मिलकर चलें। लोभ व स्वार्थ ने इस देश को पूर्वकाल में ही अनेक कष्ट पहुँचाए हैं, अब तो सम्भल जाओ, अन्यथा यह प्यारा राष्ट्र पुनः खण्ड-2 होकर बिखर जाएगा, पराधीन हो जाएगा। आशा है आप मेरी इस चेतावनी को अवश्य समझेंगे। आशा के साथ
अग्निव्रत नैष्ठिक
(वैदिक वैज्ञानिक, दार्शनिक, लेखक)
प्रमुख- वेद विज्ञान मन्दिर
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