एक बार पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया उल हक इंडोनेशिया गए। वहाँ पर सैन्य अधिकारियों की ट्रेनिंग के पश्चात होने वाली “पासिंग परेड” में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया।
जियाउल हक साहब यह देखकर बहुत क्रोधित एवं नाराज हुए कि प्रत्येक अधिकारी हनुमान की मूर्ति के सामने जाकर परेड कर रहा है ..तथा उसी मुर्ती के समक्ष सपथ ग्रहण भी कर रहा है। जब उन्होंने इस संदर्भ में कुछ अधिकारियों से पूछताछ किया तो उन अधिकारियों ने बड़े गर्व से कहा कि….
“ हमने अपना "धर्म” परिवर्तन किया है ,परंतु अपनी “संस्कृति” एवं पूर्वजों को नहीं बदला है।"
आपको बता दूँ कि इंडोनेशिया विश्व का सबसे बड़ा मुस्लिम राष्ट्र है , ….एवं कुल आबादी (20 करोड़) के हिसाब से विश्व का चौथा। 88% मुस्लिम ,10% इसाई , 2 % हिन्दू ।
कुछ बातें और जान लीजिए …
वहाँ के विश्वविद्यालयों में माँ सरस्वती एवं भगवान गणेश की मुर्ती को मुख्य द्वार पर स्थापित किया जाता है।
इस मुस्लिम राष्ट्र के संसद के ठीक सामने श्री कृष्ण की आठ घोड़ों को चलाते हुए एक अत्यंत ही विहंगम मुर्ती बनाई गई है। देश की मुद्रा (करेंसी नोट) पर गणेश एवं गरुण भगवान के चित्र बने हुए हैं।
उनके नेशनल एयरलाइंस का नाम “ गरुड़ एयरलाइंस ” है।-
मुस्लिमों के नाम देखिए….
राष्ट्रपति सुकर्णो , सुकर्णो पुत्री मेघावती , वीर हरि मोहम्मद, वीणावती हसमन , सुदर्शन रहमान ।
वहाँ के द्वीपों के नाम देखें…
सुमात्रा , बाली , मदुरा , इरियन , जया , काली मन्थन ।
अब मैं एक सवाल रख रहा हूँ यहाँ ।
उसके पहले, इंडोनेशिया के समानांतर में केवल दो देशों को रखते हैं …वे हैं भारत और पाकिस्तान ।
मुस्लिम भारत में भी हैं और पाकिस्तान में भी।
अब इन तीनों देशों में से अच्छे मुसलमान किस देश में रहते हैं ?
इसका जवाब अगर कोई मुस्लिम मित्र देता तो अच्छा रहता।
क्या इंडोनेशियाई मुस्लिम अल्लाह की इबादत नहीं करते हैं ?
वे पाँचों वक्त की नमाज अदा नहीं करते ?
या फिर रमजान के महीने में रोजे नहीं रखते ?
इन सबका उत्तर है कि वे भी सभी प्रकार की इबादत एवं रोजे रखते हैं।
वे भी उतने ही पक्के मुसलमान हैं जितने कि भारत और पाकिस्तान के । उन्हें भी जन्नत में जाने की उतनी ही ख्वाहिश होती है जितनी कि और देशों के मुस्लिमों की होती है।
अब भारतीय उप महाद्वीप के मुस्लिमों की बात करते हैं(पाकिस्तान भी शामिल) । और इन्हीं से पुछते हैं …
क्या अंतर है आप में और उनमें ? खुद ही तय करें।
पूर्वजों की संस्कृति को सहेजने में क्या आप असफल नहीं रहे ?
और यह पुरातन संस्कृति इंडोनेशिया की तो है नहीं…। ये तो भारतीय संस्कृति है और यहीं से इंडोनेशिया पहुँची थी।
खैर छोड़िए ये सब..
अब जरा भारतीय हिन्दुओं पर गौर करते हैं। हम भारतीय हिन्दू अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं और वो भी बहुत ज्यादा । तो हमने कितना सहेजा है अपने पूर्वजों की संस्कृति को। क्या उतना सहेजा है जितना सहेजना चाहिए था …या जितना इंडोनेशिया ने सहेजा है ?
मने , जो संस्कृति सरकारी प्रतिष्ठानों में भी दिखाई पड़ती हो ?
…हा हा हा.. नहीं ना ??
क्योंकि हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं।
हम धर्म निरपेक्ष बनते बनते संस्कृति निरपेक्ष कब बन गए हमें पता ही नहीं चला। एक देश में भिन्न धर्म मजहब के लोग हो सकते हैं पर संस्कृति भिन्न कैसे हो सकती है ?
क्योंकि हमारे पूर्वज एक ही संस्कृति के मानने वाले थे और वो संस्कृति थी भारतीय संस्कृति ।
इस ताने बाने को किसने चौपट किया ?
तो जनाब , इस ताने बाने को चौपट करने में उन लोगों का हाथ है जिन लोगों ने हमारे उपर शासन किया था…और कुछ आधुनिक शासकों ने तो धर्म निरपेक्षता का लबादा ओढ़कर वोट बैंक के लिए भारतीय संस्कृति से जैसे मुँह मोड़ लिया हो।
ज्यादा पीछे नहीं जाऊँगा…एक उदाहरण देता हूँ।
तब नेहरू जी प्रधानमंत्री थे , 1950-60 के दशक में इंडोनेशिया ने अंतर्राष्ट्रीय रामायण उत्सव मनाया तथा कई देशों को इस उत्सव में भाग लेने के लिए रामायण पर आधारित एक नृत्य नाटिका समूह को आमंत्रित किया । सभी देशों ने अपने कलाकारों को को भेजा …यहाँ तक की मुस्लिम राष्ट्रों ने भी अपने कलाकारों को भेजा । परन्तु नेहरू जी ने ये कहकर मना कर दिया कि हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं।
जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थी , तो उनकी सरकार के केंद्रीय मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल को रबात (मोरक्को की राजधानी) में इस्लामिक देशों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए भेजा गया ।
मजे की बात देखिए कि वहाँ से कोई निमंत्रण भी नहीं आया था। पर सरकार ने यह तर्क दिया कि भारत में मुसलमानों की संख्या पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं कई मुस्लिम राष्ट्रों की अपेक्षा अधिक है , इसलिए यह प्रतिनिधि मंडल हमें भेजना पड़ा।
यह छद्म सेक्यूलर वाद नहीं तो और क्या है? यह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा का एक ज्वलंत उदाहरण है।
मनन कीजिए महाशय ।
मैं NAMAN करता हूँ उन इंडोनेशियाई मुस्लिमों को जिन्होंने भारतीय संस्कृति को सहेज कर रखा है !
भले ही वे अपना पंथ बदल लिए हों।
KUL DIPAK JOSHI UJJAIN
23/07/16
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