# प्रश्न —-+ स्वभाव किसे कहते हैं ? इसे कैसे जाना जाए ?
# उत्तर —+ जिस वस्तु का जो स्वाभाविक गुण है, जैसे कि अग्नि में रूप और दाह अर्थात् जब तक वह वस्तु रहे, तब तक उसका वह गुण भी नहीं छूटता, इसीलिए इसको स्वभाव कहते हैं।
न तस्य कार्यम् करणं च विद्यते ,
न तत्समश्चाभ्यधिकरश्च दृश्यते।
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रुयते,
स्वाभाविकी ज्ञान बल क्रिया च ।।
स्वभाव शब्द ,स्व उपसर्गपूर्वक # भू_सत्तायाम धातु से बन जाता है।अतः स्वभाव शब्द का अर्थ हुआ # अपनी_सत्ता ।।
जिस पदार्थ का जो भी स्वभाव है वह सदैव बना रहता है। जैसे अग्नि में रूप और दाह, दोनों स्वाभाविक गुण तब तक बने रहेंगे जब तक अग्नि पदार्थ की विद्यमानता है।इसी प्रकार जल में शीतलता एवं तरलता दोनों गुण पदार्थ के साथ साथ बने रहते हैं।तो इस प्रकार स्वभाव का अर्थ हुआ अपरिवर्तनशील सत्ता। ईश्वर के स्वभाव का वर्णन करते हुए महर्षि ने लिखा है—-+
ईश्वर का स्वभाव अविनाशी अर्थात् कभी भी नष्ट न होने वाला, ज्ञानी अर्थात् सर्वदा ज्ञान स्वरूप रहने वाला, कभी भी वेदान्तियों की मान्यता के आधार पर अज्ञानावृत न होने वाला ,
# आनन्दी साथ ही आनन्दस्वरूप । # शुद्ध सर्वदा शुद्ध स्वभाव वाला,।
# न्यायकारी जीवों को कर्मानुसार यथायोग्य कर्म फल प्रदान करने वाला।
# दयालु दया करना है स्वभाव जिसका, दयालु–कृपालु।
अतः यह ईश्वर का स्वभाव है।।
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