Tuesday, August 16, 2016

*@नविन जी* प्रश्न तो आपके मात्र दो थे परन्तु बड़े गम्भीर थे ।उस प्रश्न ने ही देश की दशा और दिशा पर...

*@नविन जी*

प्रश्न तो आपके मात्र दो थे परन्तु बड़े गम्भीर थे ।उस प्रश्न ने ही देश की दशा और दिशा पर एक विक्राल प्रभाव छोड़ा है ।

_लेख थोड़ी लम्बी होगयी परन्तु सभी पढ़ें तथा अपनी विचारों से अवगत भी करवाएं ।_

लम्बी होने के कारण ही मुझे टाइप करने का समय नहीं हो पारहा था फलस्वरूप आपके शंकाओ का समाधान देने में विलम्ब हुवा ।

सर्वप्रथम प्रथम *जाति* एवं *वर्ण* शब्द की परिभाषा सभी को शुस्पष्ट होना अनिवार्य है ।

*सामान प्रसवात्मिक जातिः (न्याय दर्शन,२.२.७०)*
जिनके जन्म लेने की विधि एवं प्रसव एक सामान हो,वो सब एक जाती है।
इस आधार पर समस्त मानव ही एक जाति ही हुई ।

*मानुष्यश्चैकविधीः ( सांख्य दर्शन,५/७)*
संसार के सभी मनुष्यों की एक ही जाती है ।

पुरे वैदिक वांग्मय में कही भी ब्राह्मण, राजपूत,भूमिहार,कायस्थ,कोइरी,कुर्मी,नाई,बढ़ई,हलवाई,सोनार,डोम, चमार आदि कोई भी नाम से कुछ भी वर्गीकरण नहीं मिलता है। अपितु पुरे मानव समाज को एक जाति मानी गयी है। हाँ आज जो ब्राह्मण सन्तान ब्राह्मण यादव सन्तान यादव माना जा रहा है *ये जन्मना जाति प्रथा है जिसकी किसी भी आर्ष ग्रन्थ में कोई मान्यता या कही इसकी कोई स्वीकृति नहीं है ।*
हमारे देश व् समाज का बहुत क्रूर दुर्भाग्य है कि हम अपने शास्त्रानुकूल अर्थात शास्त्र के आदेशनुशार *“कर्मणा वर्ण व्यवस्था”* को त्याग कर ठीक विपरीत *“जन्मना वर्ण व्यवस्था”* तथा कालान्तर में रूढ़िवादी विनाशकारी *“जन्मना जाति व्यवस्था’* को और भी सुदृढ़ बना लिया । इसके विनाशकारी प्रभाव को हम सबने देखा भी है ।
अब *वर्ण* शब्द पर विचार करते है,जिसका उल्लेक वेदों में अनेको बार आया है। ऋग्वेद में ही २४ मन्त्रो में वर्ण शब्द का उल्लेख मिलता है।जिसका प्रसंग अनुशार अर्थ है - रंग,रूप,अनिष्ट निवारक,रश्मि,वर्णन-योग्य,कान्ति, प्रकाश,वरण करने योग्य,ब्राह्मणादि चारो वर्ण आदि।
शास्त्र, व्याकरण तथा समाज व्यवस्था की दृष्टि से वर्ण शब्द स्वयं इसे कर्म आधारित व्यवस्था सिद्ध करता है। *निरुक्त*के सूत्र के अनुशार- *वर्णों वृणोते (२.१.४)* अर्थात वर्ण वह होता है _जिसका गुण-कर्मानुशार वरण *( चयन )* किया जाये_।ऋषि दयानंद ने इसकी व्याख्या में कहा "जिसके जैसे गुण हो उसे वैसा ही अधिकार देना वर्ण है (ऋग्वेदादि भ.भू.)। अतः जब कोई मनुष्य अपने अपने गुण,कर्म,रूचि एवं योग्यता अनुशार शिक्षा प्राप्त करता है और तदनुशार जीविका का चयन करता है,तो वो उसका वर्ण कहलाता है।किसी के वर्ण का उसके माता पिता के वर्ण के अनुकूल होना अनिवार्य नही है । जैसे डक्टर की सन्तान डॉक्टर बने ये कोई आवश्यक नहीं होता । वर्ण का समुचित निर्णय आचार्य करते है,जो शिक्षा काल में विद्यार्थियो के गुण-कर्म-स्वभाव एवं अभिरुचियों को भलीभाँति जानते है। जातिगत वर्ण व्यवस्था का पूर्णतया अनुचित व शास्त्र विरुद्ध है जिसका प्रमाण स्वरूओ आप महर्षि मनु की मनु स्मृति देखे जिसमे स्पष्ट ब्राह्मण कुलउत्पन्न व्यक्ति को चेतवानी दी है: "ब्रह्मनकुलोत्पन्न व्यक्ति वेद का अध्यन न करके अन्य किसी कार्य में परिश्रम करता है,तो वो अविलम्ब सन्तान सहित इसी जीवन में शुद्र होजाता है : _योSनधीत्य द्विजो वेदमन्यत्र कुरूमे श्रमम्। स जीवन्नेव शुद्रत्वनाशु गच्छति सान्वय:_ *(मनु स्मृति,२.१६८)*

आपका पहला प्रश्न की शुद्धि पश्चात व्यक्ति की जाति क्या होगी तो इसका निर्णय आप स्वयं उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कर सकते है । जाति "मानव” की होगी पर “वर्ण” का निर्णय या चयन करने के लिए अपने गुण-कर्म-रूचि व योग्यता के अनुशार स्वतंत्र है ।

अब दूसरा प्रश्न की क्या शुद्रो की वर्णोत्ति सम्भव है वा नहीं तो भारतीय इतिहास में सैकड़ो प्रमाण ऐसे उपलब्ध है ,जो कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था की पुष्टि करते है,जो यह सिद्ध करते है किसी भी वर्ण को जन्म के आग्रह से नही जोड़ा गया जैसे:
दासी पुत्र *कवष ऐलूष* और शुद्र पुत्र *वत्स* मन्त्र द्रष्टा होने के कारण दोनों ऋषि कहलाये (ऐतरेय ब्राह्मण २/१९)।
क्षत्रिय कुलउत्पन्न राजा *विश्वामित्र*, ब्रह्मऋषि बने (महाभारत ३/१-२,रामायण बाल कांड)।
अज्ञात कुल के *सत्यकाम जाबाल* ब्रह्मवादी ऋषि बने (छान्दोग्य उप.४.४-६)।
चांडाल के परिवार में जन्मे *मातंग* एक ऋषि कहलाये (महाभारत अनु•अ•३)।
निम्न कुल के *वाल्मीकि*महर्षि पद धारी बने ।
दासीपुत्र *विदुर*,राजा धृतराष्ट्र के महामन्त्री बने और महात्मा कहलाये (महाभारत आदि पर्व १००,१०१अध्याय)।
इसके विपरीत कर्मो के कारण ही पुलास्थ्य ऋषि का वंशज लंकाधिपती *रावण* राक्षस कहलाया (वाल्मीकि रामायण,उत्तर कांड )।
*राम के पूर्वज रघु* का *प्रवृद्ध* नामक पुत्र नीच कर्मो के कारण क्षत्रियो से बहिस्कृत होकर *राक्षस*बना।
*राजा त्रिशंकु* चाण्डालभव को प्राप्त हुए ।
*विश्वामित्र* के कई पुत्र शुद्र कहलाये और कई क्षत्रीय रहे,जो कालान्तर में ब्राह्मण भी बने।

शात्रों में वर्णोत्ति व पतन का विधान है।
*शुद्रो ब्राह्मणताम्-एति,ब्रह्मणश्चैति शुद्रताम्।*
*क्षत्रियात् जातमेवं तू विद्याद् वेश्यात्तथैव च।।*
(मनु स्मृति १०/६५)
अर्थ=गुण कर्म योग्यता के आधार पर ब्राह्मण शुद्र बन सकता है तथा शुद्र ब्राह्मण।इसी प्रकार क्षत्रियो और वैश्यों के कुलों में उत्पन्न बालको या व्यक्तियों का भी वर्ण परिवर्तन हो जाता है ।

आशा है *नवीन* जी की शंकाओ का समाधान हो कर पाया हूँ ।

आगे भी प्रश्नो का स्वागत रहेगा ।
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