Thursday, August 4, 2016

*सत्य सनातन वैदिक धर्म* की कसौटी पर *अभिनेता इरफान खान* का बयान कितना विवादित ??? विवादित इरफान या...

*सत्य सनातन वैदिक धर्म* की कसौटी पर *अभिनेता इरफान खान* का बयान कितना विवादित ??? विवादित इरफान या इस्लाम ???

नमस्ते मित्रों !
आज हम अभिनेता इरफान खान के उस बयान को जिसे तथाकथित दीन अर्थात् इस्लाम के पाखण्डी गुरूओं ने विवादस्पद घोषित कर दिया | उस बयान को वैदिक धर्म की कसौटी पर रख कर समीक्षा करेगें और अन्त में ये बताएगें कि *विवादित इरफान है या इस्लाम |*

मित्रों इस्लामी धर्मगुरू इस्लाम को दीन अर्थात् धर्म मानते है न कि कोई पंथ या सम्प्रदाय | उनके अनुसार रोजा रखना, नमाज पढ़ना और जानवरों की बलि अर्थात् कुर्बानी देना आदि आदि कर्मो को ही वो लोग धर्म मानते हैं |

जबकि वेदानुकूल आर्ष ग्रन्थों में धर्म की बहुत उच्च परिभाषा है | महर्षि दयानन्द सरस्वती जी [सत्यार्थ प्रकाश के समु० १० में (मनुस्मृति २/१)] लिखते हैं…

“जिसका सेवन राग-द्वेष रहित विद्वान् लोग नित्य करें, *जिसको ‘हृदय’ अर्थात् आत्मा से सत्य कर्त्तव्य जानें, वही धर्म* माननीय और करणीय समझें ||

यहाँ एक बात विशेष महत्त्व रखती है और वो है..

*"जिसको 'हृदय’ अर्थात् आत्मा से सत्य कर्त्तव्य जानें, वही धर्म ||*

ऋषि दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में लिखते है कि…

*"मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य का जानने वाला है |”*

मित्रों इस बात को दुनियाँ में कोई नहीं नकार सकता कि जब भी व्यक्ति कोई गलत कार्य करता है तो ईश्वर की ओर से उसकी आत्मा को संकेत मिलता है कि ये कार्य गलत है और शास्त्र कहते हैं जिसको आत्मा सत्य कर्त्तव्य जाने उसे करना ही धर्म है |

अब मित्रों आप ही बताए कि यदि पशु बलि देने पर यदि अभिनेता इरफान खान की आत्मा इसे सही नहीं मानती और इस बात को यदि उन्होने मिडिया के सामने रखा तो ये तो धर्म ही कहलायेगा क्योकि आत्मा के अनुकूल सत् कर्त्तव्यों का आचरण ही धर्म है | और उन्होने इस बात को स्पष्ट कहा है कि…

*“कुर्बानी का मतलब अपनी कोई अजीज चीज़ कुर्बान करना होता है | ये नहीं की बाजार से आप दो बकरे खरीद लाए और कुर्बान कर दिये | आपका उन बकरों से कोई लेना देना नहीं है तो वो कुर्बानी कहा से हुई |”*

दूसरा वैदिक धर्म का अटल सिध्दान्त है कि जो जैसा कर्म करेगा उसे उसका वैसा ही फल मिलेगा अर्थात् अच्छा फल हो या बुरा उसे स्वयं ही भुगतना होगा | इरफान खान भी तो इसी बात को ही कहते है कि…

*“हर आदमी अपने दिल से पूछे कि किसी और की जान लेने से उसको कैसे पुण्य मिल जायेगा |”*

अर्थात् व्यक्ति को पुण्य या पाप उसके अपने कर्म का मिलेगा | बलि बकरे की दी और पुण्य तुम्हे मिले ये सोचना कैसी मुर्खता है भाई |

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी [सत्यार्थ प्रकाश समु० १० (मनुस्मृति २/१२)] लिखते है कि…

“वेद, स्मृति, सत्पुरूषों का आचार और *अपने आत्मा के ज्ञान से अविरूध्द प्रियाचरण,* ये चार धर्म के लक्षण अर्थात् इन्हीं से धर्म लक्षित होता है |”

अतः मित्रों इरफान भाई ने अपने आत्मा के अनुकूल ही आचरण किया है जो धर्म है और हम हम उनके इस बयान की प्रशंसा करते है |

अब इरफान के बयान को विवादस्पद बताने वाले इस्लाम को कुरआन की कुछ आयतो से जान ले की वो कितना पाक है |

क़ुरआन सूरा २ अल बक़रा आयत ५८ में अल्ला अपने नाम से लूट की खुली छूट देता है…

*“फिर याद करो जब हमने कहा था कि "यह बस्ती इसमें प्रवेश करो, इसका पैदावार, जिस प्रकार चाहो, मज़े से खाओ, मगर बस्ती के दरवाजे में सजदा करते हुए प्रवेश करना और कहते जाना "हित्ततुन हित्ततुन” हम तुम्हारी खताओं को माफ़ करेंगे और सुकर्मियों पर और अधिक अनुग्रह करेंगे ||“*

मौलाना मुहम्मद फारूक खाँ जी 'हित्ततुन’ शब्द के दो अर्थ बताते है पहला अल्ला से अपनी खताओं की माफ़ी मागँते हुए जाना दूसरा लूट मार और क़त्लेआम के बदले बस्ती को निवासियों से माँफी माँगते हुए जाना |

क़ुरआन सूरा ४ अन निसा आयत अंश २४ में अल्ला युध्द में हाथ आयी औरतो को मुसलमानों के लिए हलाल बताता है…

*"और वे औरतें भी तुम्हारे लिए हराम हैं जो किसी दूसरे के निकाह में हों अलबत्ता ऐसी औरतों की बात और है जो (युध्द में) तुम्हारे हाथ आएँ ||*

क़ुरआन सूरा ४ अन निसा आयत १४४ में अल्ला मुसलमानों को अन्य लोगो से मित्रता के खिलाफ बताता है…

*"ऐ ईमानवालो ! मुसलमानों को छोड़ काफिरों को मित्र मत बनाओ | क्या तुम अल्ला के प्रति खुला अपराध अपने ऊपर लेना चाहते हो ||*

क़ुरआन सूरा ९ अत तौबा आयत १२३ में अल्ला इस्लाम को न मानने वालो से मुसलमानों को लड़ने की आज्ञा देता है…

*"ऐ लोगो ! जो ईमान लाये हो, अपने आस पास के काफ़िरों ले लड़े जाना और चाहिए कि वह तुमसे सख्ती महसूस करें ||”*

मित्रों यदि आपने इस लेख को आदि से अन्त तक पढ़ लिया है तो आप सहज़ ही निर्णय लगा सकते है; अभिनेता इरफान खान का बयान विवादस्पद है या उनके बयान को विवादस्पद बताने वाले मुस्लिम गुरूओं का इस्लाम और उनकी आसमानी किताब जो धन और औरतो की लूट पाट, कत्ल झगड़े आदि की खुली छूट देती है |

क़ुरआन मुसलमानों को अन्य से मित्रता करने से रोकता है जबकि वेद सभी प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखने को कहता है यही फर्क है तथाकथित दीन इस्लाम में और सत्य सनातन वैदिक धर्म में |

आओ पाखण्डी पंथों को छोड़े और पुनः वेदों का ओर लोट चले |

इति ओ३म् …!

नोट–
अपना कोई भी प्रश्न या आक्षेप केवल fb page पर ही करे | वही जवाब दिया जाएगा |

पाखण्ड खण्डण… वैदिक मण्डण… रिटर्न…
http://ift.tt/1pSKZRu


from Tumblr http://ift.tt/2aWZvmc
via IFTTT

No comments:

Post a Comment