Sunday, March 27, 2016

📖सत्यार्थ प्रकाश 📖 ~~~~~~~~~~~~~~~~ (प्रश्न) कोई कहते हैं कि ये लोग ईरान से आये। इसी से इन लोगों का...

📖सत्यार्थ प्रकाश 📖
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(प्रश्न) कोई कहते हैं कि ये लोग ईरान से आये। इसी से इन लोगों का नाम आर्य हुआ है। इन के पूर्व यहां जंगली लोग बसते थे कि जिन को असुर और राक्षस कहते थे। आर्य लोग अपने को देवता बतलाते थे और उन का जब संग्राम हुआ उसका नाम देवासुर संग्राम कथाओं में ठहराया।
(उत्तर) यह बात सर्वथा झूठ है। क्योंकि—
वि जानीह्यार्यान्ये च दस्यवो बर्हिष्मते रन्धयाशासदव्रतान्॥
—ऋ॰ मं॰ 1। सू॰ 51। मं॰ 8॥
उत शूद्रे उतार्ये॥
—यह भी वेद का प्रमाण है।
यह लिख चुके हैं कि आर्य नाम धार्मिक, विद्वान्, आप्त पुरुषों का और इन से विपरीत जनों का नाम दस्यु अर्थात् डाकू, दुष्ट, अधार्मिक और अविद्वान् है तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य द्विजों का नाम आर्य और शूद्र का नाम अनार्य अर्थात् अनाड़ी है।
जब वेद ऐसे कहता है तो दूसरे विदेशियों के कपोलकल्पित को बुद्धिमान् लोग कभी नहीं मान सकते और देवासुर संग्राम में आर्यवर्त्तीय अर्जुन तथा महाराजा दशरथ आदि; हिमालय पहाड़ में आर्य और दस्यु म्लेच्छ असुरों का जो युद्ध हुआ था; उस में देव अर्थात् आर्यों की रक्षा और असुरों के पराजय करने को सहायक हुए थे। इस से यही सिद्ध होता है कि आर्यावर्त्त के बाहर चारों ओर जो हिमालय के पूर्व आग्नेय, दक्षिण, नैर्ट्टत, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान देश में मनुष्य रहते हैं उन्हीं का नाम असुर सिद्ध होता है। क्योंकि जब-जब हिमालय प्रदेशस्थ आर्यों पर लड़ने को चढ़ाई करते थे तब-तब यहां के राजा महाराजा लोग उन्हीं उत्तर आदि देशों में आर्यों के सहायक होते थे। और श्रीरामचन्द्र जी से दक्षिण में युद्ध हुआ है। उस का नाम देवासुर संग्राम नहीं है किन्तु उस को राम-रावण अथवा आर्य और राक्षसों का संग्राम कहते हैं।
किसी संस्कृत ग्रन्थ में वा इतिहास में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आये और यहां के जङ्गलियों को लड़कर, जय पाके, निकाल के इस देश के राजा हुए। पुनः विदेशियों का लेख माननीय कैसे हो सकता है? और—
आर्यवाचो म्लेच्छवाचः सर्वे ते दस्यवः स्मृताः॥1॥
म्लेच्छदेशस्त्वतः परः॥2॥मनु॰॥
जो आर्यावर्त्त देश से भिन्न देश हैं वे दस्युदेश और म्लेच्छदेश कहाते हैं। इस से भी यह सिद्ध होता है कि आर्यावर्त्त से भिन्न पूर्व देश से लेकर ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम देशों में रहने वालों का नाम दस्यु और म्लेच्छ तथा असुर है और नैर्ऋत, दक्षिण तथा आग्नेय दिशाओं में आर्यावर्त्त देश से भिन्न रहने वाले मनुष्यों का नाम राक्षस है।
अब भी देख लो! हबशी लोगों का स्वरूप भयंकर जैसा राक्षसों का वर्णन किया है वैसा ही दीख पड़ता है और आर्यावर्त्त की सूध पर नीचे रहने वालों का नाम नाग और उस देश का नाम पाताल इसलिये कहते हैं कि वह देश आर्यवर्त्तीय मनुष्यों के पाद अर्थात् पग के तले है और उन को नागवंशी अर्थात् नाग नाम वाले पुरुष के वंश के राजा होते थे। उसी की उलोपी राजकन्या से अजुर्न का विवाह हुआ था अर्थात् इक्ष्वाकु से लेकर कौरव पाण्डव तक सर्व भूगोल में आर्यों का राज्य और वेदों का थोड़ा-थोड़ा प्रचार आर्यावर्त्त से भिन्न देशों में भी रहा।
इस में यह प्रमाण है कि ब्रह्मा का पुत्र विराट्, विराट् का मनु, मनु का मरीच्यादि दश इनके स्वायम्भुवादि सात राजा और उन के सन्तान इक्ष्वाकु आदि राजा जो आर्यावर्त्त के प्रथम राजा हुए जिन्होंने यह आर्यवर्त्त बसाया है। अब अभाग्योदय से और आर्यों के आलस्य, प्रमाद, परस्पर के विरोध से अन्य देशों के राज्य करने की तो कथा ही क्या कहनी किन्तु आर्यावर्त्त में भी आर्यों का अखण्ड, स्वतन्त्र, स्वाधीन, निर्भय राज्य इस समय नहीं है। जो कुछ है सो भी विदेशियों के पादाक्रान्त हो रहा है। कुछ थोड़े राजा स्वतन्त्र हैं। दुर्दिन जब आता है तब देशवासियों को अनेक प्रकार का दुःख भोगना पड़ता है। कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मत-मतान्तर के आग्रहरहित अपने और पराये का पक्षपातशून्य प्रजा पर पिता माता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। परन्तु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक्-पृथक् शिक्षा, अलग व्यवहार का विरोध छूटना अति दुष्कर है। विना इसके छूटे परस्पर का पूरा उपकार और अभिप्राय सिद्ध होना कठिन है। इसलिये जो कुछ वेदादि शास्त्रों में व्यवस्था वा इतिहास लिखे हैं उसी का मान्य करना भद्रपुरुषों का काम है।
(अष्टम समुल्लास:सत्यार्थप्रकश)
—–स्वामी दयानन्द सरस्वती


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गणेशशंकर विद्यार्थी आज ही के दिन 25 मार्च सन 1931 को कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को...

गणेशशंकर विद्यार्थी आज ही के दिन 25 मार्च सन 1931 को कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए थे। इसी दंगे में उनकी मौत हो गई। उनका शव अस्पताल में लाशों के ढेर में पड़ा मिला। वह इतना फूल गया था कि पहचानना तक मुश्किल था। नम आँखों से 29 मार्च को विद्यार्थी जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऎसे साहित्यकार रहे, जिन्होंने देश में अपनी कलम से सुधार की क्रांति उत्पन्न की।
जीवन-
गणेशशंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर, 1890 में अपने ननिहाल इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था। पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और उर्दू तथा फ ारसी के अच्छे जानकार थे। गणेशशंकर विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के मुंगावली में हुई थी। पिता के समान ही इन्होंने भी उर्दू-फारसी का अध्ययन किया।
गणेशशंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही, इसके साथ ही वे एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऎसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेशशंकर विद्यार्थी भी ऎसे ही पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऎसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक समर्थकों और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आजादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे।
पत्रकारिता के महान पुरोधा थे गणेशशंकर विद्याथी
किशोर अवस्था में उन्होंने समाचार पत्रों के प्रति अपनी रूचि को जाहिर कर दिया था। वे उन दिनों प्रकाशित होने वाले भारत मित्र, बंगवासी जैसे अन्य समाचार पत्रों का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करते थे। इसका असर यह हुआ कि पठन-पाठन के प्रति उनकी रूचि दिनों दिन बढ़ती गई। उन्होंने अपने समय के विख्यात विचारकों वाल्टेयर, थोरो, इमर्सन, जान स्टुअर्ट मिल, शेख सादी सहित अन्य रचनाकारों की कृतियों का अध्ययन किया। वे लोकमान्य तिलक के राष्ट्रीय दर्शन से बेहद प्रभावित थे।
महात्मा गांधी ने उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की शुरूआत की थी, जिससे विद्यार्थी जी सहमत नहीं थे, क्योंकि वे स्वभाव से उग्रवादी विचारों के थे। विद्यार्थी जी ने मात्र 16 वर्ष की अल्प आयु में हमारी आत्मोसर्गता नामक एक किताब लिख डाली थी। वर्ष 1911 में भारत के चर्चित समाचार पत्र सरस्वती में उनका पहला लेख आत्मोसर्ग शीर्षक से प्रकाशित हुआ था, जिसका संपादक हिन्दी के विद्धान आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा किया जाता था। वे द्विवेदी के व्यक्तित्व एवं विचारों से प्रभावित होकर पत्रकारिता के क्षेत्र में आये।
द्विवेदी के सानिध्य में सरस्वती में काम करते हुए उन्होंने साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति अपना रूझान बढ़ाया। इसके साथ ही वे महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पत्र अभ्युदय से भी जुड़ गये। इन समाचार पत्रों से जुड़े और स्वाधीनता के लिए समर्पित पंडित मदन मोहन मालवीय, जो कि राष्ट्रवाद की विचारधारा का जन जन में प्रसार कर सके। अपने सहयोगियों एवं वरिष्ठजनों से सहयोग मार्गदर्शन का आश्वासन पाकर अंतत: विद्यार्थी जी ने 9 नवम्बर 1913 से प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया।
पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य करने के कारण उन्हें पांच बार सश्रम कारागार और अर्थदंड अंग्रेजी शासन ने दिया। विद्यार्थी जी के जेल जाने पर प्रताप का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी व बालकृष्ण शर्मा नवीन करते थे। उनके समय में श्यामलाल गुप्त पार्षद ने राष्ट्र को एक ऎसा बलिदानी गीत दिया जो देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक छा गया। यह गीत झण्डा ऊंचा रहे हमारा है। इस गीत की रचना के प्रेरक थे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी ने जालियावाला बाग के बलिदान दिवस 13 अप्रैल 1924 को कानपुर में इस झंडागीत के गाने का शुभारंभ हुआ था


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🌷 अंग्रेज़ी शिक्षा क्यों ? 🌷 डॉ. गौतम श्रीमाली आज हर व्यक्ति ,चाहे वह धनी हो निर्धन हो ,...

🌷 अंग्रेज़ी शिक्षा क्यों ? 🌷

डॉ. गौतम श्रीमाली

आज हर व्यक्ति ,चाहे वह धनी हो
निर्धन हो , मजदूर हो , अधिकारी हो,
पुरोहित हो , विद्वान हो या अशिक्षित
हो, सब अपने बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए भेजना चाहता है। क्यों ?????

वह इसलिए , क्योंकि जब वह सरकारी स्कूलों में आरक्षण से आए
अध्यापकों को देखता है । वहाँ के पढ़ाने का ढंग देखता है । वहाँ से
निकले छात्रों का भविष्य देखता है कि
किस प्रकार वे वहाँ से अयोग्य बनकर
निकलते हैं तो उसे शिक्षा और शिक्षा
पद्धति से घृणा हो जाती है।

वह प्रतिज्ञा कर लेता है कि भले ही वह
मेहनत मजदूरी करेगा लेकिन अपने
बच्चे को वह सरकारी स्कूल में नहीं
पढ़ाएगा।

आचार्य चाणक्य ने कहा है —-
अर्थकरी च विद्या अर्थात् विद्या
धन देने वाली भी हो। पहले लोग
केवल ज्ञान के लिए पढ़ते थे। अब ज्ञान की परिभाषा बदल गई है। अब ज्ञान वह जो धन दे। जो धन न दे सके
वह विद्या व्यर्थ है।

शिक्षा को क्रियात्मक practical
बनाना चाहिए , चाहे वह सरकारी स्कूल हो , गुरुकुल हो या अन्य कोई
शिक्षण संस्थान , सबका यह प्रथम
कर्तव्य है कि जब कोई छात्र विद्यालय
से निकले तो वह अपनी रोज़ी रोटी
कमा सके उसे इस योग्य अवश्य बनाए।
यदि बाहर निकल कर वह रोटी के लिए भटकने लगा तो यह शिक्षा नहीं है।

आज आरक्षण ने शिक्षा के प्रति लोगों
के मन में घृणा बैठा दी है। हमें इस प्रथा को रोकना होगा। योग्य शिक्षा
तथा योग्य अध्यापकों का प्रबंध करना
होगा। तभी शिक्षा को उसका गौरव
प्राप्त होगा।


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हम तो यहाँ हैं फिर ईश्वर कहाँ रहता है?(वहहमारे अन्दर रहता है।हम आत्मा हैं,आत्मा में रहता...

हम तो यहाँ हैं फिर ईश्वर कहाँ रहता है?(वहहमारे अन्दर रहता है।हम आत्मा हैं,आत्मा में रहता है।)
13.शरीर में आत्मा कहाँ रहता है?(हमारे शरीर में आत्मा, दोनों भृकुटियों के बीच में, आँखों के पीछे, अन्दर की ओर रहता है।)
14.परमात्मा हमें कैसे दिखाई देता है?(आँख बन्द करके उसको याद करो तो उसका अनुभव अर्थात् दर्शन होने लगता है।
15.भगवान् को हम किस नाम से पुकारें?(‘ओ३म्’नाम से)
16.परमात्मा कितने होते हैं?(ईश्वर एक होता है जिसका नाम–‘ओ३म्’है।)
17.क्या ईश्वर हमारी आवाज़ सुनता है?(वह सब की आवाज़ सुनता है, हमारे मन की आवाज़ भी सुनता है।)
18.ईश्वर कौन सी भाषा समझता है?(वह सब की भाषा समझता है। हम अपने मन में जो भी सोचते हैं या मुँह से बोलते हैं, वह ईश्वर सब की सुनता है और सब समझता है।)
19.ईश्वर हमारा कौन लगता है?(वह हमारा सबकुछ लगता है। ईश्वर हम सब का माता-पिता-मित्र-बन्धु लगता है। हम सब उस परमात्मा की सन्तान हैं। हम उसके के बच्चे हैं।)
20.वह सारा समय क्या करता है?(परमात्मा हर समय हम सब की सहायता करता है। उसने हमारे लिये ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश बनाया है। उसने हमारे लिये सूर्य, चन्द्रमा, तारे बनाए हैं। वह पूरा संसार बनाकर उसकी देख-भाल करता है।)
21.हमने भूत की कहानियाँ सुनी हैं,क्या भूत भी होते हैं?(नहीं ! भूत-वूत कुछ नहीं होते। अच्छे बच्चों को ऐसी कहानियाँ नहीं सुननी चाहियें।)
22.मास्टर जी के कमरे में टी॰ वी॰ लगी है। वे स्वयं देखते हैं किन्तु हम को देखने से मना करते हैं, ऐसा क्यों?(क्योंकि टी॰ वी॰ देखने से छोटे बच्चों की आँखें ख़राब होती हैं। जब आप बड़े हो जाओगे तो समझ जाओगे।)
23.हम बड़े कैसे होंगे?(रात को जल्दी सोना, सवेरे जल्दी उठना, पढ़ाई के मन लगाके पढ़ाई करना, खेल के समय ख़ूब खेलना और ठीक समय पर भोजन करना–फिर आप बड़े हो जाओगे।)
24.हवन करने से क्या होता है?(हवन करने से वायु शुद्ध होती है,बुद्धि तेज़ होती है, आयु बढ़ती है और मनुष्य स्वस्थ रहता है और वह कभी बीमार नहीं पड़ता है।)
25.क्या गाली देना बुरी बात होती है?(बहुत बुरी बात होती है। ईश्वर को भी अच्छा नहीं लगता इसलिये गाली देने से पाप लगता है। हमें कभी किसी को भी गाली नहीं देनी चाहिये। अच्छे बच्चे कभी किसी को गाली नहीं देते हैं।)
26.यदि कोई हमें गाली दे तो हमें क्या करना चाहिये?(उसको समझाना चाहिये कि अच्छे बच्चे गाली नहीं देते, गाली देना बुरी बात है, इससे पाप लगता है।)
27.पाप क्या होता है?(प्रत्येक बुरे काम को पाप कहते हैं। जैसे झूठ बोलना,किसी को बिना कारण के मारना,गाली देना आदि। पाप करने वाले को ईश्वर दु:ख देता है।)
28.क्या चोरी करने से भी पाप लगता है?(बिना पूछे किसी की वस्तु उठाकर अपने काम में लाना‘चोरी’कहाती है। चोरी करना बहुत बड़ा पाप होता है।)
29.यदि कोई वस्तु पूछकर लेंगे तो?(जिस की वस्तु है उससे पूछकर लेना अच्छी बात है। इससे कोई पाप नहीं लगता। अच्छे बच्चे किसी की वस्तु हो बिना पूछे कभी हाथ नहीं लगाते हैं।)
30.क्या झूठ बोलना भी पाप होता है?(हाँ! झूठ बोलना सब से बड़ा पाप होता है, इससे भगवान् बहुत बड़ा दु:ख देते हैं।)


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Friday, March 25, 2016

गहरी बात लिख दी है किसी शख्शियत ने *************** ************ बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो...

गहरी बात लिख दी है किसी
शख्शियत ने
***************
************
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के
गहने मंदिरो में ।
उसी देहलीज पे एक रूपये को
तरसते नन्हें हाथों को देखा है।
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*************
सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूर्ती के
आगे ।
बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के
मरते देखा है ll
***************
************
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो
हरी मजार,
पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड
से ठिठुरते देखा है।
***************
*************
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में
हॉल के लिए,
घर में उसको 500 रूपये के लिए
काम वाली बाई बदलते देखा है।
***************
*************
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई
दुनिया का दर्द मिटाने को,
आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते
माँ बाप को देखा है।
***************
*************
जलाती रही जो अखन्ड ज्योति
देसी घी की दिन रात पुजारन,
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण
मौत से लड़ते देखा है ।
***************
************
जिसने नहीं दी माँ बाप को भर
पेट रोटी कभी जीते जी ,
आज लगाते उसको भंडारे मरने के
बाद देखा है ll
***************
*************
दे के समाज की दुहाई ब्याह
दिया था जिस बेटी को जबरन
बाप ने
आज पिटते उसी शौहर के हाथों
सरे बाजार देखा है ।
***************
************
मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क
दुर्घटना में यारों ,
जिसे खुद को काल सर्प,तारे और
हाथ की लकीरों का माहिर
लिखते देखा है
***************
***********
जिस घर की एकता की देता था
जमाना कभी मिसाल
दोस्तों
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार
को देखा है।
***************
************
बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने
यह कहकर,
अब इंसान ही इंसान को डसने के
काम आएगा।
***************
**********
आत्महत्या कर ली गिरगिट ने
सुसाइड नोट छोडकर,
अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं
बदल सकता।
***************
*********
गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है
उन्होंने देख लिया कि,इंसान हमसे
अच्छा नोंचता है।
***************
*********
कुत्ते कोमा में चले गए,ये देखकर कि
क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान
को देखा है


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🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷 🌷लहसुन:गरीबों की कस्तूरी🌷 लहसुन को सभी चिकित्सा ग्रंथों में गुणों की खान बताया है।इसके...

🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷

🌷लहसुन:गरीबों की कस्तूरी🌷

लहसुन को सभी चिकित्सा ग्रंथों में गुणों की खान बताया है।इसके अनेकानेक प्रयोग हैं।यह शरीर को ह्रष्ट-पुष्ट और कांतिवान बनाता है।जिगर महत्त्वपूर्ण रुप से स्वस्थ और निरोग है तो भी लहसुन का प्रयोग करें।ऐसा करने से शरीर तो सदा निरोग बना रहेगा और व्यक्ति स्वस्थ रहेगा।

लहसुन शरीर को मजबूत बनाता है।इसकी तासीर गर्म होती है,परंतु इसकी जब यही गर्मी शरीर के सारे दूषित विकार निकालकर बाहर फेंक देती है तो शरीर एकदम ठंडा,शांत और पवित्र बन जाता है।

लहसुन वास्तव में गुणों की खान है।इसमें विटामिन ए,बी तथा सी पाए जाते हैं।कुछ विषेशज्ञों के अनुसार,इसमें विटामिन ई भी होता है।प्रकृति में जो ६ रस पाये जाते हैं,उनमें से एक खटाई को छोड़कर बाकी सब इसमें प्रचरता के साथ हैं।

चरक संहिता,काश्यप संहिता तथा सुश्रुत संहिता में इसके गुणों के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है।

लहसुन का सेवन कच्चा ही ज्यादा उपयुक्त है।दो-चार कच्ची कली छीलकर फिर चबाकर ऊपर से दूध या पानी पी लेना चाहिए।
गर्मियों में सिर्फ १ या दो कली सेवन करें।

लहसुन हमारे शरीर में टूट-फूट की मरम्मत करता है।मृत कोशिकाओं को नवजीवन प्रदान करता है।शरीर में क्षय का घुन,नपुंसकता और क्षीणता को रोककर,फुर्तीला और चुस्त-दुरुस्त बनाता है।लहसुन शरीर में प्रवेश कर सभी रोगाणुओं को बड़ी आसानी से नष्ट कर देता है।यह शरीर में प्रवेश कर इतनी गर्मी पैदा करता है जिससे सारे रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।

यह रक्त म़े लाल कणों की बढ़ोतरी करता है।रक्त की कोशिकाओं को पुष्ट बनाता है।रक्त शुद्ध करता है।यह आंतों,पेट व आमाशय की भी सफाई करता है तथा उन्हें ठीक भी रखता है तथा पाचनक्रिया को दुरूस्त बनाता है।यह हड्डियों,माँस-पेशियों को मजबूत बनाता है।खून की खराबी को दूर करता है।इसकी गंध मात्र से ही शरीर में अदृश्य रुप से प्रवेश कर गये रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।इसका निरन्तर प्रयोग करने वाले को एनीमा लेने की आवश्यकता महसूस नहीं होती।

यह अनिद्रा को दूर करता है।पेट के रोगों का नाश करने वाला,ह्रदय को मजबूत बनाने वाला,विष के दुष्प्रभाव को नष्ट करने वाला है।यह शक्तिवर्धक,दिल को ताकत देने वाला,वीर्यवर्धक,स्निग्ध,टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला,नेत्रज्योतिवर्धक तथा पाचक है।

यह कब्ज को दूर करता है।सूजन को मिटाकर रक्त संचार की गति को ठीक करता है।इसके सेवन से अनेक रोग नष्ट होते हैं।इसका प्रभाव शीघ्र होने लगता है।चिकित्सा की दृष्टि से यह अत्यन्त मूल्यवान माना गया है।जो कार्य रोगों को नष्ट करने में सोने-चाँदी का ढेर काम नहीं कर सकता है,वह काम लहसुन का निरन्तर सेवन करने से मिलता है।

लहसुन खाने वाला पुरुष मजबूत शरीर वाला,बुद्धिमान,लम्बी आयु वाला,सुंदर संतान वाला होता है।लहसुन खाने वाले को थकान नहीं होती।

लहसुन कीड़ों को मारता है।कोढ़ मिटाता है।सफेद कुष्ठ मिटाता है।वात का असर दूर करता है।वायु गोला,अफारा दूर करता है।

सुश्रुत संहिता के अनुसार,लहसुन चिकना,गरम,तीखा,कटु,लेसदार,भारी,कब्ज को तोड़ने वाला,मधुर स्वर वाला,बलदायक,वीर्यवर्धक,बुद्धिवर्धक,स्वर को मधुर बनाने वाला,चेहरे की रंगत साफ करके कांति प्रदान करने वाला,आँखों की रोशनी बढ़ाने और आँखों के रोग दूर करने वाला है।
यह टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए लाजवाब है।ह्रदय रोग का नाश करता है।पुराने बुखार को दूर करता है।अरुचि मिटाता है,भूख बढ़ाता है,खांसी मिटाता है।शोथ,अर्श(बवासीर),कोढ़,मंदाग्नि को दूर करता है।पेट के कीड़े नष्ट करता है।वायु,सांस तथा कफ के रोगों को भी दूर करता है।

यदि इसे कच्चा ही खाया जाए तो कई रोगों को तो बड़ी आसानी से दूर कर देता है।यह आयुवर्धक,शरीर का भार बढ़ाने वाला है।शरीर को आकर्षक व निरोगी बनाता है।

स्त्रियों में सुकुमारता और सुन्दरता पैदा करता है।बालों के लिए लाभदायक है।यौवन स्थिर रखता है।

वनस्पतियों में लहसुन को अनुपम बताया गया है।इसकी तुलना में कोई रसायन,कोई औषधि,कोई भस्म या कोई योग नहीं है।इसके गुण सुनकर वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

लहसुन के संस्कृत नाम इस प्रकार हैं:-लशुन,उग्रगंध,रसौन,महौषध,अरिष्ट,पवनेष्ट,मलेच्छकंद और रसोनक।

आयुर्वेद के अनुसार,लहसुन शरीर को गर्म रखने वाला,कफ,गैस,अपच,बदहजमी दूर करने वाला,जोड़ों के दर्द और लकवा(अर्द्धांग) में लाभ पहुंचाने वाला,ह्रदय रोगों को दूर करने वाला है।

लहसुन काम शक्तिवर्धक,वीर्यवर्धक,तर-गरम और पाचक,कब्ज निवारक,तीव्र और मृदु है।टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला,गले के लिए लाभदायक,रक्तवर्धक,शरीर की रंगत को निखारने वाला,बुद्धिवर्धक,बुढ़ापानाशक,कफ व वायु रोगों को जड़ से नष्ट करने वाला,दिल को शक्ति देने वाला,बदहजमी,बुखार व पसलियों के दर्द को दूर करने वाला,भूख बढ़ाने वाला,खाँसी,सूजन,बवासीर व कोढ़नाशक व बलगम को शरीर से निकालने वाला है।

लहसुन के अंदर निमोनिया तो क्या तपेदिक (टी.बी.) तक को नष्ट करने की शक्ति विद्यमान है।समस्त चर्म रोग,अधरंग,रतौंधी,पथरी,भगंदर,स्त्रियों के मासिक स्राव के रोग,प्लीहा आदि के लिए लाभदायक है।

लहसुन का प्रयोग करते रहने से कमर,पेडू तथा अन्य अंग ठीक रहते हैं।मोटापा या कोई अन्य रोग नहीं सताता।लहसुन का नियमित प्रयोग करने वाली स्त्री कभी बन्ध्या नहीं होती।

वैद्यक ग्रंथों के अनुसार,लहसुन को सर्व रोग दूर करने वाला अमृत रसायन माना गया है।इसका सेवन करने वाले मनुष्य के दाँत,माँस,नाखून,बाल,रंग,यौवन और बल कभी भी क्षीण नहीं होते।

आधुनिक खोजों से यह पता चला है कि स्ट्रेप्टोमाइसीन इंजेक्शन जो क्षय (टी.बी.) रोग के लिए प्रयोग में लाया जाता है,यह उससे भी अधिक प्रभावशाली है।इसका कोई कुप्रभाव शरीर पर नहीं होता।

यह स्नायुसंस्थान को मजबूत बनाता है तथा पेट के रोग,फेफड़ों के रोग तथा प्रसवकाल में उत्पन्न रोगों को दूर करता है।

लहसुन गरीबों के लिए सबसे अधिक सस्ता एंटीबायोटिक और हानिरहित औषधि है।यह शरीर के पैर के नाखून से लेकर सिर के बाल तक शरीर के प्रत्येक भाग व अवयवों पर अपना रोगनाशक प्रभाव डालता है।जिनको दिल का दौरा पड़ता हो उन्हें लहसुन का सेवन शुरु कर देना चाहिए।
यह कई प्रकार की कैंसर की रसौलियों को ठीक करने की क्षमता रखता है।यह कोलेस्ट्रोल को भी कम करता है।

गर्भवती स्त्री व विद्यार्थी को (ब्रह्मचर्य काल में) इसका सेवन नहीं करना चाहिए।


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🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷 🌷द्रौपदी का केवल एक पति था-युधिष्ठिर🌷 विवाद क्यों पैदा हुआ था:- (१) अर्जुन ने द्रौपदी...

🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷

🌷द्रौपदी का केवल एक पति था-युधिष्ठिर🌷

विवाद क्यों पैदा हुआ था:-
(१) अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था।यदि उससे विवाह हो जाता तो कोई परेशानी न होती।वह तो स्वयंवर की घोषणा के अनुरुप ही होता।

(२) परन्तु इस विवाह के लिए कुन्ती कतई तैयार नहीं थी।

(३) अर्जुन ने भी इस विवाह से इन्कार कर दिया था।"बड़े भाई से पहले छोटे का विवाह हो जाए यह तो पाप है।अधर्म है।"(भवान् निवेशय प्रथमं)

मा मा नरेन्द्र त्वमधर्मभाजंकृथा न धर्मोsयमशिष्टः (१९०-८)

(४) कुन्ती मां थी।यदि अर्जुन का विवाह भी हो जाता,भीम का तो पहले ही हिडम्बा से(हिडम्बा की ही चाहना के कारण)हो गया था।तो सारे देश में यह बात स्वतः प्रसिद्ध हो जाती कि निश्चय ही युधिष्ठिर में ऐसा कोई दोष है जिसके कारण उसका विवाह नहीं हो सकता।

(५) आप स्वयं निर्णय करें कुन्ती की इस सोच में क्या भूल है?वह माता है,अपने बच्चों का हित उससे अधिक कौन सोच सकता है?इसलिए माता कुन्ती चाहती थी और सारे पाण्डव भी यही चाहते थे कि विवाह युधिष्ठिर से हो जाए।

प्रश्न:-क्या कोई ऐसा प्रमाण है जिसमें द्रौपदी ने अपने को केवल एक की पत्नि कहा हो या अपने को युधिष्ठिर की पत्नि बताया हो?

उत्तर:-(1) द्रौपदी को कीचक ने परेशान कर दिया तो दुःखी द्रौपदी भीम के पास आई।उदास थी।भीम ने पूछा सब कुशल तो है?द्रौपदी बोली जिस स्त्री का पति राजा युधिष्ठिर हो वह बिना शोक के रहे,यह कैसे सम्भव है?

आशोच्यत्वं कुतस्यस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः ।
जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि ।।-(विराट १८/१)

द्रौपदी स्वयं को केवल युधिष्ठिर की पत्नि बता रही है।

(2) वह भीम से कहती है-जिसके बहुत से भाई,श्वसुर और पुत्र हों,जो इन सबसे घिरी हो तथा सब प्रकार अभ्युदयशील हो,ऐसी स्थिति में मेरे सिवा और दूसरी कौन सी स्त्री दुःख भोगने के लिए विवश हुई होगी-

भ्रातृभिः श्वसुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता ।
एवं सुमुदिता नारी का त्वन्या दुःखिता भवेत् ।।-(२०-१३)

द्रौपदी स्वयं कहती है उसके बहुत से भाई हैं,बहुत से श्वसुर हैं,बहुत से पुत्र भी हैं,फिर भी वह दुःखी है।यदि बहुत से पति होते तो सबसे पहले यही कहती कि जिसके पाँच-पाँच पति हैं,वह मैं दुःखी हूँ,पर होते तब ना ।

(3) और जब भीम ने द्रौपदी को,कीचक के किये का फल देने की प्रतिज्ञा कर ली और कीचक को मार-मारकर माँस का लोथड़ा बना दिया तब अन्तिम श्वास लेते कीचक को उसने कहा था,“जो सैरन्ध्री के लिए कण्टक था,जिसने मेरे भाई की पत्नि का अपहरण करने की चेष्टा की थी,उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं अनृण हो जाऊंगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी।”-

अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम् ।
शांति लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रीकण्टकम् ।।-(विराट २२-७९)

इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति कहता हो तो क्या करें?मारने वाले की लाठी तो पकड़ी जा सकती है,बोलने वाले की जीभ को कोई कैसे पकड़ सकता है?

(4) द्रौपदी को दांव पर लगाकर हार जाने पर जब दुर्योधन ने उसे सभा में लाने को दूत भेजा तो द्रौपदी ने आने से इंकार कर दिया।उसने कहा जब राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं अपने को दांव पर लगाकर हार चुका था तो वह हारा हुआ मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है?महात्मा विदुर ने भी यह सवाल भरी सभा में उठाया।द्रौपदी ने भी सभा में ललकार कर यही प्रश्न पूछा था -क्या राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं को हारकर मुझे दांव पर लगा सकता था?सभा में सन्नाटा छा गया।किसी के पास कोई उत्तर नहीं था।तब केवल भीष्म ने उत्तर देने या लीपा-पोती करने का प्रयत्न किया था और कहा था,“जो मालिक नहीं वह पराया धन दांव पर नहीं लगा सकता परन्तु स्त्री को सदा अपने स्वामी के ही अधीन देखा जा सकता है।”-

अस्वाभ्यशक्तः पणितुं परस्व ।स्त्रियाश्च भर्तुरवशतां समीक्ष्य ।-(२०७-४३)

“ठीक है युधिष्ठिर पहले हारा है पर है तो द्रौपदी का पति और पति सदा पति रहता है,पत्नि का स्वामी रहता है।"यानि द्रौपदी को युधिष्ठिर द्वारा हारे जाने का दबी जुबान में भीष्म समर्थन कर रहे हैं।यदि द्रौपदी पाँच की पत्नि होती तो वह ,बजाय चुप हो जाने के पूछती,जब मैं पाँच की पत्नि थी तो किसी एक को मुझे हारने का क्या अधिकार था?द्रौपदी न पूछती तो विदुर प्रश्न उठाते कि"पाँच की पत्नि को एक पति दाँव पर कैसे लगा सकता है?यह न्यायविरुद्ध है।”

स्पष्ट है द्रौपदी ने या विदुर ने यह प्रश्न उठाया ही नहीं।यदि द्रौपदी पाँचों की पत्नि होती तो यह प्रश्न निश्चय ही उठाती।
इसीलिए भीष्म ने कहा कि द्रौपदी को युधिष्ठिर ने हारा है।युधिष्ठिर इसका पति है।चाहे पहले स्वयं अपने को ही हारा हो,पर है तो इसका स्वामी ही।और नियम बता दिया -जो जिसका स्वामी है वही उसे किसी को दे सकता है,जिसका स्वामी नहीं उसे नहीं दे सकता।

(5) द्रौपदी कहती है-“कौरवो! मैं धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपत्नि हूं।तथा उनके ही समान वर्ण वाली हू।आप बतावें मैं दासी हूँ या अदासी?आप जैसा कहेंगे,मैं वैसा करुंगी।”-

तमिमांधर्मराजस्य भार्यां सदृशवर्णनाम् ।
ब्रूत दासीमदासीम् वा तत् करिष्यामि कौरवैः ।।-(६९-११-९०७)

द्रौपदी अपने को युधिष्ठिर की पत्नि बता रही है।

(6) पाण्डव वनवास में थे दुर्योधन की बहन का पति सिंधुराज जयद्रथ उस वन में आ गया ।उसने द्रौपदी को देखकर पूछा -तुम कुशल तो हो?द्रौपदी बोली सकुशल हूं।मेरे पति कुरु कुल-रत्न कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर भी सकुशल हैं।मैं और उनके चारों भाई तथा अन्य जिन लोगों के विषय में आप पूछना चाह रहे हैं,वे सब भी कुशल से हैं।राजकुमार ! यह पग धोने का जल है।इसे ग्रहण करो।यह आसन है,यहाँ विराजिए।-

कौरव्यः कुशली राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः
अहं च भ्राताश्चास्य यांश्चा न्यान् परिपृच्छसि ।-(१२-२६७-१६९४)

द्रौपदी भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव को अपना पति नहीं बताती,उन्हें पति का भाई बताती है।

और आगे चलकर तो यह एकदम स्पष्ट ही कर देती है।जब युधिष्ठिर की तरफ इशारा करके वह जयद्रथ को बताती है-

एतं कुरुश्रेष्ठतमम् वदन्ति युधिष्ठिरं धर्मसुतं पतिं मे ।-(२७०-७-१७०१)

“कुरू कुल के इन श्रेष्ठतम पुरुष को ही ,धर्मनन्दन युधिष्ठिर कहते हैं।ये मेरे पति हैं।”

क्या अब भी सन्देह की गुंजाइश है कि द्रौपदी का पति कौन था?

(7) कृष्ण संधि कराने गे थे।दुर्योधन को धिक्कारते हुए कहने लगे"दुर्योधन! तेरे सिवाय और ऐसा अधम कौन है जो बड़े भाई की पत्नि को सभा में लाकर उसके साथ वैसा अनुचित बर्ताव करे जैसा तूने किया।-

कश्चान्यो भ्रातृभार्यां वै विप्रकर्तुं तथार्हति ।
आनीय च सभां व्यक्तं यथोक्ता द्रौपदीम् त्वया ।।-(२८-८-२३८२)

कृष्ण भी द्रौपदी को दुर्योधन के बड़े भाई की पत्नि मानते हैं।


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⏰ वैदिक सूक्ति 🎤 पर्णाल्लघीयसी भव || (अथर्व• १०|१|२९) हे मानव ! तू पर्ण = पत्ते से...

⏰ वैदिक सूक्ति 🎤

पर्णाल्लघीयसी भव || (अथर्व• १०|१|२९)

हे मानव !
तू पर्ण = पत्ते से भी हल्का बन अर्थात् नम्र बन ||

ओ३म्…!
वेदों की ओर लोटो ||
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🙏🙏आरोग्य दर्पण पत्रिका🙏🙏 👉जीवनोपयोगी बातें :- 1- सुबह उठ कर कैसा पानी पीना चाहिए? उत्तर: ...

🙏🙏आरोग्य दर्पण पत्रिका🙏🙏

👉जीवनोपयोगी बातें :-

1- सुबह उठ कर कैसा पानी पीना चाहिए?
उत्तर: हल्का गर्म
2- पानी पीने का क्या तरीका होता है?
उत्तर सिप सिप करके व नीचे बैठ कर.
3 -खाना कितनी बार चबाना चाहिए?
उत्तर: 32 बार
4- पेट भर कर खाना कब खाना चाहिए?
उत्तर: सुबह.
5- सुबह का खाना कब तक खा लेना चाहिए?
उत्तर: सूरज निकलने के ढाई घण्टे तक.
6- सुबह खाने के साथ क्या पीना चाहिए?
उत्तर: जूस
7- दोपहर को खाने के साथ क्या पीना चाहिए?
उत्तर: लस्सी/छाछ.
8 -रात को खाने के साथ क्या पीना चाहिए?
उत्तर: दूध.
9 -खट्टे फल किस समय नही खाने चाहिए?
उत्तर: रात को.
10 -लस्सी खाने के साथ कब पीनि चाहिए?
उत्तर: दोपहर को.
11 -खाने के साथ जूस कब लिया जा सकता है?
उत्तर: सुबह.
12 -खाने के साथ दूध कब ले सकते है?
उत्तर: रात को.
13 -आईसक्रीम कब खानी चाहिए?
उत्तर: कभी नही.
14- फ्रीज़ से निकाली हुई चीज कितनी देर बाद खानी चाहिए?
उत्तर: 1 घण्टे बाद.
15- क्या कोल्ड ड्रिंक पीना चाहिए?
उत्तर: नहीं.
16 -बना हुआ खाना कितनी देर बाद तक खा लेना चाहिए?
उत्तर: 40 मिनट.
17–रात को कितना खाना खाना चाहिए?
उत्तर: न के बराबर.
18 -रात का खाना किस समय कर लेना चाहिए?
उत्तर:- सूरज छिपने से पहले.
19 -पानी खाना खाने से कितने समय पहले पी सकते हैं?
उत्तर: 48 मिनट
20-क्या रात को लस्सी पी सकते हैं?
उत्तर: नही.
21 -सुबह खाने के बाद क्या करना चाहिए?
उत्तर: काम
22 -दोपहर को खाना खाने के बाद क्या करना चाहिए ?
उत्तर: आराम.
23 -रात को खाना खाने के बाद क्या करना चाहिए?
उत्तर: 500 कदम चलना चाहिए.
24 -खाना खाने के बाद हमेशा क्या करना चाहिए?
उत्तर: वज्र आसन.
25 -खाना खाने के बाद वज्रासन कितनी देर करना चाहिए? उत्तर: 5-10 मिनट.
26 -सुबह उठ कर आखों मे क्या डालना चाहिए?
उत्तर: मुंह की लार.
27 -रात को किस समय तक सो जाना चाहिए
उत्तर: 9-10बजे तक.
28- तीन जहर के नाम बताओ?
उत्तर: चीनी, मैदा, सफेद नमक.
29 -दोपहर को सब्जी मे क्या डाल कर खाना चाहिए?
उत्तर: अजवायन.
30 -क्या रात को सलाद खानी चाहिए?
उत्तर: नहीं.
31 -खाना हमेशा कैसे खाना चाहिए
उत्तर: नीचे बैठकर व खूब चबाकर.
32 -चाय कब पीनी चाहिए?
उत्तर: कभी नहीं.
33- दूध मे क्या डाल कर पीना चाहिए?
उत्तर: हल्दी.
34–दूध में हल्दी डालकर क्यों पीनी चाहिए?
उत्तर: कैंसर ना हो इसलिए.
35 -कौन सी चिकित्सा पद्धति ठीक है?
उत्तर: आयुर्वेद.
36 -सोने के बर्तन का पानी कब पीना चाहिए?
उत्तर: अक्टूबर से मार्च (सर्दियों मे)?
37–ताम्बे के बर्तन का पानी कब पीना चाहिए?
उत्तर: जून से सितम्बर(वर्षा ऋतु).
38 -मिट्टी के घड़े का पानी कब पीना चाहिए?
उत्तर: मार्च से जून (गर्मियों में).
39 -सुबह का पानी कितना पीना चाहिए?
उत्तर: कम से कम 2-3 गिलास.
40 -सुबह कब उठना चाहिए?
उत्तर: सूरज निकलने से डेढ़ घण्टा पहले.

आपसे विनम्र निवेदन है कि यह मैसेज कम से कम 2 लोगो को भेजें:
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वासन्ती नवसस्येष्टि होल्कोत्सव पर शहीदों को किया याद *आर्य समाज ने मनाया होली मिलन पर्व...

वासन्ती नवसस्येष्टि होल्कोत्सव पर शहीदों को किया याद
*आर्य समाज ने मनाया होली मिलन पर्व *
महरोनी(ललितपुर) महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज के तत्वाधान में नव सस्येष्टि यज्ञ (होल्कोत्सव पर्व )एवं शहीदों का बलिदान दिवस वैदिक रीति से मनाया गया ।जिसमें सर्व प्रथम वैदिक ब्रह्म एवं देव यज्ञं शिक्षक डी.एल.यादव के मुख्य यजमान में सम्पन्न हुआ।
आर्य समाज के प्रधान पंडित पुरूषोत्तम नारायण दुबे आर्य ने कहा कि होली पर्व का मुख्य उद्देश्य सारे मानव समूह का एक रंग में रंग जाना अर्थात चारों वर्ण ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र उंच-नीच का भेद भाव भुलाकर आपसी सौहार्द्र व् भाई चारे के रूप में राष्ट्र निर्माण में अपनी सहभागिता दे।
आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य मंत्री ने कहा कि हुतात्मा शहीदे आजम भगत सिंह का जन्म लायलपुर जिले (अब पकिस्तान)के बंगा नामक गाँव में 28 सितम्बर 1907 को आर्य समाजी परिवार व् देशभक्त क्रन्तिकारी सरदार किशन सिंह के यहाँ हुआ था।
वही पंजाब में क्रांतिकारी आन्दोलन की आत्मा सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 के दिन नौघारा जिला लुधियाना में लाला रामलाल व् माता रल्ली देई के यहाँ हुआ था।
23 मार्च 1931 को लाहौर सैंट्रल जेल में क्रान्तिकारी वीरों की जिस त्रिमूर्ति को फांसी देकर अंग्रेजी सरकार ने अमर बना दिया था , उसमें भगत सिंह और सुखदेव के साथ शिवराम हरि राजगुरु भी थे ।ये तीनों ही अपने ढंग के निराले नर रत्न थे ।भगत सिंह चिंतक और विचारक थे,सुखराम संगठनकर्ता थे और राजगुरु का निशाना अचूक था।
उप प्रधान हरप्रसाद प्रजापति एड पार्षद ने कहा कि चारित्रवान युवाओं के निर्माण में माता की अहम भूमिका ।
पंडित दिनेश नायक ने कहा कि आर्य समाज ही वैदिक सत्य सनातन धर्म की रक्षा करने में तत्पर है ।
शिक्षक डी एल यादव ने कहा कि बच्चों की सुशिक्षा के लिए सभी जनों को अपने उत्तरदायित्व का निर्वाहन करना जरूरी है ।
इस अवसर पर भल्लू प्रजापति,पंडित रघुवीर दयाल नायक,हरप्रसाद प्रजापति एड,चंद्रभान सिंह,रविन्द्र सिंह सेंगर छोटू,दिनेश सिंह,ओम प्रकाश नामदेव,श्रीदेवी नायक,सुमन लता सेन,उमा देवी,रामाबाई,मिथलेश सिंह,जयदेवी शुक्ला,विद्या देवी घोषी,रागनी दुबे,अनुराग शेषा,डी.एल .नागल,विवेकानंद प्रजापति,राजेंद्र प्रजापति,धरमू नामदेव आदि आर्यजन उपस्थित रहें।
संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य व् आभार पंडित दिनेश नायक ने जताया।


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🌷 अंग्रेज़ी शिक्षा क्यों ? 🌷 डॉ. गौतम श्रीमाली आज हर व्यक्ति ,चाहे वह धनी हो निर्धन हो ,...

🌷 अंग्रेज़ी शिक्षा क्यों ? 🌷

डॉ. गौतम श्रीमाली

आज हर व्यक्ति ,चाहे वह धनी हो
निर्धन हो , मजदूर हो , अधिकारी हो,
पुरोहित हो , विद्वान हो या अशिक्षित
हो, सब अपने बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए भेजना चाहता है। क्यों ?????

वह इसलिए , क्योंकि जब वह सरकारी स्कूलों में आरक्षण से आए
अध्यापकों को देखता है । वहाँ के पढ़ाने का ढंग देखता है । वहाँ से
निकले छात्रों का भविष्य देखता है कि
किस प्रकार वे वहाँ से अयोग्य बनकर
निकलते हैं तो उसे शिक्षा और शिक्षा
पद्धति से घृणा हो जाती है।

वह प्रतिज्ञा कर लेता है कि भले ही वह
मेहनत मजदूरी करेगा लेकिन अपने
बच्चे को वह सरकारी स्कूल में नहीं
पढ़ाएगा।

आचार्य चाणक्य ने कहा है —-
अर्थकरी च विद्या अर्थात् विद्या
धन देने वाली भी हो। पहले लोग
केवल ज्ञान के लिए पढ़ते थे। अब ज्ञान की परिभाषा बदल गई है। अब ज्ञान वह जो धन दे। जो धन न दे सके
वह विद्या व्यर्थ है।

शिक्षा को क्रियात्मक practical
बनाना चाहिए , चाहे वह सरकारी स्कूल हो , गुरुकुल हो या अन्य कोई
शिक्षण संस्थान , सबका यह प्रथम
कर्तव्य है कि जब कोई छात्र विद्यालय
से निकले तो वह अपनी रोज़ी रोटी
कमा सके उसे इस योग्य अवश्य बनाए।
यदि बाहर निकल कर वह रोटी के लिए भटकने लगा तो यह शिक्षा नहीं है।

आज आरक्षण ने शिक्षा के प्रति लोगों
के मन में घृणा बैठा दी है। हमें इस प्रथा को रोकना होगा। योग्य शिक्षा
तथा योग्य अध्यापकों का प्रबंध करना
होगा। तभी शिक्षा को उसका गौरव
प्राप्त होगा।


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कविता का शीर्षक है आर्य, हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह...

कविता का शीर्षक है आर्य,
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिह्न उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े
वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा
संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में
वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे।


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ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना गान विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रन्तन्न आसुव।। सकल...

ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना गान

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद्भद्रन्तन्न आसुव।।

सकल जगत् के उत्पादक हे,
हे सुखदायक शुद्ध स्वरूप।
हे समग्र ऐश्वर्ययुक्त हे,
परमेश्वर हे अगम अनूप।।
दुर्गुण दुरित हमारे सारे,
शीघ्र कीजिए हमसे दूर।
मंगलमय गुण-कर्म-शील से,
करिए प्रभु हमको भरपूर।। 1।।


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|५| ऋषि सन्देश |५| “हम और आपको अति उचित है कि जिस देश के पदार्थों से अपना शरीर बना, अब भी...

|५| ऋषि सन्देश |५|

“हम और आपको अति उचित है कि जिस देश के पदार्थों से अपना शरीर बना, अब भी पालन होता है, आगे भी होगा उसकी उन्नति तन-मन-धन से सब मिलकर प्रीति से करें ||”

—स्वामी दयानन्द सरस्वती


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भारत माता शब्द नही है श्रद्धा का सम्बोधन है, भारत माता प्रेम समर्पण सम्बल का उद्बोधन है, भारत माता...

भारत माता शब्द नही है श्रद्धा का सम्बोधन है,
भारत माता प्रेम समर्पण सम्बल का उद्बोधन है,

भारत माता भाव पटल पर अमिट अखंडित सूरत है,
भारत माता हर बेटे के मनमंदिर की मूरत है,

भारत माता,स्वाभिमान है भरत भूमि की माटी का,
भारत माता अमर गान है,वीरों की परिपाटी का,
भारत माता,जंगें आज़ादी की अमर कहानी है,
भारत माता,बलिदानी आँखों का निर्मल पानी है,

भारत माता शेखर की पिस्टल से निकली गोली है,
ये अशफाक,कलाम,और अब्दुल हमीद की बोली है,

भारत माता सरहद से आई शहीद की पाती है,
भारत माता हर सैनिक के नयन दीप की बाती है,

भारत माता,पूजा है,अर्पण है,सबकी भाषा है,
भारत माता वतन परस्ती की अंतिम परिभाषा है,

हम सब इसके बेटे हैं,ये सबकी जीवनदाता है,
किसी धर्म की नही बल्कि ये सवा अरब की माता है

कुछ कपूत माइक पर आकर अपना दुखड़ा कहते है,
भारत माता को केवल धरती का टुकड़ा कहते हैं,

इसके आँचल में आने को बाहें खोल नही सकते,
मर जायेंगे,भारत माता की जय बोल नही सकते,

ये वो हैं जिनके पुरखों ने पंख देश के काटे हैं,
भारत माँ को गाली दी जिन्ना के तलवे चाटे हैं,

इसी धरा का खाते पीते, जिस्म पहाड़ी रखते हैं,
सिर पर टोपी गोल और लंबी सी दाढ़ी रखते हैं,

प्यार वतन से हैं इनको,दावा करते चिल्लाते हैं,
लेकिन भारत को ये माता कहने में शरमाते हैं,

असली रंग दिखाया देखो,सैतालिस के पापों ने,
डंक मारना शुरू कर दिया आस्तीन के साँपों ने,

ये गौरव चौहान कहे अब दूर वतन की खाज करो,
संविधान में नियम लिखा दो,इनका सही इलाज करो,

वर्ना कुछ दिन बाद गीत ये पाकिस्तानी गाएंगे,
भारत माँ के ये कपूत भारत माँ को खा जायेंगे,


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🌻🌻🌻ओ३म्🌻🌻🌻 🌷मूर्ति-पूजा🌷 भारत की अवनति का मूल और सबसे प्रमुख कारण है ‘मूर्ति-पूजा'।इस विषय...

🌻🌻🌻ओ३म्🌻🌻🌻

🌷मूर्ति-पूजा🌷

भारत की अवनति का मूल और सबसे प्रमुख कारण है ‘मूर्ति-पूजा'।इस विषय में हम बाबू श्री देवेन्द्रनाथ जी मुखोपध्याय के स्वर-म़े-स्वर मिलाकर कहना चाहते हैं:-
“मूर्ति पूजा ने भारत के अकल्याण की जो सामग्री एकत्र की है,उसे लेखनी लिखने म़े असमर्थ है।मूर्ति पूजा ने भारतवासियों का जो अनिष्ट किया है,उसे प्रकट करने म़े हमारी अपूर्ण-विकसित भावप्रकाशक शक्ति अशक्त है।

जो धर्म सम्पूर्ण भाव से आन्तरिक वा आध्यात्मिक था,उसे सम्पूर्ण रुप से वाह्य किसने बनाया?-मूर्ति पूजा ने।काम आदि शत्रुओं के दमन और वैराग्य के साधन के बदले तिलक और त्रिपुण्ड किसने धारण कराया?-मूर्ति पूजा ने।ईश्वर भक्ति,ईश्वर प्रिति,परोपकार और स्वार्थ-त्याग के बदले अंग में गोपी-चन्दन का लेपन,मुख से गंगा लहरी का उच्चारण,,कण्ठ में अनेक प्रकार की मालाओं का धारण किसने कराया?-मूर्ति पूजा ने।संयम,शुद्धता,चित्त की एकाग्रता आदि के साथ में त्रीसीमा(धारणा,ध्यान,समाधि) में प्रवेश न कर केवल दिनविषेश पर खाद्य सामग्री का सेवन न करना,प्रातःकाल,मध्याह्न काल और सांयकाल में अलग-अलग वस्त्रों के पहनने का आयोजन और तिथिविषेश पर मनुष्यविषेश का मुख देखना तो दूर रहा,उसकी छाया तक का स्पर्श न करना,यह सब किसने सिखाया?-मूर्ति पूजा ने।
हिन्दुओं के चित्त से स्वाधीन चिन्तन की शक्ति किसने हरण की?-मूर्ति पूजा ने।
हिन्दुओं के मनोबल,उदारता,पराक्रम और सत्साहस को किसने दूर किया?-मूर्ति पूजा ने।प्रेम,संवेदना और परदुःखानुभूति के बदले घोरतम स्वार्थपरता को हिन्दुओं के चरित्र में कौन लाई?-मूर्ति पूजा।हिन्दुओं को अमानुष,अपितु पशुओं से भी अधम किसने बनाया?-मूर्ति पूजा ने।आर्यावर्त्त के सैकड़ों टुकड़े किसने किये?-मूर्ति पूजा ने।आर्यजाति को सैकड़ों टुकड़ों में किसने बाँटा?-मूर्ति पूजा ने।इस देश को सैकड़ों वर्षों से पराधीनता की बेड़ी में किसने जकडे रखा?-मूर्ति पूजा ने।कौन सा अनर्थ है,जो मूर्ति पूजा द्वारा सम्पादित नहीं हुआ?

सच्ची बात तो ये है कि आप चाहे हाईकोर्ट के न्यायाधीश हों या गवर्नर,आप चाहे बुद्धि में बृहस्पति के तुल्य हो या वाग्मिता में गेटे से भी बढ़कर,चाहे कितने ही बड़े आदमी हों परन्तु यदि किसी अंश में भी आप मूर्ति पूजा का समर्थन करेंगे,तो हमें ये कहने में संकोच नहीं होगा कि आप किसी अंश में भी भारत के मित्र नहीं हो सकते,क्योंकि मूर्ति-पूजा भारत के सारे अनिष्टों का मूल है।”


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📖सत्यार्थ प्रकाश 📖 ~~~~~~~~~~~~~~~~ (प्रश्न) कोई कहते हैं कि ये लोग ईरान से आये। इसी से इन लोगों का...

📖सत्यार्थ प्रकाश 📖
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(प्रश्न) कोई कहते हैं कि ये लोग ईरान से आये। इसी से इन लोगों का नाम आर्य हुआ है। इन के पूर्व यहां जंगली लोग बसते थे कि जिन को असुर और राक्षस कहते थे। आर्य लोग अपने को देवता बतलाते थे और उन का जब संग्राम हुआ उसका नाम देवासुर संग्राम कथाओं में ठहराया।
(उत्तर) यह बात सर्वथा झूठ है। क्योंकि—
वि जानीह्यार्यान्ये च दस्यवो बर्हिष्मते रन्धयाशासदव्रतान्॥
—ऋ॰ मं॰ 1। सू॰ 51। मं॰ 8॥
उत शूद्रे उतार्ये॥
—यह भी वेद का प्रमाण है।
यह लिख चुके हैं कि आर्य नाम धार्मिक, विद्वान्, आप्त पुरुषों का और इन से विपरीत जनों का नाम दस्यु अर्थात् डाकू, दुष्ट, अधार्मिक और अविद्वान् है तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य द्विजों का नाम आर्य और शूद्र का नाम अनार्य अर्थात् अनाड़ी है।
जब वेद ऐसे कहता है तो दूसरे विदेशियों के कपोलकल्पित को बुद्धिमान् लोग कभी नहीं मान सकते और देवासुर संग्राम में आर्यवर्त्तीय अर्जुन तथा महाराजा दशरथ आदि; हिमालय पहाड़ में आर्य और दस्यु म्लेच्छ असुरों का जो युद्ध हुआ था; उस में देव अर्थात् आर्यों की रक्षा और असुरों के पराजय करने को सहायक हुए थे। इस से यही सिद्ध होता है कि आर्यावर्त्त के बाहर चारों ओर जो हिमालय के पूर्व आग्नेय, दक्षिण, नैर्ट्टत, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान देश में मनुष्य रहते हैं उन्हीं का नाम असुर सिद्ध होता है। क्योंकि जब-जब हिमालय प्रदेशस्थ आर्यों पर लड़ने को चढ़ाई करते थे तब-तब यहां के राजा महाराजा लोग उन्हीं उत्तर आदि देशों में आर्यों के सहायक होते थे। और श्रीरामचन्द्र जी से दक्षिण में युद्ध हुआ है। उस का नाम देवासुर संग्राम नहीं है किन्तु उस को राम-रावण अथवा आर्य और राक्षसों का संग्राम कहते हैं।
किसी संस्कृत ग्रन्थ में वा इतिहास में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आये और यहां के जङ्गलियों को लड़कर, जय पाके, निकाल के इस देश के राजा हुए। पुनः विदेशियों का लेख माननीय कैसे हो सकता है? और—
आर्यवाचो म्लेच्छवाचः सर्वे ते दस्यवः स्मृताः॥1॥
म्लेच्छदेशस्त्वतः परः॥2॥मनु॰॥
जो आर्यावर्त्त देश से भिन्न देश हैं वे दस्युदेश और म्लेच्छदेश कहाते हैं। इस से भी यह सिद्ध होता है कि आर्यावर्त्त से भिन्न पूर्व देश से लेकर ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम देशों में रहने वालों का नाम दस्यु और म्लेच्छ तथा असुर है और नैर्ऋत, दक्षिण तथा आग्नेय दिशाओं में आर्यावर्त्त देश से भिन्न रहने वाले मनुष्यों का नाम राक्षस है।
अब भी देख लो! हबशी लोगों का स्वरूप भयंकर जैसा राक्षसों का वर्णन किया है वैसा ही दीख पड़ता है और आर्यावर्त्त की सूध पर नीचे रहने वालों का नाम नाग और उस देश का नाम पाताल इसलिये कहते हैं कि वह देश आर्यवर्त्तीय मनुष्यों के पाद अर्थात् पग के तले है और उन को नागवंशी अर्थात् नाग नाम वाले पुरुष के वंश के राजा होते थे। उसी की उलोपी राजकन्या से अजुर्न का विवाह हुआ था अर्थात् इक्ष्वाकु से लेकर कौरव पाण्डव तक सर्व भूगोल में आर्यों का राज्य और वेदों का थोड़ा-थोड़ा प्रचार आर्यावर्त्त से भिन्न देशों में भी रहा।
इस में यह प्रमाण है कि ब्रह्मा का पुत्र विराट्, विराट् का मनु, मनु का मरीच्यादि दश इनके स्वायम्भुवादि सात राजा और उन के सन्तान इक्ष्वाकु आदि राजा जो आर्यावर्त्त के प्रथम राजा हुए जिन्होंने यह आर्यवर्त्त बसाया है। अब अभाग्योदय से और आर्यों के आलस्य, प्रमाद, परस्पर के विरोध से अन्य देशों के राज्य करने की तो कथा ही क्या कहनी किन्तु आर्यावर्त्त में भी आर्यों का अखण्ड, स्वतन्त्र, स्वाधीन, निर्भय राज्य इस समय नहीं है। जो कुछ है सो भी विदेशियों के पादाक्रान्त हो रहा है। कुछ थोड़े राजा स्वतन्त्र हैं। दुर्दिन जब आता है तब देशवासियों को अनेक प्रकार का दुःख भोगना पड़ता है। कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मत-मतान्तर के आग्रहरहित अपने और पराये का पक्षपातशून्य प्रजा पर पिता माता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। परन्तु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक्-पृथक् शिक्षा, अलग व्यवहार का विरोध छूटना अति दुष्कर है। विना इसके छूटे परस्पर का पूरा उपकार और अभिप्राय सिद्ध होना कठिन है। इसलिये जो कुछ वेदादि शास्त्रों में व्यवस्था वा इतिहास लिखे हैं उसी का मान्य करना भद्रपुरुषों का काम है।
(अष्टम समुल्लास:सत्यार्थप्रकश)
—–स्वामी दयानन्द सरस्वती


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मैं “होलिका” हूं, वही होलिका जिसको हर साल आप लोग जलाते हैं, और फिर जीभर कर होली खेलते...

मैं “होलिका” हूं, वही होलिका जिसको हर साल आप लोग जलाते हैं, और फिर जीभर कर होली खेलते हैं एवं नशा करते हैं। आज मैं आप लोगों से एक सच्चाई बताना चाहती हूं,कि मेरे साथ क्या हुआ था और मैं कैसे जली?मेरा घर लखनऊ के पास हरदोई ज़िले में था, मेरे दो भाई थे राजा हिरण्याक्ष और राजा हिरण्यकश्यप। राजा हिरण्याक्ष ने आर्यों द्वारा कब्ज़ा की हुई सम्पूर्ण भूमि को जीतकर अपने कब्ज़े में कर लिया था। यही से आर्यो ने अपनी दुश्मनीका षड़यंत्र रचना शुरू किया। आर्यो ने मेरे भाई हिरण्याक्ष को विष्णु नामक आर्य राजा ने धोखे से मार डाला। उसके बाद मेरे भाई राजा हिरण्यकश्यप ने अपने भाई के हत्यारे विष्णु की पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद। विष्णु ने नारद नामक आर्य से जासूसी कराकर प्रह्लाद को गुमराह किया और घर में फूट डाल दिया। प्रह्लाद गद्दार निकला और विष्णु से मिल गया तथा दुर्व्यसनों में पड़कर पूरी तरह आवारा हो गया। सुधार के तमाम प्रयास विफ़ल हो जाने पर राजा ने उसे घर से निकाल दिया। अब प्रह्लाद आर्यो की आवारा मण्डली के साथ रहने लगा, वह अव्वल नंबर का शराबी और नशाखोर बन गया था।परंतु मेरा (होलिका) स्नेह अपने भतीजे प्रह्लाद के प्रति बना ही रहा। मैं अक्सर राजा से छुपकर प्रह्लाद को खाना खिला आती थी।फागुन माह की पूर्णिमा थी, मेरा विवाह तय हो चुका था, फागुनपूर्णिमा के दूसरे दिन ही मेरी बारात आने वाली थी।मैंने सोचा कि आखिरी बार प्रह्लाद से मिल लू। क्योंकि अगले दिन मुझे अपनी ससुराल जाना था।जब मैं प्रह्लाद को भोजन देने पहुंची तो प्रह्लाद नशे में इतना धुत था कि वह खुद को ही संभाल नहीं पा रहा था। फिर क्या था,प्रह्लाद की मित्र मण्डली(आर्यो) ने मुझे पकड़ लिया और मेरे साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इतना ही नहीं भेद खुलने के डर से उन लोगों ने मेरी हत्या भी कर दी और मेरी लाश को भी जला दिया।जब मेरे भाई राजा हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो उन्होंने मेरे हत्यारों को पकड़ लिया और उनके माथे पर तलवार की नोंक से “अवीर”(अ+वीर अर्थात कायर) लिखवा दिया तथा वहां उपस्थित प्रजा ने उनके मुख पर कालिख पोतकर, जूते-चप्पल की माला पहनाकर एवं गधे पर बैठाकर पूरे राज्य में जुलुस निकाला। जुलुस जिधर से भी जाता हर कोई उनपर कीचड़, मिट्टी कालिख फ़ेककर उन्हें ज़लील करता।परंतु आज समय के साथ आर्यो ने उस सच्चाई को छुपा दिया और उसका रूप बदलकर “होलिका दहन” और “होली का त्योहार” कर दिया।मेरे मूलनिवासी भाइयों यह “अवीर” का टीका तो उन लोगों के लिए है जो बहन-बेटियों के हत्यारे और बलात्कारी होते हैं। तो क्या अब भी आप अपनी बहन(होलिका) को जलायेंगे? अवीर(कायर) का टीका लगायेंगे? और शोक के दिन जश्न(होली का त्योहार) मनायेंगे?फ़ैसला अब आपको करना है।आपके फ़ैसले और न्याय के इंतज़ार में आपकी बहन “होलिक
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सर्दी खांसी जुकाम का इलाज़ • एक अच्छी दवाई खांसी जुखाम एलर्जी सर्दी आदि के लिए जिसे आप घर पर बना...

सर्दी खांसी जुकाम का इलाज़

• एक अच्छी दवाई खांसी जुखाम एलर्जी सर्दी आदि के लिए जिसे आप घर पर बना सकते है इसके लिए आपको चाहिए तुलसी के पत्ते, तना और बीज तीनो का कुल वजन 50 ग्राम इसके लिए आप तुलसी के ऊपर से तोड ले इसमें बीज तना और तुलसी के पत्ते तीनो आ जाएंगे इनको एक बरतन में डाल कर 500 मिलि पानी डाल ले और इसमें 100 ग्राम अदरक और 20 ग्राम काली मिर्च दोनो को पीस कर डाले और अच्छे से उबाल कर काढे और जब पानी 100 ग्राम रह जाए तो इसे छान कर किसी कांच की बोतल में डाल कर रखे इसमे थोडा सा शहद मिला कर आप इसके दो चम्मच ले सकते है दिन में 3 बार

• जुखाम के लिए 2 चम्मच अजवायन को तवे पर हल्का भूने और फ़िर उसे एक रूमाल या कपडे में बांध ले और पोटली बना ले……उस पोटली को नाक से सूंघे और सो जाए

• खांसी के लिए रोज दिन में 3 बार हल्के गर्म पानी में आधा चम्मच सैंधा नमक डाल कर गरारे(gargles) करे सुबह उठ कर दोपहर को और फ़िर रात को सोने से पहले…………..एक चम्मच शहद में थोडी सी पीसी हुई काली मिर्च का पाऊडर डाल कर मिलाए और उसे चाटे………..अगर खासी ज्यादा आ रही हो तो 2 साबुत कालीमिर्च के दाने और थोडी सी मिश्री मुंह में रख कर चूसे आराम मिलेगा

• अगर दही खाते है तो उसे बंद करदे और रात को सोते समय दूध न पिए

• तुलसी, काली मिर्च और अदरक की चाय खांसी में सबसे बढि़या रहती हैं।

• हींग, त्रिफला, मुलहठी और मिश्री को नीबू के रस में मिलाकर लेने से खांसी कम करने में मदद मिलती है।

• पीपली, काली मिर्च, सौंठ और मुलहठी का चूर्ण बनाकर चौथाई चम्मच शहद के साथ लेना अच्छा रहता है।


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मैं “होलिका” हूं, वही होलिका जिसको हर साल आप लोग जलाते हैं, और फिर जीभर कर होली खेलते...

मैं “होलिका” हूं, वही होलिका जिसको हर साल आप लोग जलाते हैं, और फिर जीभर कर होली खेलते हैं एवं नशा करते हैं। आज मैं आप लोगों से एक सच्चाई बताना चाहती हूं,कि मेरे साथ क्या हुआ था और मैं कैसे जली?मेरा घर लखनऊ के पास हरदोई ज़िले में था, मेरे दो भाई थे राजा हिरण्याक्ष और राजा हिरण्यकश्यप। राजा हिरण्याक्ष ने आर्यों द्वारा कब्ज़ा की हुई सम्पूर्ण भूमि को जीतकर अपने कब्ज़े में कर लिया था। यही से आर्यो ने अपनी दुश्मनीका षड़यंत्र रचना शुरू किया। आर्यो ने मेरे भाई हिरण्याक्ष को विष्णु नामक आर्य राजा ने धोखे से मार डाला। उसके बाद मेरे भाई राजा हिरण्यकश्यप ने अपने भाई के हत्यारे विष्णु की पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद। विष्णु ने नारद नामक आर्य से जासूसी कराकर प्रह्लाद को गुमराह किया और घर में फूट डाल दिया। प्रह्लाद गद्दार निकला और विष्णु से मिल गया तथा दुर्व्यसनों में पड़कर पूरी तरह आवारा हो गया। सुधार के तमाम प्रयास विफ़ल हो जाने पर राजा ने उसे घर से निकाल दिया। अब प्रह्लाद आर्यो की आवारा मण्डली के साथ रहने लगा, वह अव्वल नंबर का शराबी और नशाखोर बन गया था।परंतु मेरा (होलिका) स्नेह अपने भतीजे प्रह्लाद के प्रति बना ही रहा। मैं अक्सर राजा से छुपकर प्रह्लाद को खाना खिला आती थी।फागुन माह की पूर्णिमा थी, मेरा विवाह तय हो चुका था, फागुनपूर्णिमा के दूसरे दिन ही मेरी बारात आने वाली थी।मैंने सोचा कि आखिरी बार प्रह्लाद से मिल लू। क्योंकि अगले दिन मुझे अपनी ससुराल जाना था।जब मैं प्रह्लाद को भोजन देने पहुंची तो प्रह्लाद नशे में इतना धुत था कि वह खुद को ही संभाल नहीं पा रहा था। फिर क्या था,प्रह्लाद की मित्र मण्डली(आर्यो) ने मुझे पकड़ लिया और मेरे साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इतना ही नहीं भेद खुलने के डर से उन लोगों ने मेरी हत्या भी कर दी और मेरी लाश को भी जला दिया।जब मेरे भाई राजा हिरण्यकश्यप को यह बात पता चली तो उन्होंने मेरे हत्यारों को पकड़ लिया और उनके माथे पर तलवार की नोंक से “अवीर”(अ+वीर अर्थात कायर) लिखवा दिया तथा वहां उपस्थित प्रजा ने उनके मुख पर कालिख पोतकर, जूते-चप्पल की माला पहनाकर एवं गधे पर बैठाकर पूरे राज्य में जुलुस निकाला। जुलुस जिधर से भी जाता हर कोई उनपर कीचड़, मिट्टी कालिख फ़ेककर उन्हें ज़लील करता।परंतु आज समय के साथ आर्यो ने उस सच्चाई को छुपा दिया और उसका रूप बदलकर “होलिका दहन” और “होली का त्योहार” कर दिया।मेरे मूलनिवासी भाइयों यह “अवीर” का टीका तो उन लोगों के लिए है जो बहन-बेटियों के हत्यारे और बलात्कारी होते हैं। तो क्या अब भी आप अपनी बहन(होलिका) को जलायेंगे? अवीर(कायर) का टीका लगायेंगे? और शोक के दिन जश्न(होली का त्योहार) मनायेंगे?फ़ैसला अब आपको करना है।आपके फ़ैसले और न्याय के इंतज़ार में आपकी बहन “होलिक
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🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷 🌷दुर्गुण त्याग🌷 वेद दुर्गुण,दुर्व्यसन और बुराइयों को दूर करने,नष्ट करने और निकाल भगाने...

🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷

🌷दुर्गुण त्याग🌷

वेद दुर्गुण,दुर्व्यसन और बुराइयों को दूर करने,नष्ट करने और निकाल भगाने का आदेश देते हैं।मांस भक्षण का निषेध करते हुए वेद कहता है-

शेरभक शेरभ पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनः।
यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत् तमत्त स्वा मांसान्यत्त।।-(अथर्व० २/२४/१)

हे नृशंस हिंसक ! हे हत्यारे ! सर्वभक्षियो ! तुम्हारे अनुयायी लौट जाएँ।तुम्हारे अस्त्र-शस्त्र भी तुम्हारे पास ही लौट जाएँ अर्थात् तुम्हारे हथियार तुम्हें ही दुःखदायी हों।तुम जिनके सम्बन्धी हो उन्हें खाओ,जो तुम्हें हिंसा के लिए प्रेरित करें उसे खाओ,अपने मांस को खाओ।

वेद ने मांस-भक्षण का कितने प्रबल शब्दों में निषेध किया है।

मद्यपान(शराब) का निषेध करते हुए वेद कहता है-

ह्रत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम् ।
ऊधर्न नग्ना जरन्ते ।।–(ऋ० ८/२/१२)
अर्थ:-जी खोलकर शराब पीने वाले मदयुक्त पुरुषों की भांति परस्पर लड़ते हैं और नग्नों की भांति रात को बड़बड़ाया करते हैं।

शराब पीने वालों की दशा का वर्णन कर वेद इस दुर्व्यसन को छोड़ने का उपदेश करता है।

अब जुआ-निषेध का अवलोकन कीजिए-
अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्कृषस्व वित्ते रमस्व बहु मन्यमानः ।
तत्र गावः कितव तत्र जाया तन्मे विचष्टे सवितायमर्यः ।।-(ऋग्वेद १०/३४/१३)

अर्थ:-हे जुआरी ! तू जुआ मत खेल,खेती ही कर।उसको ही बहुत मानता हुआ खेती द्वारा प्राप्त धन में आनन्दलाभ कर।हे जुआरी ! उसी खेती में गौएँ हैं,उसी में स्त्री=गृहसुख है।सर्वप्रेरक उपदेष्टा तुझे उसी का उपदेश करे।

काम,क्रोध,लोभ आदि को दूर करने का उपदेश देते हुए वेद कहता है-

उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोकयातुम् ।
सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र ।।-(अथर्व० ८/४/२२)

अर्थ:-उलूक=उल्लू की चाल मोह को,भेड़िये की चाल क्रोध को,कुत्ते की चाल स्वजाति-द्रोह,मत्सर=जलन और चाटकारिता को,कोक=चिड़ा-चिड़े की चाल कामवासना को,गरुड़ की चाल अहंकार को और गीध की चाल लोभवृत्ति को छोड़ दे।हे आत्मन् ! इन राक्षसों(दुष्ट प्रवृत्तियों) को ऐसे रगड़ दे जैसे सिल-बट्टे पर मसाला रगड़ा जाता है।

वेदभक्त अपने जीवन के सभी दुर्गुणों और दुर्व्यसनों को दूर करने के लिए प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहता है-

अति निहो अति स्रिधोsत्यचित्तिमत्यरातिमग्ने ।
विश्वा ह्यग्ने दुरिता सहस्वाथास्मभ्यंसहवीरांरयिं दाः ।।-(यजु० २७/६)

अर्थ:-हे सर्वविघ्नवारक प्रभो ! असत्य आदि गिरावट के साधनों को दूर कर दे।हमारी मूर्खता और अज्ञान का नाश कर दे।कंजूसी के भाव को हमारे जीवन से निकाल दो।हे दुःखदलनकर्ता प्रभो ! सभी बुराइयों को मसल दे।हमें वीर-सन्तान तथा धन-सम्पत्ति प्रदान करो।

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव ।
यद्भद्रन्तन आसुव ।।-(यजु० ३०/३)

अर्थ:-हे सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता ! दिव्यगुण युक्त परमेश्वर ! आप कृपा करके हमारे सम्पूर्ण दुर्गुणों को दूर कर दीजिए और जो कल्याणकारी एवं भद्र है वह हमें प्राप्त कराइए।


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सुबह उठते ही पहला एक घण्टा बहुत महत्व का है । इस समय बिना कुछ किये ही ध्यान लगता है । एक प्रभु...

सुबह उठते ही पहला एक घण्टा बहुत महत्व का है । इस समय बिना कुछ किये ही ध्यान लगता है । एक प्रभु प्रदत्त नीरवता स्वाभाविक एकाग्रता देकर असीम शान्ति प्रदान करती है ।

कुछ ज्यादा समझदार लोग इस अनमोल समय में भक्ति गीत चला कर सारे काम को बिगाड़ देते हैं । सब चोपट कर देते हैं ।


👉🏿 सुबह के इस दुर्लभ समय में मौन रहकर ही प्रभु का साक्षात्कार सम्भव हो पाटा है । बिलकुल भी कोई भक्ति गीत मत चलाइये इस समय । इस समय में घर पर अनावश्यक रौशनी ( बल्ब आदि जलाना ) भी मत कीजिये अपितु अँधेरा रखिये । परिवार का कोई सदस्य आपस में वार्ता भी न करे । सम्भव हो तो अभिवादन भी न करे । अति आवश्यक होने पर संकेतों से काम चला लेवें । तभी हम उस प्रातः वेला को विकार रहित रखकर उच्चकोटि के चिंतन का उत्तम लाभ ले सकते हैं ।


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ऒ३म् स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुत्व (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती की दृष्टि में) - नवीन मिश्र स्वामी...

ऒ३म्

स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुत्व
(स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती की
दृष्टि में)
- नवीन मिश्र
स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती एक
वैज्ञानिक संन्यासी थे। वे एक मात्र
ऐसे स्वाधीनता सेनानी थे जो
वैज्ञानिक के रूप में जेल गए थे। वे
दार्शनिक पिता पं. गंगाप्रसाद
उपाध्याय के एक दार्शनिक पुत्र थे। आप
एक अच्छे कवि, लेखक एवं उच्चकोटि के
गवेषक थे। आपने ईशोपनिषद् एवं
श्वेताश्वतर उपनिषदों का हिन्दी में
सरल पद्यानुवाद किया तथा वेदों का
अंग्रेजी में भाष्य किया। आपकी गणना
उन उच्चकोटि के दार्शनिकों में की
जाती है जो वैदिक दर्शन एवं दयानन्द
दर्शन के अच्छे व्याख्याकार माने जाते
हैं। परोपकारी के नवम्बर (द्वितीय) एवं
दिसम्बर (प्रथम) २०१४ के सम्पादकीय
‘‘आदर्श संन्यासी- स्वामी विवेकानन्द’’
के देश में धर्मान्तरण, शुद्धि, घर वापसी
की जो चर्चा आज हो रही है साथ ही इस
सम्बन्ध में स्वामी सत्यप्रकाश जी के
३० वर्ष पूर्व के विचार आज भी
प्रासंगिक हैं। इसी क्रम में स्वामी
सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा लिखित
पुस्तक ‘‘अध्यात्म और आस्तिकता’’ के
पृष्ठ १३२ से उद्धृत स्वामी जी का लेख
पाठकों के विचारार्थ प्रस्तुत है-
‘‘विवेकानन्द का हिन्दुत्व ईसा और
ईसाइयत का पोषक है।’’
‘‘महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अवतारवाद और
पैगम्बरवाद दोनों का खण्डन किया।
वैदिक आस्था के अनुसार हमारे बड़े से
बड़े ऋषि भी मनुष्य हैं और मानवता के
गौरव हैं, चाहे ये ऋषि गौतम, कपिल, कणाद
हों या अग्नि, वायु, आदित्य या अंगिरा।
मनुष्य का सीधा सम्बन्ध परमात्मा से है
मनुष्य और परमात्मा के बीच कोई
बिचौलिया नहीं हो सकता- न राम, न
कृष्ण, न बुद्ध, न चैतन्य महाप्रभु, न
रामकृष्ण परमहंस, न हजरत मुहम्मद, न
महात्मा ईसा मूसा या न कोई अन्य।
पैगम्बरवाद और अवतारवाद ने मानव जाति
को विघटित करके सम्प्रदायवाद की नींव
डाली।’’
हमारे आधुनिक युग के चिन्तकों में
स्वामी विवेकानन्द का स्थान ऊँचा है।
उन्होंने अमेरिका जाकर भारत की मान
मर्यादा की रक्षा में अच्छा योग दिया।
वे रामकृष्ण परमहंस के अद्वितीय शिष्य
थे। हमें यहाँ उनकी फिलॉसफी की
आलोचना नहीं करनी है। सबकी अपनी-अपनी
विचारधारा होती है। अमेरिका और यूरोप
से लौटकर आये तो रूढ़िवादी हिन्दुओं ने
उनकी आलोचना भी की थी। इधर कुछ दिनों
से भारत में नयी लहर का जागरण हुआ-यह
लहर महाराष्ट्र के प्रतिभाशाली
व्यक्ति श्री हेडगेवार जी की कल्पना
का परिणाम था। जो मुसलमान, ईसाई, पारसी
नहीं हैं, उन भारतीयों का ‘‘हिन्दू’’ नाम
पर संगठन। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की
स्थापना हुई। राष्ट्रीय जागरण की
दृष्टि से गुरु गोलवलकर जी के समय में
संघ का रू प निखरा और संघ गौरवान्वित
हुआ, पर यह सांस्कृतिक संस्था धीरे-
धीरे रूढ़िवादियों की पोषक बन गयी और
राष्ट्रीय प्रवित्तियों की विरोधी। यह
राजनीतिक दल बन गयी, उदार सामाजिक
दलों और राष्ट्रीय प्रवित्तियों के
विरोध में। देश के विभाजन की विपदा ने
इस आन्दोलन को प्रश्रय दिया, जो
स्वाभाविक था। हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य
की पराकाष्ठा का परिचय १९४७ के आसपास
हुआ। ऐसी परिस्थिति में गाँधीवादी
काँग्रेस बदनाम हुई और साम्प्रदायिक
प्रवित्तियों को पोषण मिला। आर्य
समाज ऐसा संघटन भी संयम खो बैठा और
इसके अधिकांश सदस्य (जिसमें दिल्ली,
हरियाणा, पंजाब के विशेष रूप से थे)
स्वभावतः हिन्दूवादी आर्य समाजी बन
गए। जनसंघ की स्थापना हुई जिसकी
पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
था। फिर विश्व हिन्दू परिषद् बनी।
पिछले दिनों का यह छोटा-सा इतिवृत्त
है।
हिन्दूवादियों ने विवेकानन्द का नाम
खोज निकाला और उन्हें अपनी
गतिविधियों में ऊँचा स्थान दिया।
पिछले १००० वर्ष से भारतीयों के बीच
मुसलमानों का कार्य आरम्भ हुआ। सन्
९०० से लेकर १९०० के बीच दस करोड़
भारतीय मुसलमान बन गये अर्थात्
प्रत्येक १०० वर्ष में एक करोड़ व्यक्ति
मुसलमान बनते गये अर्थात् प्रतिवर्ष १
लाख भारतीय मुसलमान बन रहे थे। इस धर्म
परिवर्तन का आभास न किसी हिन्दू राजा
को हुआ, न हिन्दू नेता को। भारतीय जनता
ने अपने समाज के संघटन की समस्या पर इस
दृष्टि से कभी सूक्ष्मता से विचार नहीं
किया था। पण्डितों, विद्वानों,
मन्दिरों के पुजारियों के सामने यह
समस्या राष्ट्रीय दृष्टि से प्रस्तुत ही
नहीं हुई।
स्मरण रखिये कि पिछले १००० वर्ष के
इतिहास में महर्षि दयानन्द अकेले ऐेसे
व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने इस समस्या
पर विचार किया। उन्होंने दो समाधान
बताए- भारतीय समाज सामाजिक
कुरीतियों से आक्रान्त हो गया है-
समाज का फिर से परिशोध आवश्यक है।
भारतीय सम्प्रदायों के कतिपय कलङ्क
हैं, जिन्हें दूर न किया गया तो यहाँ की
जनता मुसलमान तो बनती ही रही है, आगे
तेजी से ईसाई भी बनेगी। हमारे समाज के
कतिपय कलङ्क ये थे-
१. मूर्तिपूजा और अवतारवाद।
२. जन्मना जाति-पाँतवाद।
३. अस्पृश्यता या छूआछूतवाद।
४. परमस्वार्थी और भोगी महन्तों,
पुजारियों, शंकराचार्यों की गद्दियों
का जनता पर आतंक।
५. जन्मपत्रियों, फलित ज्योतिष,
अन्धविश्वासों, तीर्थों और पाखण्डों
का भोलीभाली ही नहीं शिक्षित जनता
पर भी कुप्रभाव। राष्ट्र से इन कलङ्कों
को दूर न किया जायेगा, तो विदशी
सम्प्रदायों का आतंक इस देश पर रहेगा
ही।
दूसरा समाधान महर्षि दयानन्द ने यह
प्रस्तुत किया कि जो भारतीय जनता
मुसलमान या ईसाई हो गयी है उसे शुद्ध
करके वैदिक आर्य बनाओ। केवल इतना ही
नहीं बल्कि मानवता की दृष्टि से अन्य
देशों के ईसाई, मुसलमान, बौद्ध, जैनी
सबसे कहो कि असत्य और अज्ञान का
परित्याग करके विद्या और सत्य को
अपनाओ और विश्व बन्धुत्व की
संस्थापना करो।
विवेकानन्द के अनेक विचार उदात्त और
प्रशस्त थे, पर वे अवतारवाद से अपने
आपको मुक्त न कर पाये और न भारतीयों
को मुसलमान, ईसाई बनने से रोक पाये। यह
स्मरण रखिये कि यदि महर्षि दयानन्द और
आर्य समाज न होता तो विषुवत रेखा के
दक्षिण भाग के द्वीप समूह में कोई भी
भारतीय ईसाई होने से बचा न रहता।
विवेकानन्द के सामने भारतीयों का
ईसाई हो जाना कोई समस्या न थी।
आज देश के अनेक अंचलों में विवेकानन्द
के प्रिय देश अमेरिका के षड़यन्त्र से
भारतीयों को तेजी से ईसाई बनाया जा
रहा है। स्मरण रखिये कि विवेकानन्द के
विचार भारतीयों को ईसाई होने से रोक
नहीं सकते, प्रत्युत मैं तो यही कहूँगा
कि यदि विवेकानन्द की विचारधारा रही
तो भारतीयों का ईसाई हो जाना बुरा
नहीं माना जायेगा, श्रेयस्कर ही होगा।
विवेकानन्द के निम्न श दों पर विचार
करें- (दशम् खण्ड, पृ. ४०-४१)
मनुष्य और ईसा में अन्तरः- अभिव्यक्त
प्राणियों में बहुत अन्तर होता है।
अभिव्यक्त प्राणि के रूप में तुम ईसा
कभी नहीं हो सकते। ब्रह्म, ईश्वर और
मनुष्य दोनों का उपादान है। …… ईश्वर
अनन्त स्वामी है और हम शाश्वत सेवक हैं,
स्वामी विवेकानन्द के विचार से ईसा
ईश्वर है और हम और आप साधारण व्यक्ति
हैं। हम सेवक और वह स्वामी है।
इसके आगे स्वामी विवेकानन्द इस विषय
को और स्पष्ट करते हैं, ‘‘यह मेरी अपनी
कल्पना है कि वही बुद्ध ईसा हुए। बुद्ध
ने भविष्यवाणी की थी, मैं पाँच सौ
वर्षों में पुनः आऊँगा और पाँच सौ वर्ष
बाद ईसा आये। समस्त मानव प्रकृति की यह
दो ज्योतियाँ हैं। दो मनुष्य हुए हैं
बुद्ध और ईसा। यह दो विराट थे। महान्
दिग्गज व्यक्ति व दो ईश्वर समस्त
संसार को आपस में बाँटे हुए हैं। संसार
में जहाँ कही भी किञ्चित ज्ञान है,
लोग या तो बुद्ध अथवा ईसा के सामने
सिर झुकाते हैं। उनके सदृश और अधिक
व्यक्तियों का उत्पन्न होना कठिन है,
पर मुझे आशा है कि वे आयेंगे। पाँच सौ
वर्ष बाद मुहम्मद आये, पाँच सौ वर्ष बाद
प्रोटेस्टेण्ट लहर लेकर लूथर आये और अब
पाँच सौ वर्ष फिर हो गए हैं। कुछ हजार
वर्षों में ईसा और बुद्ध जैसे
व्यक्तियों का जन्म लेना एक बड़ी बात
है। क्या ऐसे दो पर्याप्त नहीं हैं? ईसा
और बुद्ध ईश्वर थे, दूसरे सब पैगम्बर थे।’’
कहा जाता है कि शंकराचार्य ने बौद्ध
धर्म को भारत से बाहर निकाल दिया और
आस्तिक धर्म की पुनः स्थापना की।
महात्मा बुद्ध (अर्थात् वह बुद्ध जो
ईश्वर था) को भी मानिये और उनके धर्म
को देश से बाहर निकाल देने वाले
शंकराचार्य को भी मानिये, यह कैसे हो
सकता है? विश्व हिन्दू परिषद् वाले
स्वामी शंकराचार्य का भारत में गुणगान
इसलिए करते हैं कि उन्होंने भारत को
बुद्ध के प्रभाव से बचाया, वरना ये ही
विश्व हिन्दू परिषद् वाले सनातन धर्म
स्वयं सेवक संघ की स्थापना करके बुद्ध
की मूर्तियों के सामने नत मस्तक होते।
यह हिन्दुत्व की विडम्बना है। यदि
स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में बुद्ध
और ईसा दोनों ईश्वर हैं तो भारत में
ईसाई धर्म के प्रवेश में आप क्यों
आपत्ति करते हैं। पूर्वोत्तर भारत में
ईसाइयों का जो प्रवेश हो रहा है, उसका
आप स्वागत कीजिये। यदि विवेकानन्द को
तुमने ‘‘हिन्दुत्व’’ का प्रचारक माना है
तो तुम्हें धर्म परिवर्तन करके किसी का
ईसाई बनना किसी को ईसाई बनाना क्यों
बुरा लगता है?
मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि
विवेकानन्दी हिन्दू (जिन्हें बुद्ध और
ईसा दोनों को ईश्वर मानना चाहिए) देश
को ईसाई होने से नहीं बचा सकते।
भारतवासी ईसाई हो जाएँ, बौद्ध हो
जायें या मुसलमान हो जाएँ तो उन्हें
आपत्ति क्यों? ईसा और बुद्ध साक्षात्
ईश्वर और हजरत मुहम्मद भी पैगम्बर!
महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज की
स्थिति स्पष्ट है। हजरत मुहम्मद भी
मनुष्य थे, ईसा भी मनुष्य थे, राम और
कृष्ण भी मनुष्य थे। परमात्मा न अवतार
लेता है न वह ऐसा पैगम्बर भेजता है,
जिसका नाम ईश्वर के साथ जोड़ा जाए
और जिस पर ईमान लाये बिना स्वर्ग
प्राप्त न हो।
भारत को ईसाइयों से भी बचाइये और
मुसलमानों से भी बचाइये जब तक कि यह
ईसा को मसीहा और मुहम्मद साहब को
चमत्कार दिखाने वाला पैगम्बर मानते
हैं।
- आर्यसमाज, अजमेर ॐ


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Thursday, March 24, 2016

कल ओवैशी का बयान सुनने के बाद कलम चल ही गयी, घाटी में गैरो के झंडे, हमसे सहन नहीं होते, अफजल हम...

कल ओवैशी का बयान सुनने के बाद कलम चल ही गयी,

घाटी में गैरो के झंडे,
हमसे सहन नहीं होते,
अफजल हम शर्मिंदा है,
ये नारे वहन नहीं होते।

गांधीजी बनने की कोशिश अब,
बंद करो तुम मोदी जी,
ना सहन करो गद्दारो को,
अब द्वन्द करो तुम मोदी जी।

अभिमन्यु को कौरव दल के,
चक्रव्यूह में घिरने दो,
खुला छोड़ दो सेना को,
सरकार गिरे तो गिरने दो।

भगतसिंह की पुण्यतिथि पर,
लाल रंग की होली हो,
जो भारत माता की जय ना बोले, उसकी छाती में गोली हो।


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ॐ यन्मे छिद्रम् चक्षुषो—यजु0 36-2 🌷🌷🌷🌷🌷🌷मन्त्र का पद्य में भाव🙏🙏🙏🙏🙏 जगत् पिता हे जग प्रभु,...

ॐ यन्मे छिद्रम् चक्षुषो—यजु0 36-2 🌷🌷🌷🌷🌷🌷मन्त्र का पद्य में भाव🙏🙏🙏🙏🙏 जगत् पिता हे जग प्रभु, करो कृपा भरपूर| विमल बनें सब इन्द्रियाँ ,दुर्गुण दोष हों दूर|| नेत्रों में हो दिव्यता ,हृदय बने विशाल |मन निर्मल तन साफ़ कर, चलें तुम्हारी चाल ||👏


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अप्रैल फूल" किसी को कहने से पहले इसकी वास्तविक सत्यता जरुर जान ले.!! पावन महीने की शुरुआत को...

अप्रैल फूल" किसी को कहने से पहले इसकी वास्तविक सत्यता जरुर जान ले.!!
पावन महीने की शुरुआत को मूर्खता दिवस कह रहे हो !!
पता भी है क्यों कहते है अप्रैल फूल (अप्रैल फुल का अर्थ है - हिन्दुओ का मूर्खता दिवस).??
ये नाम अंग्रेज ईसाईयों की देन है…
मुर्ख हिन्दू कैसे समझें “अप्रैल फूल” का मतलब बड़े दिनों से बिना सोचे समझे चल रहा है अप्रैल फूल, अप्रैल फूल ???
इसका मतलब क्या है.?? दरअसल जब ईसाइयत अंग्रेजो द्वारा हमे 1 जनवरी का नववर्ष थोपा गया तो उस समय लोग विक्रमी संवत के अनुसार 1 अप्रैल से अपना नया साल बनाते थे, जो आज भी सच्चे हिन्दुओ द्वारा मनाया जाता है, आज भी हमारे बही खाते और बैंक 31 मार्च को बंद होते है और 1 अप्रैल से शुरू होते है, पर उस समय जब भारत गुलाम था तो ईसाइयत ने विक्रमी संवत का नाश करने के लिए साजिश करते हुए 1 अप्रैल को मूर्खता दिवस “अप्रैल फूल” का नाम दे दिया ताकि हमारी सभ्यता मूर्खता लगे अब आप ही सोचो अप्रैल फूल कहने वाले कितने सही हो आप.?
याद रखो अप्रैल माह से जुड़े हुए इतिहासिक दिन और त्यौहार
1. हिन्दुओं का पावन महिना इस दिन से शुरू होता है (शुक्ल प्रतिपदा)
2. हिन्दुओ के रीति -रिवाज़ सब इस दिन के कलेण्डर के अनुसार बनाये जाते है।
3. महाराजा विक्रमादित्य की काल गणना इस दिन से शुरू हुई।
4. भगवान श्री राम का जन्म इस महीने में आता है।
5. परम पूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म दिवस है।
6. आज का दिन दुनिया को दिशा देने वाला है।
अंग्रेज ईसाई, हिन्दुओ के विरुध थे इसलिए हिन्दू के त्योहारों को मूर्खता का दिन कहते थे और आप हिन्दू भी बहुत शान से कह रहे हो.!!
गुलाम मानसिकता का सुबूत ना दो अप्रैल फूल लिख के.!!
अप्रैल फूल सिर्फ भारतीय सनातन कलेण्डर, जिसको पूरा विश्व फॉलो करता था उसको भुलाने और मजाक उड़ाने के लिए बनाया गया था। 1582 में पोप ग्रेगोरी ने नया कलेण्डर अपनाने का फरमान जारी कर दिया जिसमें 1 जनवरी को नया साल का प्रथम दिन बनाया गया।
जिन लोगो ने इसको मानने से इंकार किया, उनको 1 अप्रैल को मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे 1 अप्रैल नया साल का नया दिन होने के बजाय मूर्ख दिवस बन गया।आज भारत के सभी लोग अपनी ही संस्कृति का मजाक उड़ाते हुए अप्रैल फूल डे मना रहे है।
जागो हिन्दुओ जागो
🕉जयश्रीराम🕉


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इलायची का सेवन पथरी रोगी के लिए अति लाभदायक बताया गया है। छोटी इलायची को खाते रहने से पथरी टूट कर...

इलायची का सेवन पथरी रोगी के लिए अति लाभदायक बताया गया है। छोटी इलायची को खाते रहने से पथरी टूट कर मूत्र मार्ग से निकल जाती है।

पथरी के रोगी को चैलाई की सब्जी भी खानी चाहिए। यह पथरी को गलाकर पेशाब के रास्ते बाहर निकाल देती है।

पथरी के रोग से यदि मुक्त होना चाहते हैं। तो करेले की सब्जी को अपने खाने में इस्तेमाल करते रहें। हो सके तो करेले का जूस भी पीएं।

बथुआ की सब्जी का सेवन करने से पथरी जड़ से खत्म हो जाती है।


पत्ता गोभी को घी में छौंकर खानें से पथरी की रूकावट दूर हो जाती है।
जामुन की गुठली का चूर्ण बनाकर उसे दही में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से पथरी गल जाती है और पेशाब के रास्ते बाहर आ जाती है।

खरबूजे का सेवन करने से पथरी गलकर टूट जाती है और मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।

यदि पथरी गुर्दे मे है तो गेहूं और चनों को पानी में उबालकर उसका पानी पीते रहने से गुर्दे की पथरी कुछ ही दिनों में मूत्र मार्ग से बाहर आ जाती है। जौं का पानी का सेवन भी पथरी दूर करने में लाभ देता है।

गुर्दे की पथरी में आप चने की दाल को रात में भिगाकर रख लें और सुबह उठकर शहद के साथ इस दाल को मिलाकर खाते रहने से पथरी की परेशानी दूर हो जाती है।


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पूज्य स्वामीजी को नमन आपके सानिध्य में रहकर हम सब आपके द्वारा भेजे हुए सुंदर वेद मन्त्रों के ऑडियोज...

पूज्य स्वामीजी को नमन आपके सानिध्य में रहकर हम सब आपके द्वारा भेजे हुए सुंदर वेद मन्त्रों के ऑडियोज का नित्य रसास्वादन करते हैं मेरा परम सौभाग्य है मुझे भी वेद मन्त्रों के पद्य बनाने का नित्य सुअवसर प्रदान कर समूह में पहुँचाकर आपस्थान व सम्मान देते हैं जबकि मैं इस योग्य नहीं हूँ आपका आशीर्वाद हम सबको इसी तरह प्राप्त होता रहे ईश्वर से आपके यश में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि की कामना करती हूँ —-सब वेद पढ़ें, सुविचार बढ़ें ,बल पाय चढ़ें ,निज ऊपर को| अविरुद्ध रहें ,ऋजु पंथ गहें ,परिवार कहें ,वसुधा भर को |ध्रुव धर्म धरें ,पर दुःख हरें तन त्याग तरें भवसागर को| दिन फेर पिता, वर दे सविता, हम आर्य करें जगती भर को||🙏🙏🙏🙏


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शांत मन हमारी आत्मा की ताकत है । शांत मन में ही ईश्वर विराजते हैं ।जब पानी उबलता है तो हम उसमे...

शांत मन हमारी आत्मा की ताकत है ।
शांत मन में ही ईश्वर विराजते हैं ।जब पानी उबलता है तो हम उसमे अपना प्रतिबिम्ब नहीं देखपाते। और शांत पानी में हम खुद को देख सकते हैं ।
ठीक वैसे ही हृदय जब शांत रहेगा तो हमारी आत्मा के वास्तविक स्वरुप को हम देखपाते है 😊🌹 शुभ संध्या 🙏आओ हम सब वैदिक संध्या द्वारा ईश्वर का ध्यान करें 👏🌞👏


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नमस्ते मित्रों, शुभ प्रभात आज शहीद दिवस के अवसर पर माँ भारती के सपूतों राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह,...

नमस्ते मित्रों, शुभ प्रभात
आज शहीद दिवस के अवसर पर माँ भारती के सपूतों राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह, जिन्होंने माँ भारती की आजादी के लिए हंसते हंसते फांसी को चूम लिया, अगर वह चाहते तो हमारी आपकी तरह एक सुखद गृहस्थ जीवन व्यतीत कर सकते थे परंतु उनके लिए अपने सुख से ज्यादा देश के लोगों का सुख सर्वोच्च था। हमें भी उन महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने सुख से ज्यादा देश व देशवासियों के लिए सोचना चाहिए। यही उन महापुरुषों, माँ भारती के सपूतों को हमारी सच्ची श्रद्धांजली है माँ भारती के शेरों को मेरा शत शत नमन। यह देश सदैव उनका ॠणी रहेगा। ओ३म


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ओ३म् 🌷आयुर्वेदिक चाय🌷 गेहूं के आटे को छानने पर जो (चोकर)शेष बचता है,१० ग्राम चोकर को एक प्याला...

ओ३म्

🌷आयुर्वेदिक चाय🌷

गेहूं के आटे को छानने पर जो (चोकर)शेष बचता है,१० ग्राम चोकर को एक प्याला पानी में अच्छी प्रकार उबालकर कपड़े से छान लें।फिर इसमें दूध और मीठा मिलाकर प्रातः-सायं चाय की भांति पिएँ।इसके निरन्तर सेवन से शरीर दृढ़ व शक्तिशाली बनता है।यदि इसमें बादाम की पांच गिरियाँ अच्छी तरह रगड़कर और मिला ली जाएँ तो मनुष्य बूढ़ा नहीं होता,दिमाग तेज होता है।नजला,जुकाम और सिरदर्द के लिए गुणकारी है।इससे सस्ती और गुणकारी वस्तु मिलना दुर्लभ है।

(2)पीपलीकल्प:-छोटी पीपल ५ दाने आधा किलो दूध में डालकर इतना पकाएँ कि पीपलें नर्म हो जाएँ।फिर पीपलों को निकालकर खा लें।अगले दिन तीन पीपलें बढ़ा दें और ८ दिन तक निरन्तर ३-३ पीपली बढ़ाते रहें।नवें दिन से ३-३पीपली घटाते जाएँ,यहाँ तक कि ५ पीपली पर आ जाएँ।

यह आयुर्वेद की एक अद्भूत और अनोखी चिकित्सा है।इसके सेवन से पुराने-से-पुराना बुखार, खाँसी,श्वास,दमा,क्षय=टी.बी.,हिचकी,विषम ज्वर(बुखार),आवाज बिगड़ना,बवासीर,पेट का वायगोला,जुकाम आदि दूर हो जाते हैं।भूख खूब बढ़ती है।वर्धमान पीपली का प्रयोग मोटा करता है,आवाज को सुरीली बनाता है,तिल्ली और दूसरे रोगों को दूर करता है,आयु और बुद्धि को बढ़ाता है।पाण्डु=पीलिया रोग के लिए रामबाण दवा है।

नोट=औषध-सेवन-काल में दूध और भात के अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु नहीं खानी चाहिए।

वृद्ध ,कोमल प्रकृति वाले यदि इतनी पीपली न खा सकें तो उन्हें केवल दूध ही पिलाते जाएँ,परन्तु पीपली इसी संख्या से बढ़ाते जाएँ।


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वामपंथी एक हिंदू कन्हैया भी बना , वामपंथी एक मुसलमान उमर खालिद भी बना … हिंदू कन्हैया वामपंथी...

वामपंथी एक हिंदू कन्हैया भी बना ,
वामपंथी एक मुसलमान उमर खालिद भी बना …
हिंदू कन्हैया वामपंथी बन कर हिंदू धर्म का दुश्मन बन गया और भारत के टुकड़े करने का सपना देखने लगा ..
मुसलमान उमर खालिद वामपंथी हो कर भी इंशा “अल्लाह” और नारे तकबीर के नारे लगाता रहा और पाकिस्तान ज़िंदाबाद बोलता रहा ……
हिंदू वामपंथी कन्हैया फाँसी चढ़े भगत सिंह के समर्थन मे नारे नही लगाता ..
मुसलमान वामपंथी उमर खालिद अपने मुसलमान आतंकी अफजल के समर्थन मे सब को ले आया ….
हिंदू वामपंथी कन्हैया को मालदा से कोई मतलब नही है ..
मुसलमान वामपंथी उमर खालिद को कश्मीर से बहुत प्यार है ……
वामपंथ यही है ……….
देख लो ध्यान से , क्योंकि शायद बाद मे समय ना मिले ……….

भारत की बर्बादी का वो खुलेआम आयोजन था,
जिसे कन्हैया समझे थे वो कलयुग का दुर्योधन था,

ये यूनीवर्सिटी ज़हर की खेती करने वाली है,
नौजवान पीढ़ी के मन में नफरत भरने वाली है,

यहाँ किताबों पर मदिरा के अर्घ चढ़ाये जाते हैं,
देश-धर्म से गद्दारी के पाठ पढ़ाये जाते हैं,

ब्रेनवाश की मुहिम छिड़ी है इस परिसर में सालों से,
प्रोफ़ेसर के पद भी देखो भरे पड़े चण्डालों से,

काश्मीर को आज़ादी दो,बोध कराया जाता है,
भारत के टुकड़े करने पर शोध कराया जाता है,

महिषासुर को दुर्गा वध के कोर्स कराये जाते हैं,
और कन्हैया चीर हरण में फेलोशिप ले आते है,

लाल जवाहर की छाती पर ये अफीम की फसलें हैं,
और कलंकित वामपंथ की ये नाजायज नस्लें हैं,

बोल कन्हैया तुझको कितनी और अधिक आज़ादी दें,
संविधान को आग लगा दें भारत को बर्बादी दें,

हवस भरे हाथों में आज़ादी को खूब उछाला है,
तुमने मिलकर आज़ादी का गैंगरेप कर डाला है,

आग लगे उस आज़ादी को,जो भारत से बैर करे,
नक्सलियों को नायक माने,आतंकी की खैर करे,

आग लगे उस आज़ादी में जो दुश्मन को ताली दे,
खुलेआम जो भी भारत की सेनाओं को गाली दे,

ये गौरव चौहान कहे अब धैर्य टूटने वाला है,
गद्दारी से भरा हुआ अब घड़ा फूटने वाला है,

जिस दिन सेना सनक गयी,हर भूत उतारा जाएगा,
तू भी शायद सेना के हाथों से मारा जाएगा,

भारत का कानून अगर गद्दारों को सहलायेगा,
भारत माँ का बच्चा बच्चा ऊधम सिंह बन जाएगा,

भारत माँ का और अधिक अपमान नही सह पाएगी,
अब सच्चा इंसाफ यहाँ पर भीड़ सुनाने आएगी,

वो कान्हा है या कासिम है,रहम नही दिखलाएगी,
जो भारत को गाली देगा भीड़ उसे खा जायेगी,

मैं हु कांग्रेस
मैंने ही हिन्दू मुक्त पकिस्तान बनाया
मैंने ही हिन्दू मुक्त बांग्लादेश बनाया
मैंने ही हिन्दू मुक्त कश्मीर बनाया
मैंने ही हिन्दू मुक्त आसाम बनाया
मैंने ही हिन्दू मुक्त केरल बनाया
मैने ही हिन्दू मुक्त हैदराबाद बनाया
अब आप हिन्दू भाइयो का समर्थन रहा तो
अन्य सेक्युलर दलों के साथ मिलकर हिन्दू मुक्त हिन्दुस्तान बनाना हैं।और देश पर बांटने का अरोप संघ पर लगा देंगे।


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🌷🌷ओ३म्🌷🌷 🌷ईश्वर का स्वरुप🌷 प्रश्न :-परमात्मा निराकार क्यों है?हमको क्यों नहीं...

🌷🌷ओ३म्🌷🌷

🌷ईश्वर का स्वरुप🌷

प्रश्न :-परमात्मा निराकार क्यों है?हमको क्यों नहीं दिखता?

समाधान:-परमात्मा निराकार है इसके अनेक कारण हैं।कुछ यहाँ लिखते हैं:-
(1) सर्वव्यापी चेतन वस्तु का कोई रुप-रंग-आकार नहीं होता है।
न तस्य प्रतिमाs अस्ति -(यजु० ३२/३)

(2) सूक्ष्मातिसूक्ष्म होने से वह अदृश्य रहता है।
अदृष्टता (ऋ० १/१८७/७०)
ईश्वर दिखने वाली चीज नहीं हऐ,वह अदृश्य रहता है।

(3) जैसे आकाश विभु है-सर्वत्र व्यापक है,वैसे ही परमात्मा आकाशवत् सर्वव्यापक है।कैसे दिखाई दे सकता है?
आ यस्तस्थौ भुवनान्यमर्त्यः-(ऋ० ९/८४/२)
वह अमर ईश सारे संसार में व्याप्त है।

(4) चेतन तत्त्व निराकार होता है जिसका दर्शन(अनुभव) निराकार चेतन ही कर सकता है।
अकाय (यजु०४०/८),अपात् (ऋ० ८/६९/११)

(5) ईश्वर सृष्टिकर्ता है,सर्वान्तर्यामी है।रचना का कार्य अंदर से ही करता है।प्रकृति से परमाणु इकट्ठा करना,उनको गति देना,सृष्टि-उत्पत्ति करना-ये अन्तर्यामी निराकार ईश्वर के ही कार्य हैं,अतः वह निराकार है।

(6) जैसे शब्द आकाश का गुण है,दिखाई नहीं देता,उसी तरह आनन्द ईश्वर का गुण है जो अनुभव होता है,दिखाई नहीं देता,अतः वह आनन्दस्वरुप परमात्मा अकाय है,निराकार है।

(7) जो वस्तु बहुत पास या बहुत दूर होती है या अतिसूक्ष्म या अतिमहान् होती है वह दिखाई नहीं देती।ईश्वर आत्मा के भीतर विद्यमान है और सर्वत्र विद्यमान है,इसलिए चर्म-चक्षुओं से ओझल रहता है।

विष्णोः कर्माणि पश्यत…..(ऋ० १/२२/१९)
न तं विदाथ……(ऋ० १०/८२/७)

(8) भौतिक चक्षुओं से भौतिक पदार्थ दिखते हैं।ईश्वर चेतन है,वह चेतन आत्मा ही के दर्शन का विषय है,इस कारण निराकार है।

(9) दृश्यमान(दिखने वाली) सब वस्तुओं में विकार होता है।ईश्वर निर्विकार है।वह शुद्ध-बुद्ध-मुक्त और निर्लेप है इसलिए निराकार है।

(10) आत्मा के ऊपर तीन प्रकार के आवरण हैं जिनकी वजह से वह दिखाई नहीं देता।आवरण,विक्षेप और मल के हटने पर ही निर्मल मन-मंदिर में आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार होता है।

(11) आकार वाली वस्तु स्थान घेरती है अर्थात् वह सीमित होती है,परन्तु ईश्वर असीम है,सर्वव्यापी है,वह स्थान नहीं घेरता और निराकार है।
पूर्णात् पूर्णमुदचति……..परिषिच्यते।।-(अथर्व० १०/८/२९)

(12) ईश्वर अखंड है,पूर्ण है,वह खंडित और अपूर्ण नहीं हो सकता,अतः निराकार है और निराकार ही रहेगा क्योंकि वह नित्य है और अचल है।

अनेजदेकं मनसो जवीयो-(यजु० ४०/४)
तदेजति तन्नैजति (यजु० ४०/५)
वह समस्त ब्रह्माण्ड को चलाता है पर स्वयं अचल है।

अनाद्यनन्तं महतः परम ध्रुवं-(कठ० ४/५)
परमात्मा आदि और अन्त रहित है और ध्रुव अर्थात् अचल है।जो वस्तु सर्वव्यापी होती है वही अचल होती है।

(13) वैदिक दर्शन में ईश्वर ही ऐसा तत्त्व है जो आकाशवत् व्यापक होता हुआ आकाश से भी महान् है,जो आकाश की परिधि है-सीमा है।

परमं व्योम (यजु० २३/६२)
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् (ऋ० १/१६४/३९)
अकायमव्रणम् (यजु० ४०/४)
त्वमस्य पारे रजसो व्योमन् (ऋ० १/५२/१२)
यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन् (ऋ० १०/१२९/७)
स भूमिः सर्वत स्पृत्वा (यजु० ३१/१)
नाभ्याs आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत (यजु० ३१/१३)
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म…..परमे व्योमन् (तैत्तिरीयोपनिषद्)

भावार्थ एक ही है कि ईश्वर आकाश के अवकाश से भी अनादि-अनन्त है अर्थात् वह हर दिशा में आदि-अन्तरहित है,अतः वह निराकार है।आदि-अन्त रहित होने से वह पूर्ण है।

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।
पूर्ण से पूर्ण घटाने पर भी पूर्ण ही बचता है,वह केवल निराकार ही हो सकता है।


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🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏ऋग्वेद 10-103-13🌷🌷🌷🌷🌷 हे महेंद्र दो बुद्धि बाहु बल, गरज उठायें हम तलवार| राजा वीर बली सैनिक...

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏ऋग्वेद 10-103-13🌷🌷🌷🌷🌷 हे महेंद्र दो बुद्धि बाहु बल, गरज उठायें हम तलवार| राजा वीर बली सैनिक मिल, जीत लें दुष्टों पर कर वार |आये हैं हम शरण आपकी, विमल अभय हमको करना| सदा विजय जय जयहो आपकी, सर पर हाथ बस निज धरना ||👏 ~~~~~~~~~~~~~~तुझे और तेरे वेद ज्ञान को नतमस्तक प्रभु –~~~~🙏आर्या


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६ चैत्र 19 मार्च 2016 😶 “हम सन्मार्ग से न हटें ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् मा प्र...

६ चैत्र 19 मार्च 2016

😶 “हम सन्मार्ग से न हटें ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमानिः । 🔥🔥
🍃🍂 मान्मः स्थुर्नो अरातयः ।। 🍂🍃

ऋ० १० । ५७ ।१; अथर्व० १३ । १ । ५९

ऋषि:- बन्धु: सुबन्धुः।। देवता- विश्वेदेवाः ।। छन्द:- गायत्री ।।

शब्दार्थ- हे परमेश्वर!
हम सन्मार्ग को छोड़कर मत चलें ऐश्वर्ययुक्त होते हुए हम यज्ञ को छोड़कर मत चलें। अदानभाव हमारे अन्दर न ठहरें।

विनय:- हे इन्द्र, परमैश्वर्यवान्!
हम तुमसे ऐश्वर्य नहीं माँगते। हमारी तुमसे याचना तो यह है कि हम सदा सन्मार्ग पर चलते जाएँ, इसको कभी न छोड़ें। सन्मार्ग पर चलते हुए हमें जो कुछ ऐश्वर्य मिलेगा वही सच्चा ऐश्वर्य होगा। जिस किसी तरह मिला हुआ ‘ऐश्वर्य’ ऐश्वर्य नहीं होता- उसमें ईश्वरत्व नहीं होता- सामर्थ्य नहीं होता। सन्मार्ग से जो कुछ ऐश्वर्य मुझे मिलेगा, उस ऐश्वर्य को तुझसे पाकर हे इन्द्र! मेरी प्रार्थना है कि मैं यज्ञ से कभी विचलित न होऊँ। यज्ञ करता हुआ- उपकार करता हुआ ही तेरे दिये ऐश्वर्य को भोगूँ। जो कुछ तुम्हारे द्वारा मुझे मिला है, उसे तुम्हें दिये बिना भोगना चोरी है। ऐसा पाप स्वार्थवश हम कभी न करें। यज्ञ को, आत्मत्याग को, परार्थ में आत्म-विजर्जन को हम कभी न भूलें। यज्ञ के बिना भोग भोगना विषपान करना है, अतः हमारी दूसरी प्रार्थना है कि हम यज्ञ को कभी न छोड़ें।
हमारी तुमसे यह प्रार्थना नहीं है कि तुम हमारे शत्रुओं का नाश कर दो। हमारी याचना तो यह है कि हमारे अन्दर 'अराति’ न ठहरें। हमारे अन्दर अराति न हो तो बाहर हमारा अराति कोई कैसे हो सकता है। अराति अर्थात् अदानभाव होते हुए यज्ञ असम्भव है, अतः हमारा एक-मात्र शत्रु अदानभाव ही है। यह अन्दर का शत्रु ही हमारा शत्रु है। हे प्रभो! इससे हमारी रक्षा करो। फिर बाहर के किसी शत्रु की हमें परवाह नहीं।


🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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सम्राट चंद्रगुप्त ने एक बार चाणक्य से कहा, चाणक्य, काश तुम खूबसूरत होते? चाणक्य ने कहा,...

सम्राट चंद्रगुप्त ने एक बार चाणक्य से कहा, चाणक्य, काश तुम खूबसूरत होते?

चाणक्य ने कहा, ‘राजन, इंसान की पहचान उसके गुणों से होती है, रूप से नहीं।’

तब चंद्रगुप्त ने पूछा, 'क्या कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हो जहां गुण के सामने रूप छोटा रह गया हो।’

तब चाणक्य ने राजा को दो गिलास पानी पीने को दिया।

फिर चाणक्य ने कहा, 'पहले गिलास का पानी सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी मिट्टी के घड़े का, आपको कौन सा पानी अच्छा लगा।’

चंद्रगुप्त बोले, 'मटकी से भरे गिलास का।’

नजदीक ही सम्राट चंद्रगुप्त की पत्नी मौजूद थीं, वह इस उदाहरण से काफी प्रभावित हुई।

उन्होंने कहा, 'वो सोने का घड़ा किस काम का
जो प्यास न बुझा सके।
मटकी भले ही कितनी कुरुप हो, लेकिन प्यास
मटकी के पानी से ही बुझती है, यानी रूप नहीं गुण महान होता है।’

इसी तरह इंसान अपने रूप के कारण नहीं बल्कि उपने गुणों के कारण पूजा जाता है।

रूप तो आज है, कल नहीं लेकिन गुण जब तक जीवन है तब तक जिंदा रहते हैं, और मरने के बाद भी जीवंत रहते है


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ॐ यन्मे छिद्रम् चक्षुषो—यजु0 36-2 🌷🌷🌷🌷🌷🌷मन्त्र का पद्य में भाव🙏🙏🙏🙏🙏 जगत् पिता हे जग प्रभु,...

ॐ यन्मे छिद्रम् चक्षुषो—यजु0 36-2 🌷🌷🌷🌷🌷🌷मन्त्र का पद्य में भाव🙏🙏🙏🙏🙏 जगत् पिता हे जग प्रभु, करो कृपा भरपूर| विमल बनें सब इन्द्रियाँ ,दुर्गुण दोष हों दूर|| नेत्रों में हो दिव्यता ,हृदय बने विशाल |मन निर्मल तन साफ़ कर, चलें तुम्हारी चाल ||👏


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३ चैत्र 16 मार्च 2016 😶 “ कुटिलता व हिंसारहित यज्ञ में परमात्म-व्याप्ति !...

३ चैत्र 16 मार्च 2016

😶 “ कुटिलता व हिंसारहित यज्ञ में परमात्म-व्याप्ति ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । 🔥🔥
🍃🍂 स इद् देवेषु गच्छति ।। 🍂🍃

ऋ०:० १। १ ।४

ऋषि:- मधचच्छन्दा: ।। देवता- अग्नि: ।। छन्द:- गायत्री ।।

शब्दार्थ- हे परमात्मन्! तुम जिस कुटिलता तथा हिंसा से रहित यज्ञ को सब ओर से व्याप लेते हो केवल वही यज्ञ दिव्य फल लाता है।


विनय:- हम कई शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल जो जाएँ, परन्तु हे देवों के देव अग्निदेव! कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जबतक कि उस यज्ञ में तुम पूरी तरह न व्याप रहे हो, चूँकि जगत् में तुम्हारे अटल नियमों व तुम्हारी दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही सब कुछ सम्पन्न होता है। तुम्हारे बिना हमारा कोई यज्ञ कैसे सफल हो सकता है? और जिस यज्ञ में तुम व्याप्त हो वह यज्ञ अध्वर तो अवश्य होना चाहिए, पर जब हम यज्ञ प्रारम्भ करते हैं, कोई शुभ कर्म करते हैं, किसी संघ-संघठन में लगते हैं, परोपकार का कार्य करने लगते हैं तो मोहवश तुम्हें भूल जाते हैं। उसकी जल्दी सफलता के लिए हिंसा और कुटिलता से भी काम लेने को उतारू हो जाते हैं। तभी तुम्हारा हाथ हमारे ऊपर से उठ जाता है। ऐसा यज्ञ तुम्हारे देवों को स्वीकृत नहीं होता, उन्हें नहीं पहुँचता-सफल नहीं होता।
हे प्रभो!
अब जब कभी हम निर्बलता के वश अपने यज्ञों में कुटिलता व हिंसा का प्रवेश करने लगें और तुझे भूल जाएँ तो हे प्रकाशक देव! हमारे अन्तरात्मा में एक बार इस वैदिक सत्य को जगा देना; हमारा अन्तरात्मा बोल उठे कि “हे अग्ने! जिस कुटिलता व हिंसा-रहित यज्ञ को तुम सब ओर से घेर लेते हो, केवल यही यज्ञ देवों में पहुँचता है, अर्थात् दिव्य फल लाता है- सफल होता है।” सचमुच तुम्हें भुलाकर, तुम्हें हटाकर यदि किसी संघठन-शक्ति द्वारा कुटिलता व हिंसा के ज़ोर पर कुछ करना चाहेंगे तो चाहे कितना घोर उद्योग करें पर हमें कभी सफलता न मिलेगी।


🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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*** आधुनिक सच *** ____________________ मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं तीस लाख का पैकेज दोनों...

*** आधुनिक सच *** ____________________

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं
सुबह आठ बजे नौकरियों पर जाते हैं
रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं
कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं
फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
केवल आया'आंटी’ को ही पहचानता है
दादा -दादी ,नाना-नानी कौन होते है?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है
यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती है
छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है
उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है
वीक ऐन्ड पर मौल में पिकनिक मनाता है
संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज मेंआता है
कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है
धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है
माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूटजाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं
क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते,चलने में दुख पाते हैं
दाढ़- दाँत गिर जाते,मोटे चश्मे लग जाते हैं
कमर भी झुक जाती,कान नहीं सुन पाते हैं
वृद्धाश्रम में दाखिल हो,जिंदा ही मर जाते हैं
: सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में,बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए,हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पडौसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई,रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में,भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की,सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला,मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी,अपना घर संसार।


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Wednesday, March 23, 2016

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Tuesday, March 22, 2016

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Saturday, March 19, 2016

यह नर-नाहर कौन था? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु यह घटना प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की है। रियासत...

यह नर-नाहर कौन था? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

यह घटना प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की है। रियासत बहावलपुर

के एक ग्राम में मुसलमानों का एक भारी जलसा हुआ। उत्सव की

समाप्ति पर एक मौलाना ने घोषणा की कि कल दस बजे जामा

मस्जिद में दलित कहलानेवालों को मुसलमान बनाया जाएगा,

अतः सब मुसलमान नियत समय पर मस्जिद में पहुँच जाएँ।

इस घोषणा के होते ही एक युवक ने सभा के संचालकों से

विनती की कि वह इसी विषय में पाँच मिनट के लिए अपने विचार

रखना चाहता हैं। वह युवक स्टेज पर आया और कहा कि आज के

इस भाषण को सुनकर मैं इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि कल कुछ

भाई मुसलमान बनेंगे। मेरा निवेदन है कि कल ठीक दस बजे मेरा

एक भाषण होगा। वह वक्ता महोदय, आप सब भाई तथा हमारे वे

भाई जो मुसलमान बनने की सोच रहे हैं, पहले मेरा भाषण सुन लें

फिर जिसका जो जी चाहे सो करे। इतनी-सी बात कहकर वह

युवक मंच से नीचे उतर आया।

अगले दिन उस युवक ने ‘सार्वभौमिक धर्म’ के विषय पर

एक व्याख्यान  दिया। उस व्याख्यान में कुरान, इञ्जील, गुरुग्रन्थ

साहब आदि के प्रमाणों की झड़ी लगा दी। युक्तियों व प्रमाणों को

सुन-सुनकर मुसलमान भी बड़े प्रभावित हुए।

इसका परिणाम यह हुआ कि एक भी दलित भाई मुसलमान

न बना। जानते हो यह धर्म-दीवाना, यह नर-नाहर कौन था?

इसका नाम-पण्डित चमूपति था।

हमें गर्व तथा संतोष है कि हम अपनी इस पुस्तक ‘तड़पवाले

तड़पाती जिनकी कहानी’ में आर्यसमाज के इतिहास की ऐसी लुप्त-

गुप्त सामग्री प्रकाश में ला रहे हैं।

उसका मूल्य चुकाना पड़ेगा

मुस्लिम मौलाना लोग इससे बहुत खीजे और जनूनी मुसलमानों

को पण्डितजी की जान लेने के लिए उकसाया गया। जनूनी इनके

साहस को सहन न कर सके। इसके बदले में वे पण्डितजी के प्राण

लेने पर तुल गये। आर्यनेताओं ने पण्डितजी के प्राणों की रक्षा की

समुचित व्यवस्था की।

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हर हर महादेव जय श्री राम सुप्रभात 1948 में हिन्दू मुस्लिम दंगा हुवा एक मुस्लिम लड़का राजपूतो के एक...

हर हर महादेव
जय श्री राम सुप्रभात
1948 में हिन्दू मुस्लिम दंगा हुवा
एक मुस्लिम लड़का राजपूतो के एक गांव में फस गया था एक राजपूत ने उसे साडी पहनाकर उसके घर ले जाकर छोड़ा ।
लड़का घर के अंदर गया और राजपूत दरवाजे पर खड़ा था की उसके माँ बाप खुश होकर बधाई देगे
मुस्लिम के माँ बाप ने कहा बेटे तू कैसे बच गया
लड़का बोला एक नेक राजपूत लड़का मुझे साडी पहनाकर घर तक छोड़ा आप लोग उसका धन्यवाद करिये
मुस्लिम लड़के के बाप ने कहा की बेटे हमारे धर्म में किसी का कोई एहसान नही होता हैं ।
तू अपने धर्म का पालन कर जाकर मार दे उस राजपूत को और अपने लड़के के हाथ में तलवार दे दिया
मुस्लिम लड़का तलवार लेकर बाहर आया राजपूत का लड़का जो सारी बाते सुन रहा था वह बोला की भाई यह क्या हैं
मुस्लिम लड़के ने कहा की हमारे धर्म में काफिर पर रहम नही किया जाता चाहे वह हमारे घर पर शरण में ही क्यू न आया हो
राजपूत लड़के ने कहा की हमने तो तुमारी जान बचाई और तुम हमे ही मार रहे कोई बात नही एक गिलास पानी तो पिला दो फिर मार देना मुस्लिम लड़का जैसे पानी लेने के लिए मुड़ा तुरन्त उसका तलवार छीनकर उसका गर्दन उड़ा दिया और घर में घुसकर बोला
की तुमारे में शरण में आये को भी नही छोड़ते
और हम गद्दारो को उसके घर में घुसकर काट देते हैं
7 मुसलमान को काट कर वह राजपूत लड़का खुनी तलवार लेकर अपने घर गया और अपने बाप को सारी हकीकत बतायी
भिवानी से आये महमलडलेश्वर ने यह सच्ची घटना धर्म संसद हरिद्वार 2016 में बताई
हर हर महादेव
आस्तीन में साप पालोगे तो जहर तो मिलेगा


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किसी ने पूछा- “ तुम्हारा धर्म कौन सा है ?” हमने कहा- “इंसानियत” उन्होंने...

किसी ने पूछा- “ तुम्हारा धर्म कौन सा है ?”

हमने कहा- “इंसानियत”

उन्होंने मुस्कुराकर कहा- “जरूर तुम हिन्दू हो”

खत्म होने को हो पर सुधरोगे नहीं !


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🇮🇳आर्यावर्त देश की जय हो ।🇮🇳 • वेद में गौमाँस भक्षण का स्पष्ट विरोध ऋग्वेद 8.101.15– मैं समझदार...

🇮🇳आर्यावर्त देश की जय हो ।🇮🇳

• वेद में गौमाँस भक्षण का स्पष्ट विरोध

ऋग्वेद 8.101.15– मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत करना, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.

ऋग्वेद 8.101.16– मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.

अथर्ववेद 10.1.27–तू हमारे गाय, घोड़े और पुरुष को मत मार.

अथर्ववेद 12.4.38 -जो(वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.

ऋग्वेद 6.28.4–गायें वधालय में न जाये

अथर्ववेद 8.3.24–जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे, राजा तलवार से उसका सर काट दे

यजुर्वेद 13.43–गाय का वध मत कर , जो अखंडनीय हैं

अथर्ववेद 7.5.5–वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं

यजुर्वेद 30.18-गोहत्यारे को प्राण दंड दो

🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
कृपया इस मैसेज को आर्यावर्त(भारत)🇮🇳 देश की जय🏆 बोलकर📢 💥आग की तरह फैला दो ।🌬
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩


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सबसे ज्यादा नुकसान हिन्दुवों का हिन्दू संत ही कर रहे है , ये सत्य को न बता के अपनी ही पूजा करवाना...

सबसे ज्यादा नुकसान हिन्दुवों का हिन्दू संत ही कर रहे है , ये सत्य को न बता के अपनी ही पूजा करवाना चाहते है ?
हिन्दू के अंदर ब्याप्त बुराइयों को दूर करने का इनके तरफ से कोई भी कोसिस नहीं होती है !
दहेज़ , जातिवाद दोनों ही हिन्दू समाज को खोखला कर रहा है लेकिन इसके लिए कोई भी संत अपना मुह नहीं खोलता है लेकिन अपने कथा मे श्री कृष्ण को इश्वर का रूप भी बताते है और साथ ही ये भी कहते है कि कृष्ण ने माखन चोरी कि , जब छोटे थे तो नहाती हुई लडकियों के कपडे लेकर पेड़ पे चढ़ जाते थे !
और हिन्दू भी इन संतो कि बात सुन सुन के नपुंसक हो गए है !
धन्य हो बाबा राम देव जैसे संतो कि जिन्होंने लाखो युवा को रोजगार के साथ साथ उन्हें सत्य ज्ञान दिया और उन्होंने इन लोगो से यह कभी नहीं कहा कि मे इश्वर का अवतार हु और मेरी चमचागिरी करो !!


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आप सोचिये की इस्लाम मे इमाम जो की सतातन मे मंदिर के पुजारी के बराबर है , कोई भी इस्लाम कबूल करने आये...

आप सोचिये की इस्लाम मे इमाम जो की सतातन मे मंदिर के पुजारी के बराबर है , कोई भी इस्लाम कबूल करने आये तो उसको तुरंत मुस्लिम बनाएगा , लेकिन मंदिर के पुजारी यह काम करते है क्या ? कोई हिन्दू अगर मुस्लिम लड़की को लेके मंदिर जाये विवाह के लिए तो मंदिर का पुजारी ही पहला होगा जो इसका समर्थन न करके इसका विरोध करेगा !!


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जीवन, चेष्टा नहीं है, समर्पण है। “लेट गो” है; छोड़ देना है। जितना तुम लड़ोगे उतना ही तुम मुश्किल में...

जीवन, चेष्टा नहीं है, समर्पण है। “लेट गो” है; छोड़ देना है। जितना तुम लड़ोगे उतना ही तुम मुश्किल में पड़ोगे। अहंकार संघर्ष है, समर्पण असंघर्ष की दशा है।

पर तब सभी स्वीकार कर लेना है छोड़ कर। फिर जो उसकी मर्जी! जैसा वह रखे, जैसा वह चलाए, जहां वह ले जाए, जो वह करे।

अचानक तुम पाओगे, सब हलका हो गया। गरीब रखे तो गरीब; अमीर रखे तो अमीर।

स्वर्ग ले जाए तो स्वर्ग; नरक ले जाए तो नरक।

जिस दिन तुमने सब उसके हाथ पर छोड़ दिया, उसका हाथ तत्क्षण तुम्हें सम्हाल लेता है। उसके हाथ का सवाल है। उसके हाथ में हाथ हो, तो नरक स्वर्ग हो जाता है। दुःख सुख हो जाते हैं। पीड़ाएं बड़े अपूर्व आनंद में रूपांतरित हो जाती हैं। क्षुद्र विराट हो जाता है।

सीमा तो अहंकार की है, समर्पण की कोई सीमा नहीं। तत्क्षण, अहंकार के गिरते ही तुम असीम हो जाते हो।

अभी तक तुमने समझा था। तुम दीवाल में घिरे आंगन हो; अब तुम सब जानते हो तुम सब तरफ फैले आकाश हो।

“मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कछु है सो तोर।

तेरा तुझको सौंपते, क्या लागत है मोर।।”

ओशो


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आज 15 मार्च को मनोहर लाल खट्टर जी से आजतक पर राहुल कंवल ने पूछा कि ऋग्वेद में तो गौ मांस खाने के लिए...

आज 15 मार्च को मनोहर लाल खट्टर जी से आजतक पर राहुल कंवल ने पूछा कि ऋग्वेद में तो गौ मांस खाने के लिए लिखा है, तो खट्टर ने कहा कि “यह किस प्रसंग में लिखा है यह तो हम नहीं जानते, हो सकता है कि आपात काल के लिए ऐसा लिखा हो….. ”
आर्यों! हरियाणा के मुख्य मंत्री जी राजनीति की मज़बूरी बस उस समय जवाब दे नहीं पाए पर आप यह जवाब आग की तरह सब ओर फैला दीजिए
जो वेदों में गौ हत्या की बात कहे उसके मुंह पर फेविकोल से यह मेसेज चिपकाओ💪💪💪💪💪💪

• वेद में गौमाँस भक्षण का स्पष्ट विरोध

ऋग्वेद 8.101.15– मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत करना, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.

ऋग्वेद 8.101.16– मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.

अथर्ववेद 10.1.27–तू हमारे गाय, घोड़े और पुरुष को मत मार.

अथर्ववेद 12.4.38 -जो(वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.

ऋग्वेद 6.28.4–गायें वधालय में न जाये

अथर्ववेद 8.3.24–जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे, राजा तलवार से उसका सर काट दे

यजुर्वेद 13.43–गाय का वध मत कर , जो अखंडनीय हैं

अथर्ववेद 7.5.5–वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं

यजुर्वेद 30.18-गोहत्यारे को प्राण दंड दो

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जिसके बाप-दादों ने तलवार की नोक से डरकर अपना धर्म बदल लिया, आज वो बोलता है कि गर्दन पे चाकू रख दो तब...

जिसके बाप-दादों ने तलवार की नोक से डरकर अपना धर्म बदल लिया, आज वो बोलता है कि गर्दन पे चाकू रख दो तब भी नहीं बोलूँगा “भारत माता की जय”

बेटा “भारत माता की जय” शब्द नहीं हैं, दहाड़ है.. और दहाड़ना शेरों का काम है, कुत्तों का नहीं..!!

भारत माता की जय


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बृहस्पति, जिन्हें “प्रार्थना या भक्ति का स्वामी” माना गया है,[1] और ब्राह्मनस्पति तथा...

बृहस्पति, जिन्हें “प्रार्थना या भक्ति का स्वामी” माना गया है,[1] और ब्राह्मनस्पति तथा देवगुरु (देवताओं के गुरु) भी कहलाते हैं, एक हिन्दू देवता एवं वैदिक आराध्य हैं। इन्हें शील और धर्म का अवतार माना जाता है और ये देवताओं के लिये प्रार्थना और बलि या हवि के प्रमुख प्रदाता हैं। इस प्रकार ये मनुष्यों और देवताओं के बीच मध्यस्थता करते हैं।

बृहस्पति हिन्दू देवताओं के गुरु हैं और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कट्टर विरोधी रहे हैं। ये नवग्रहों के समूह के नायक भी माने जाते हैं तभी इन्हें गणपति भी कहा जाता है। ये ज्ञान और वाग्मिता के देवता माने जाते हैं। इन्होंने ही बार्हस्पत्य सूत्र की रचना की थी। इनका वर्ण सुवर्ण या पीला माना जाता है और इनके पास दण्ड, कमल और जपमाला रहती है। ये सप्तवार में बृहस्पतिवार के स्वामी माने जाते हैं।[2] ज्योतिष में इन्हें बृहस्पति (ग्रह) का स्वामी माना जाता है।

ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति को अंगिरस ऋषि का पुत्र माना जाता है[3] और शिव पुराण के अनुसार इन्हें सुरुप का पुत्र माना जाता है। इनके दो भ्राता हैं: उतथ्य एवं सम्वर्तन। इनकी तीन पत्नियां हैं। प्रथम पत्नी शुभा ने सात पुत्रियों भानुमति, राका, अर्चिश्मति, महामति, महिष्मति, सिनिवली एवं हविष्मति को जन्म दिया था। दूसरी पत्नी तारा से इनके सात पुत्र एवं एक पुत्री हैं तथा तृतीय पत्नी ममता से दो पुत्र हुए कच और भरद्वाज।

बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ के तट भगवान शिव की अखण्ड तपस्या कर देवगुरु की पदवी पायी। तभी भगवाण शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें नवग्रह में एक स्थाण भी दिया। कच बृहस्पति का पुत्र था या भ्राता, इस विषय में मतभेद हैं। किन्तु महाभारत के अनुसार कच इनका भ्राता ही था। भारद्वाज गोत्र के सभी ब्राह्मण इनके वंशज माने जाते हैं।

ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति इसी नां के ग्रह के स्वामी माने जाते हैं और नवग्रहों में गिने जाते हैं। इन्हें गुरु, चुरा या देवगुरु भी कहा जाता है। इन्हें किसी भी ग्रह से अत्यधिक शुभ ग्रह माना जाता है। गुरु या बृहस्पति धनु राशि और मीन राशि के स्वामी हैं। बृहस्पति ग्रह कर्क राशी में उच्च भाव में रहता है और मकर राशि में नीच बनता है। सूर्य चंद्रमा और मंगल ग्रह बृहस्पति के लिए मित्र ग्रह है, बुध शत्रु है और शनि तटस्थ है। बृहस्पति के तीन नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद होते हैं।[4]

गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश का तत्त्व माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। गुरु पिछले जन्मों के कर्म, धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतानों से संबंधित विषयों के संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। यह शिक्षण, शिक्षा और ज्ञान के प्रसार से संबद्ध है। जिनकी कुंडली में बृहस्पति उच्च होता है, वे मनुष्य जीवन की प्रगति के साथ साथ कुछ मोटे या वसायुक्त होते जाते हैं, किन्तु उनका साम्राज्य और समृद्धि बढ़ जाती है। मधुमेह का सीधा संबंध कुण्डली के बृहस्पति से माना जाता है। पारंपरिक हिंदू ज्योतिष के अनुसार गुरु की पूजा आराधन पेट को प्रभावित करने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है तथा पापों का शमन करता है।

निम्न वस्तुएं बृहस्पति से जुड़ी होती हैं: पीला रंग, स्वर्ण धातु, पीला रत्न पुखराज एवं पीला नीलम, शीत ऋतु (हिम), पूर्व दिशा, अंतरिक्ष एवं आकाश तत्त्व।[4] इसकी दशा (विशमोत्तरी दशा) सोलह वर्ष होती है।


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