Wednesday, February 18, 2015

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं

विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाश माकाश वासं भजेयम

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं

गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं

करालं महाकाल कालं कृपालं

गुणागार संसार पारं नतोहं

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .

मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं

स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा

लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा

चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं

प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं

म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं

प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि

प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं

अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम

त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम

भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी

सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी

चिदानंद संदोह मोहापहारी

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

न यावत उमानाथ पादार विन्दम

भजंतीह लोके परे वा नाराणं

न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं

प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो ।




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16 comments:

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  3. नमामि शमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं॥1॥

    निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
    करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोहं॥2॥

    तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
    स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

    चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
    मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

    प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
    त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेहं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

    कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
    चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मधारी॥6॥

    न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
    न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

    न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
    जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शम्भो ॥8॥

    " रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
    ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥ "

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  4. Replies
    1. श्रीमान जी पूरा नही हैं

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    2. श्रीमान जी पूरा नही हैं

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