Friday, February 20, 2015

धातु विज्ञान पारा (Mercury) प्राचीन समय से पारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण धातु रही है जिसका प्रयोग बड़े...

धातु विज्ञान पारा (Mercury)


प्राचीन समय से पारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण धातु रही है जिसका प्रयोग बड़े स्तर पर होता रहा है। भारतवर्ष में तो आयुर्वेद आदि का थोड़ा ज्ञान रखने वाले सभी जन पारे से परिचित है जबकि यूरोप में 17वीं सदी तक पारा क्या है, यह वे जानते नहीं थे। अत: फ्रांस सरकार के दस्तावेजों में इसे दूसरी तरह की चाँदी ‘क्विक सिल्वर’ कहा गया, क्योंकि यह चमकदार तथा इधर-उधर घूमने वाला होता है। फ्रांस की सरकार ने यह कानून भी बनाया था कि भारत से आने वाली जिन औषधियों में पारे का उपयोग होता है उनका उपयोग विशेष चिकित्सक ही करें।


भारतवर्ष में हजारों वर्षों से पारे को जानते ही नहीं थे , बल्कि इसका उपयोग औषधि विज्ञान व विमान-निर्माण आदि में भी बड़े पैमाने पर होता था। विदेशी लेखकों में सर्वप्रथम अलबरूनी ने, जो 11वीं सदी में लंबे समय तक भारत रहा, अपने ग्रंथ में पारे को बनाने और उपयोग की विधि को विस्तार से लिखकर दुनिया को परिचित करवाया । कहा जाता है कि 1000 ई० में हुए नागार्जुन पारे से सोना बनाना जानते थे। इनसे भी ५०० साल पहले राजा भोज के समय पारे से विमान आदि यंत्र चलाये जाते थे। यहाँ आश्चर्य की बात यह है कि स्वर्ण में परिवर्तन को पारा ही चुना, अन्य कोई धातु नहीं। आज का विज्ञान कहता है कि धातुओं का निर्माण उनके परमाणु में स्थित प्रोटान की संख्या के आधार पर होता है और यह आश्चर्य की बात है कि पारे में ८० प्रोटान व सोने में ७९ प्रोटान होते है। अर्थात नागार्जुन इन सब तथ्यों से परिचित थे। अत: पारे से सोना बनाना भी भारत की ही देन है। विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद है ये सभी जानते है और आयुर्वेद में तो बहुत से असाध्य रोगों का ईलाज ही शुद्ध पारे से होता है। अनेकों औषधियाँ पारे से बनती है।




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